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वॉशिंगटनएक घंटा पहले
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फेसबुक और ट्विटर ने कहा है कि उन्होंने रूसी फेक वेबसाइट्स की पहचान की है और उनकी कोशिशों पर लगाम लगाया है। (प्रतीकात्मक)
- इस बार रूस की फेक वेबसाइटों की 2016 के चुनावों जितनी पहुंच नहीं
- रूसी फेक वेबसाइट पीसडाटा अक्टूबर 2019 को सबसे पहले एक्टिव हुई
2016 के बाद 2020 में भी रूस अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। फेसबुक और ट्विटर ने मंगलवार को यह जानकारी दी। रूस ने फेक अकाउंट्स और वेबसाइट्स का एक नेटवर्क बनाया है। ये लेफ्ट-विंग (वामपंथी) समर्थक न्यूज वेबसाइट की तरह दिखते हैं।
रूस से गलत सूचनाएं फैलाने का एक कैम्पेन चलाया जा रहा है। इस कैम्पेन को इंटरनेट रिसर्च एजेंसी के रूप में जाना जाता है। यह एजेंसी डेमोक्रेटिक पार्टी से वोटरों को दूर करने की कोशिश कर रही है। यही काम इसने चार साल पहले भी किया था। अफसरों के मुताबिक- फेसबुक और ट्विट पर इसकी एक्टिविटी अचानक बढ़ी है, इसका आसानी से पता लगाया जा सकता है।
फेक साइट्स की 2016 जितनी पहुंच नहीं
इंटरनेट रिसर्च एजेंसी 2016 में काफी एक्टिव थी। फेक नेटवर्क और साइट की मौजूदा समय तक उतने लोगों तक पहुंच नहीं है, जितनी 2016 के चुनावों में थी। रूस ने इन वेबसाइटों के लिए लिखने के लिए अमेरिकी नागरिकों को ही रखा है। एक रूसी साइट का नाम पीसडाटा है। यह किसी न्यूज ऑर्गनाइजेशन की तरह दिखता है। इस वेबसाइट पर एडिटर्स के नाम और फोटो भी हैं, लेकिन ये सब फर्जी है। फोटो कंप्यूटर के जरिए बनाई गई हैं।
अक्टूबर से शुरू हुई पीसडाटा
फेसबुक ने कहा- फेक न्यूज साइट पीसडाटा एक दूसरी साइट के जरिए विज्ञापन देता है। पीसडाटा को प्रमोट करने के लिए 13 फेक अकाउंट्स और दो पेज भी बनाए गए हैं। इन पेज को 14 हजार लोग फॉलो करते हैं। यह साइट अक्टूबर 2019 को सबसे पहले एक्टिव हुई। मार्च 2020 में अपने खुद के आर्टिकल पब्लिश करने शुरू किए। साइट में तीन एडिटर्स की फोटो है। जांच में ये फर्जी पाए गए।

फेसबुक ने फेक वेबसाइट पीसडाटा का एक उदाहरण भी दिया है कि किस तरह यह साइट दुनिया की और भी न्यूज कवर करके खुद को एक वैध साइट साबित करती है।
अमेरिकी लेखकों का सहारा
रूसी फेक वेबसाइट्स विज्ञापन निकालकर अमेरिकी लेखकों से आर्टिकल लिखवा रही है। नाम न छापने की शर्त पर एक लेखक ने बताया कि उसने भी रूसी वेबसाइट पीसडाटा के लिए लिखा है। उसने विज्ञापन में देखा था। पहले लेख में उसने डेमोक्रटिक पार्टी पर सवाल उठाए थे। उसका आर्टिकल ज्यों का त्यों चला था और 75 डॉलर (साढ़े पांच हजार रुपए) मिले थे।
खुफिया एजेंसियों ने चेताया था
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने कई महीनों पहले चेताया था कि रूस और दूसरे देश नवंबर में होने वाले चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं। उन्होंने कहा था कि रूसी खुफिया एजेंसियां अमेरिकियों को सोशल मीडिया के जरिए गलत सूचनाएं देकर बहकाने की साजिश कर रही हैं। अब फेसबुक और ट्विटर ने रूसी दखल के सबूत भी दिए हैं।
फेसबुक के साथ फेक साइट के बारे जानकारी जुटा रही नेटवर्क एनालिसिस कंपनी ग्राफिका के बेन निम्मो ने कहा, “रूस अपनी साइटों को मजबूत बना रहा है। वो कई झूठ फैला रहा है और इसके लिए कई उपाय कर रहा है। लेकिन, हम फिर भी उन्हें पकड़ ले रहे हैं।”
2016 में फेसबुक और ट्विटर की हुई थी आलोचना
फेसबुक और ट्विटर दोनों सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने 2016 के चुनावों में गलत सूचनाओं पर बहुत ज्यादा एक्शन नहीं लिया था, जिसके चलते दोनों की आलोचना हुई थी। उनके कर्मचारियों ने भी कंपनी की आलोचना की थी। इसके बाद एफबीआई (फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन) ने रूसी दखल पर दोनों कंपनियों को चेतावनी दी थी।
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