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मंगलवार को राजद और कांग्रेस ने एआईएमआईएम को वोटकटवा पार्टी बताया और पार्टी पर महागठबंधन को सीमांचल में भारी नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया। दोनों दलों ने यहां तक कहा कि एआईएमआईएम के कारण महागठबंधन बहुमत से चूक गया। हालांकि तथ्य राजद और कांग्रेस के आरोपों की पुष्टि नहीं करते। इसके विपरीत लोजपा ने जरूर सीमांचल की आधा दर्जन सीटों पर जदयू के मुंह से जीत का निवाला निकाल लिया।
चुनाव में एआईएमआई के हाथ अमौर, बहादुरगंज, कोचाधामन, बैसी और जोकीहाट की सीट हाथ लगी है। इनमें से अमौर, कोचाधामन और बहादुरगंज में पार्टी उम्मीदवारों को पचास फीसदी से भी अधिक मत मिले हैं। बैसी और जोकीहाट में पार्टी उम्मीवार को प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस से क्रमश: 41 हजार और सात हजार वोट अधिक मिले हैं।
हार की कहीं वजह नहीं बना एआईएमआईएम
सीमांचल की 24 सीटों में से एक भी सीट ऐसी नहीं है जहां एआईएमआईएम या उसके गठबंधन ने महागठबंधन के उम्मीदवार की हार में भूमिका अदा की हो। मसलन प्राणपुर में पार्टी-गठबंधन को महज 508, कोढ़ा में महज 2000, कटिहार में 512, मनिहारी में 2400, बरारी में 6500, ठाकुरगंज में 19000, कदवा में 1900, अररिया में 8900 वोट मिले। इनमें अररिया, कदवा, कोढ़ा, मनिहारी, ठाकुरगंज, किशनगंज में महागठबंधन के उम्मीदवार जीते। हां, कदवा, मनिहारी सहित आधा दर्जन सीटों पर लोजपा ने जरूर जदयू को हराने में सीधी भूमिका अदा की। खासतौर से कांग्रेस को कई सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के कारण गंवानी पड़ी।
राजग को हराने के लिए रणनीतिक वोट
सीमांचल की ज्यादातर सीटों पर मुसलमानों ने राजग को हराने के लिए रणनीतिगत (टेक्टिकल) वोटिंग की। मसलन मुसलमानों ने अलग-अलग सीटों पर कहीं महागठबंधन तो कहीं एआईएमआईएम के उम्मीदवारों के पक्ष में एकतरफा वोटिंग की। हालांकि यह सच्चाई है कि देश के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक सीमांचल के मुस्लिम मतदाता कथित धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले दलों से खासे नाराज थे। इसी नाराजगी के बीच एआईएमआईएम ने लगातार क्षेत्र के विकास का मुद्दा उठाया और सीमांचल विकास परिषद बनाने की घोषणा की।
पश्चिम बंगाल में हलचल
पांच सीटों पर मिली जीत से एआईएमआईएम के मुखिया असादुद्दीन ओवैसी खासे उत्साहित हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल में उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है। गौरतलब है कि राज्य में मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 28 फीसदी है। राज्य में अगले साल की शुरुआत में ही चुनाव होने हैं। अगर ओवैसी ने राज्य में बिहार की तर्ज पर ताकत लगाई तो इसका नुकसान टीएमसी और लाभ भाजपा को मिल सकता है।