Varanasi People Protest Against British Law In August Kranti – August Kranti: ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया था काशी की जनता ने, खुलेआम दी थी चुनौती

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– फोटो : अमर उजाला

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देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के आंदोलन में जैसे ही जनभागीदारी बढ़ी जनता जनार्दन ने खुलेआम सरकार को चुनौती दी थी। ब्रिटिश हुकूमत के शक्ति के प्रतीकों रेलवे स्टेशन, पोस्ट आफिस, टेलीफोन और संचार व्यवस्था क्षतिग्रस्त कर दिए गए। रेल की पटरी उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने, सरकारी इमारतों पर झंडा फहराने, पुल और पुलियों को ध्वस्त करना नौ अगस्त से शुरू आंदोलन में एक सामान्य कार्यक्रम बन गया था।

रेल और यातायात लगभग ठप हो गया था। ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतीक धू-धू कर जलने लगे थे। सबका लक्ष्य एक ही था कि अंग्रेज अब अपने देश जाएं। हमें खुली हवा में सांस चाहिए और ये गुलामी के माहौल में कतई संभव नहीं है।

12 अगस्त, 1942 को गुरेहूं गांव में एआरओ केपी अवस्थी दिन में 11:30 बजे भूमि बंदोबस्त संबंधी इजलास लगाए हुए थे। उसी समय लगभग 25 कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ कामता प्रसाद विद्यार्थी ने इजलास में प्रवेश किया। इन्होंने तोडफोड़ करते हुए सामान तहस-नहस कर दिया।

किसानों को संबोधित करते हुए विद्यार्थी जी ने कहा कि वे किसी भी प्रकार से सरकार को अपना सहयोग न दें। आंदोलनकारी एक घंटे बाद धमकी देते हुए चले गए कि कर्मचारियों ने काम नहीं रोका तो वे फिर से धावा बोलेंगे। 12 अगस्त को गुरेहूं में बंदोबस्त बंद कराने के बाद विद्यार्थी जी अपने सैनिकों के साथ हेतमपुर वापस आ गए। 

एआरओ ने सभी दस्तावेज गाजीपुर के जमींदार विंदेश्वरी सिंह के गुरेहूं छावनी में रखवा दिया और सुरक्षा के लिए आठ मोहर्रिर तैनात कर दिए गए। एआरओ ने थाना धानापुर में कामता प्रसाद विद्यार्थी, गुलाब सिंह, राजनारायण सिंह समेत 25 पर प्राथमिकी दर्ज कराई।

मामले में पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकी। न्यायालय में सभी गवाहों ने कामता प्रसाद विद्यार्थी का नाम लिया। तीन मई, 1943 को वाराणसी के प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट एम अहमद ने कामता प्रसाद विद्यार्थी, गुलाब सिंह और राजनारायण सिंह को दोषी ठहराया और तीन-तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई।

बनारस शहर में 13 अगस्त को पुन: दशाश्वमेध से एक जूलूस निकाला गया। अंग्रेज सैनिकों ने उसे रोक दिया। एक निडर राष्ट्रभक्त खनमन राम राष्ट्रीय ध्वज लिए आगे बढ़ा। उसके साथ माखन बनर्जी, लोढ़ाराम, हृदय नारायण पाठक जैसे साहसी वीर थे। गोली और लाठियों से घायल होने के बाद ध्वज की रक्षा इन वीरों ने की तथा उसे अपने हाथों से नहीं छोड़ा।

अंत में बहुत से लोगों को गिरफ्तार किया गया। इससे जुलूस में नए जोश का संचार हुआ और लोग पुलिस बल की परवाह न करते हुए आगे बढ़ने लगे। पुलिस की गोली से घायल क्रांतिकारी वंदेमातरम का जयघोष करते हुए जमीन पर गिरने लगे। इसमें बैजनाथ प्रसाद, हीरालाल शर्मा, विश्वनाथ और काशी प्रसाद आदि नवयुवक शहीद हो गए। 

 

देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के आंदोलन में जैसे ही जनभागीदारी बढ़ी जनता जनार्दन ने खुलेआम सरकार को चुनौती दी थी। ब्रिटिश हुकूमत के शक्ति के प्रतीकों रेलवे स्टेशन, पोस्ट आफिस, टेलीफोन और संचार व्यवस्था क्षतिग्रस्त कर दिए गए। रेल की पटरी उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने, सरकारी इमारतों पर झंडा फहराने, पुल और पुलियों को ध्वस्त करना नौ अगस्त से शुरू आंदोलन में एक सामान्य कार्यक्रम बन गया था।

रेल और यातायात लगभग ठप हो गया था। ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतीक धू-धू कर जलने लगे थे। सबका लक्ष्य एक ही था कि अंग्रेज अब अपने देश जाएं। हमें खुली हवा में सांस चाहिए और ये गुलामी के माहौल में कतई संभव नहीं है।

12 अगस्त, 1942 को गुरेहूं गांव में एआरओ केपी अवस्थी दिन में 11:30 बजे भूमि बंदोबस्त संबंधी इजलास लगाए हुए थे। उसी समय लगभग 25 कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ कामता प्रसाद विद्यार्थी ने इजलास में प्रवेश किया। इन्होंने तोडफोड़ करते हुए सामान तहस-नहस कर दिया।

किसानों को संबोधित करते हुए विद्यार्थी जी ने कहा कि वे किसी भी प्रकार से सरकार को अपना सहयोग न दें। आंदोलनकारी एक घंटे बाद धमकी देते हुए चले गए कि कर्मचारियों ने काम नहीं रोका तो वे फिर से धावा बोलेंगे। 12 अगस्त को गुरेहूं में बंदोबस्त बंद कराने के बाद विद्यार्थी जी अपने सैनिकों के साथ हेतमपुर वापस आ गए। 

एआरओ ने सभी दस्तावेज गाजीपुर के जमींदार विंदेश्वरी सिंह के गुरेहूं छावनी में रखवा दिया और सुरक्षा के लिए आठ मोहर्रिर तैनात कर दिए गए। एआरओ ने थाना धानापुर में कामता प्रसाद विद्यार्थी, गुलाब सिंह, राजनारायण सिंह समेत 25 पर प्राथमिकी दर्ज कराई।

मामले में पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकी। न्यायालय में सभी गवाहों ने कामता प्रसाद विद्यार्थी का नाम लिया। तीन मई, 1943 को वाराणसी के प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट एम अहमद ने कामता प्रसाद विद्यार्थी, गुलाब सिंह और राजनारायण सिंह को दोषी ठहराया और तीन-तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई।

बनारस शहर में 13 अगस्त को पुन: दशाश्वमेध से एक जूलूस निकाला गया। अंग्रेज सैनिकों ने उसे रोक दिया। एक निडर राष्ट्रभक्त खनमन राम राष्ट्रीय ध्वज लिए आगे बढ़ा। उसके साथ माखन बनर्जी, लोढ़ाराम, हृदय नारायण पाठक जैसे साहसी वीर थे। गोली और लाठियों से घायल होने के बाद ध्वज की रक्षा इन वीरों ने की तथा उसे अपने हाथों से नहीं छोड़ा।

अंत में बहुत से लोगों को गिरफ्तार किया गया। इससे जुलूस में नए जोश का संचार हुआ और लोग पुलिस बल की परवाह न करते हुए आगे बढ़ने लगे। पुलिस की गोली से घायल क्रांतिकारी वंदेमातरम का जयघोष करते हुए जमीन पर गिरने लगे। इसमें बैजनाथ प्रसाद, हीरालाल शर्मा, विश्वनाथ और काशी प्रसाद आदि नवयुवक शहीद हो गए। 

 

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