RBI governor Raghuram Rajan and Viral Acharya papers PSU bank private bank NPA | साथ आए रघुराम राजन और विरल आचार्य, दोनों ने भारतीय बैंकिंग सेक्टर की सेहत सुधारने के दिए उपाय, कहा कुछ सरकारी बैंकों का प्राइवेटाइजेशन कर दिया जाए

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मुंबईएक घंटा पहले

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ज्ञान संगम की विफलता को लेकर आचार्य और राजन ने कहा है कि स्थिर राजनीति सपोर्ट की जरूरत है और नौकरशाहों को इस पर ध्यान देना होगा

  • दोनों ने एक रिसर्च पेपर में देश के बैंकिंग सेक्टर की समस्याओं और उनके समाधान के रास्ते सुझाए हैं
  • दोनों ने कहा कि फंसे हुए कर्ज की बिक्री के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म डेवलप करना चाहिए

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजम और उप गवर्नर विरल आचार्य बैंकिंग सेक्टर के मुद्दे पर एक साथ आ गए हैं। दोनों ने मिलकर भारतीय बैंकिंग सेक्टर की सेहत सुधारने के सुझाव दिए हैं। दोनों ने एक रिसर्च पेपर में देश के बैंकिंग सेक्टर की समस्याओं और उनके समाधान के रास्ते सुझाए हैं, जिससे सेक्टर को मजबूत किया जा सके। राजन ने यह भी सुझाव दिया कि कुछ चुनिंदा सरकारी बैंकों का प्राइवेटाइजेशन कर देना चाहिए।

बैंकिंग सेक्टर को लेकर राय जाहिर की

इन दोनों ने एक पेपर्स जारी किया है। उसमें बैंकिंग सेक्टर को लेकर अपनी राय जाहिर की है। रघुराम राजन फिलहाल शिकागो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। रघुराम राजन और विरल आचार्य ने बैड लोन यानी एनपीए की समस्या से निपटने के लिए तीन रास्ते सुझाए हैं। दोनों बैंकर्स ने कहा कि दबावग्रस्त कंपनी के लेनदारों के बीच तय समय में बातचीत के लिए आउट-ऑफ-कोर्ट रिस्ट्रक्चरिंग फ्रेमवर्क को डिजाइन किया जा सकता है। ऐसा न कर पाने पर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में अप्लाई करना चाहिए।

बैंकिंग लाइसेंस देना चाहिए

इन दोनों ने कहा कि हर साल बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन मंगाना चाहिए और नए लाइसेंस देना चाहिए। उन्होंने कहा कि फंसे हुए कर्ज की बिक्री के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म डेवलप करने पर विचार करना चाहिए। इससे लोन सेल्स में रीयल टाइम ट्रांसपरेंसी देखने को मिलेगी। आखिर में, राजन और आचार्य का कहना है कि दबावग्रस्त लोन सेल्स के लिए प्राइवेट एसेट मैनेजमेंट एंड नेशनल एसेट मैनेजमेंट ‘बैड बैंक्स’ को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के समानांतर प्रोत्साहित करना चाहिए।

स्वतंत्र रूप से कामकाज की छूट दी जाए

सरकारी बैंकों में सुधार को लेकर रिसर्च पेपर में पीएसयू बैंकों के बोर्ड और मैनेजमेंट के लिए स्वतंत्र रूप से कामकाज की छूट देने का सुझाव दिया गया है। राजन और आचार्य ने सरकारी हिस्सेदारी के लिए एक होल्डिंग कंपनी बनाने का प्रस्ताव ​रखा है। यह एक ऐसा प्रस्ताव है जिसे बीते तीन दशक में बैंकिंग रिफॉर्म पर गठित कई समितियों ने दिया है। एक अन्य सुझाव में बैंकों को उनके अनिवार्य लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सरकार की तरफ से दिए जाने भुगतान के बारे में है।

दोनों अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बैंक खाता खोलने जैसी गतिविधयों के लिए लागत रिइम्बर्स कर सकते हैं।

प्राइवेट की तुलना में सरकारी बैंकों का एनपीए ज्यादा

दरअसल, प्राइवेट सेक्टर बैंकों की तुलना में पब्लिक सेक्टर बैंकों में लोन के फंसने ​की समस्या सबसे ज्यादा है। इनमें से अधिकतर हिस्सा रिकवर नहीं हो पाता है। उन्होंने इस सेक्टर में संस्थागत जटिलताओं के बारे में भी जिक्र किया है। भारत में फंसे कर्ज के रिजॉल्युशन में यह भी एक समस्या है। उन्होंने यह भी बताया है कि कई दशकों से भारत में फंसे कर्ज की समस्या को कैसे सुलझाया जा सकता है।

बता दें कि विरल आचार्य ने पिछले साल जुलाई में ही अपने 3 साल के कार्यकाल से करीब 6 महीने पहले आरबीआई के डिप्टी गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था।

दोनों शिक्षा से जुड़े हुए हैं

दोनों ही अर्थशास्त्री आरबीआई में अपने कार्यकाल के बाद एकेडमिक गतिविधियों से जुड़ गए हैं। उन्होंने सरकारी बैंकों पर विशेष फोकस किया है। भारत में जीडीपी के अनुपात में क्रेडिट भले ही कम है, लेकिन बैंकिंग सिस्टम का एनपीए दुनिया के बैंकिंग सेक्टर केअनुपात में सबसे अधिक है। इस रिसर्च पेपर में उन्होंने यह भी कहा कि इनमें से कई बातों पर पहले भी सुझाव दिए गए हैं। साल 2014 में पी जे नायक कमेटी ने भी यही सुझाव दिया था।

ज्ञान संगम की सिफारिशें लागू करने की कोशिश

केंद्र सरकार ने ‘ज्ञान संगम’ के तौर पर 2015 में इस कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की कोशिश की थी। सरकारी बैंकों में नियुक्तियों और बैंकों के बोर्ड को सशक्त बनाने के लिए बैंक बोर्ड ब्यूरो बनाने की सिफारिश की गई थी। यह बोर्ड इस समय काम कर रहा है। करीबन पांच साल बाद हालांकि बैंकिंग में सभी नियुक्तियां इसी बोर्ड के जरिए की जाती हैं लेकिन यह बोर्ड केवल नामों की सिफारिश ही करता है। बाकी मंजूरी सरकार ही करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसपर सहमति जताई थी।

ज्ञान संगम की विफलता को लेकर आचार्य और राजन ने कहा है कि स्थिर राजनीति सपोर्ट की जरूरत है और नौकरशाहों को इस पर ध्यान देना होगा। खासतौर से वित्त मंत्रालय के वित्त विभाग को इसके लिए पहल करनी होगी।

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