Rajendra Singh Interview To Dainik Bhaskar | Chirag Paswan Party LJP Dinara Candidate Speaks On Bihar Vidhan Sabha Election 2020 | अपने लहू से भाजपा को निकालना मुश्किल, चुनाव के बाद क्या होगा… अभी कैसे बता सकता हूं: लोजपा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह

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पटना11 मिनट पहलेलेखक: विकास कुमार

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  • राजेंद्र सिंह रोहतास जिले की दिनारा सीट से लोजपा के उम्मीदवार हैं, वो पिछले 37 साल से भाजपा में थे
  • राजेंद्र पिछली बार यहां से भाजपा के टिकट पर लड़े थे, लेकिन जदूय के जय कुमार सिंह से 2,691 वोट से हार गए थे

17 अक्टूबर को भास्कर ने बताया था कि कैसे दिनारा में लोजपा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह के लिए लोजपाई से ज्यादा भाजपाई-संघी लगे हैं, आज उन्हीं की बात सुनिए- “जिस सीट पर मैंने काम किया, उसे जदयू के पास मैंने तो नहीं दिया। अभी लोजपा के बैनर पर लड़ रहे, आगे का पता नहीं।” यहां भी भाजपा-लोजपा-जदयू के भविष्य का अंदाजा लगाना, समझना मुश्किल नहीं। क्यों और क्या कहा, भाजपा के 37 साल पुराने संघी राजेंद्र सिंह ने…पूरा इंटरव्यू।

सवाल: आप 37 सालों से भाजपा में थे। राज्य में पार्टी के उपाध्यक्ष थे। पिछले विधानसभा चुनाव में आप मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से एक थे। इस बार आपकी ही सीट जदयू को कैसे चली गई?
जवाब:
ये सीट गठबंधन के तहत हुए समझौते की वजह से जदयू को चली गई है, लेकिन हम पिछले पांच सालों से लगातार इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। सेवा का काम कर रहे हैं। हमने इस विधानसभा सीट के 6 हजार लोगों को रोजगार दिलाने का काम। जिस नेशनल हाइवे से आप आए होंगे, उसे संघर्ष करके बनवाने का काम। किसानों के धान का सही मूल्य मिले, इसके लिए काम किया। किसान का धान खेत से खरीदना चाहिए। खलिहान से खरीदना चाहिए। किसान के धान को उचित मूल्य मिलना चाहिए।

पिछले दिनों इलाके में पानी भर गया था तो सरकार की नींद खोलने के लिए अपने सर पर बोझा लेकर हम प्रखंड विकास पदाधिकारी के दफ्तर तक गए थे। लॉकडाउन के दौरान बाहर फंसे हजारों लोगों को हमने घर बुलवाया। उत्तरी बिहार में बाढ़ आई तो भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले 400 क्विंटल खाद्य पदार्थ भिजवाने का काम किया। कोरोना में जब लोग अपने घर में थे तो हम बाहर निकलकर काम कर रहे थे।

सवाल: मेरा सवाल वही था। आपने इतना काम किया फिर भी आपकी सीट जदयू के पास क्यों चली गई? आप जैसे सीनियर नेता को टिकट के लिए पार्टी क्यों बदलनी पड़ी?
जवाब:
टिकट क्यों नहीं मिला ये तो वो बताएंगे, जिन्हें देना था। मेरा काम तो है नहीं। वो क्यों नहीं दिए? समझौते में तो सीटें अदली-बदली जाती हैं। मुझसे कहा गया कि सिटिंग का फार्मूला है, लेकिन उसमें भी बदलाव होता है। सब कुछ जानने के बाद भी कि मैं कितना सक्रिय हूं। काम कर रहा हूं। उसके बाद भी मेरी सीट नहीं बदली गई। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि सब कुछ जानने के बाद भी मेरी सीट जदयू को क्यों दे दी गई? मुझे आज भी लगता है कि बदलना चाहिए था।

सवाल: अब तो पार्टी ने आपको 6 साल के लिए निकाल भी दिया है?
जवाब:
वो तो पार्टी का संविधान है। हमने उसे तोड़ा है। पार्टी लाइन से बाहर जाकर चुनाव लड़ रहे हैं तो ये तो होना ही था। ये कोई नया काम तो नहीं है।

सवाल: आपके कार्यकर्ता कह रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद आप भाजपा में फिर शामिल हो जाएंगे। वैसे भी लोजपा और भाजपा में कोई खास अंतर नहीं है। आप इस कानाफूसी पर क्या कहेंगे?
जवाब:
आगे क्या होगा और क्या नहीं होगा, ये कहना तो बड़ा मुश्किल है। लेकिन, अभी तो हम लोग लोक जनशक्ति पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़ रहे हैं। यहां की जनता और कार्यकर्ताओं के दबाव के कारण लड़ रहे हैं।

सवाल: चुनाव के वक्त नेताओं का पार्टी बदलना आम सी बात हो गई है। आप तो संघी हैं। क्या ये फैसला लेना आसान था कि जिस पार्टी और विचारधारा को अपना सब कुछ दिया, उसे छोड़कर या उसके खिलाफ ही चुनाव लड़ा जाए?
जवाब:
देखिए, मैंने फैसला लिया ही नहीं है।

सवाल: लोजपा से टिकट तो लिया ही है ना?
जवाब:
मेरे कहने का मतलब कि मैं जिनके लिए पांच साल लड़ा। जिनके सुख-दुःख में शामिल रहा, फैसला तो उन्होंने लिया है और उनकी वजह से मुझे आना पड़ा है।

सवाल: जैसे आपका दावा है कि आपने पिछले पांच साल इस क्षेत्र में खूब मेहनत की है तो आप निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते थे। लोजपा का चुनाव क्यों?
जवाब:
सब लोगों के कहने से। कार्यकर्ताओं के कहने से ही मैंने लोजपा का चुनाव किया है। ये मेरा व्यक्तिगत फैसला नहीं था।

सवाल: सोशल मीडिया पर चर्चा है कि भले आप लोजपा के बैनर से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन भाजपा का साथ नहीं छोड़ा है। वजह है आपका फेसबुक पेज, जो आज भी आपके भाजपा में होने का भरोसा दिला रहा है। क्या वजह है कि वहां अभी तक लोजपा की मौजूदगी नहीं हुई है?
जवाब:
(हकलाते और हंसते हुए) अरे नहीं-नहीं। अभी तो हम चुनाव की प्रक्रिया में आए हैं। अभी तो आज हमारा पहला वीडियो-ऑडियो बना है। धीरे-धीरे चीजें होंगी। चीजें बदलेंगी। एक दिन में तो होता नहीं सब।

सवाल: ये सब बदलाव ना करके आप चुनाव बाद भाजपा वापस जाने का एक रास्ता रख रहे हैं क्या?
जवाब:
अभी कौन सा संकल्प है। विचारधारा को तो मैंने छोड़ा नहीं है। राम जन्मभूमि हमने छोड़ी नहीं है। मंदिर हमने छोड़ा नहीं है। वैसे इसकी जरूरत नहीं है, लेकिन हम हमेशा 370 की बात करेंगे। हिंदुत्व की बात हमेशा करेंगे। इस देश की जो समस्या है, उस पर बोलते रहेंगे। राष्ट्रवादी ताकतों के साथ हमेशा रहेंगे।

सवाल: आपके हिसाब से राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के नेता नरेंद्र मोदी जी हैं?
जवाब:
हैं भी और हमेशा रहेंगे।

सवाल: बिहार में भी एक मोदी जी हैं। सुशील कुमार मोदी। क्या आप बिहार में उन्हें भाजपा का बड़ा नेता मानते हैं?
जवाब:
नरेंद्र मोदी जी देश के बड़े नेता हैं। उनके सामने विश्व के सारे नेता बौने हैं।

सवाल: मैंने सुशील मोदी जी के बारे में पूछा है?
जवाब:
(मुस्कुराते हुए) मैं नरेंद्र मोदी जी की बात कर रहा हूं।

सवाल: क्या आप मानते हैं कि आपकी सीट जदयू को जाने के पीछे सुशील कुमार मोदी की कोई चाल है?
जवाब:
हम किसी के बारे में नहीं बोल रहे। हमारी किसी से कोई शिकायत नहीं। वो स्वयं तय करें कि किसकी गलती है।

सवाल: आपके साथ लोजपा के कार्यकर्ता और नेता हैं क्या? मुझे तो भाजपा के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता आपका समर्थन करते हुए ज्यादा दिख रहे हैं?
जवाब:
अभी आपने देखा नहीं। यहां लोजपा के हजारों कार्यकर्ता थे। अभी भी लोजपा के जिला अध्यक्ष मेरे बगल में बैठे हैं। अब आपकी दृष्टि का दोष है तो मैं क्या करूं? इसमें मेरा कोई दोष नहीं है।

सवाल: भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता आपके समर्थन में यहां हैं या नहीं?
जवाब: आएं…?

सवाल: राजेंद्र सिंह के समर्थन में भाजपा के नेता कार्यकर्ता हैं या नहीं?
जवाब: देखिए…कोई हम भाजपा से अलग हो गए… एक दिन में भाजपा से अलग हो जाएंगे…कोई मेरा रक्त बदल देगा क्या? कोई मेरा जींस बदल देगा क्या? अभी तक जिसमें 37 साल घुट-घुट कर मरे हैं, वो कोई बदल देगा क्या? तो ये चीजें बदलती नहीं हैं। जो है सो है। अभी जिस सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं, वो कर रहे हैं।

सवाल: आपके कार्यकर्ता आपको बिहार का सरयू राय कह रहे हैं। वो तो पार्टी से निकले तो दोबारा पार्टी में नहीं गए?
जवाब: हमारी लड़ाई वो नहीं है। हमारी लड़ाई दिनारा का विकास है। यहां की जनता का विकास है। हमारी लड़ाई व्यक्तिवादी नहीं है। हमारी लड़ाई दिनारा के ढाई लाख मतदाताओं की लड़ाई है। उनके लिए लड़ रहे हैं, अपने लिए नहीं लड़ रहे हैं।

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