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2 महीने पहले
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छोटे से गांव में भविष्य संवारने के लिए जहां से एक उम्मीद की किरण निकलती थी वह था गांव का सरकारी स्कूल। लेकिन, स्कूल में शिक्षक नियमित रूप से नहीं आते थे और खिड़की-दरवाजे भी टूटे हुए थे। अगर मैं आपसे कहूं कि इसी हालत में पला-बढ़ा एक होनहार आज अपनी प्रतिभा से अमेरिका को रोशन कर रहा है तो इसे आप क्या कहेंगे। यह कहानी है सुपर 30 के आंगन से निकले अभिषेक राज की। अभिषेक की काबिलियत ऐसी की बचपन से ही हर क्लास में अव्वल आता था। धीरे-धीरे उसकी पढ़ाई करने की हसरतों में और भी पंख लग गए। लेकिन, गरीबी के आगे सपनों ने घुटने टेकने शुरू कर दिए। मां सुधा कुमारी पढ़ी-लिखी थीं। बेटे अभिषेक की काबिलियत और मेहनत को बर्बाद होने देना नहीं चाहती थीं। उन्होंने ठाना की वह अभिषेक को आगे पढ़ाएंगी। फिर क्या था, अपनी शिक्षा के बूते उन्होंनें ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। काफी मेहनत करने के बाद भी उन्हें महज 100 रुपए महीना ही मिल पाता। इस वाकये को याद करके आज भी अभिषेक की आंखें भर जाती हैं। लेकिन, कहते हैं ना कि उम्मीद का दामन जो नहीं छोड़ता, उसका साथ हमेशा प्रकृति देती है। अभिषेक की माताजी के साथ भी ऐसा ही हुआ। इधर अभिषेक धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था, और उधर उसकी मां पढ़ाए जा रही थी। आखिरकार वह लम्हा भी आ ही गया जब अभिषेक ने बिहार बोर्ड से दसवीं पास कर ली।
सुपर- 30 के पहले बैच का हिस्सा था अभिषेक
दसवीं के बाद की पढ़ाई जारी रखने की आस लिए अभिषेक पटना आया। सपना इंजीनियर बनने का था, लेकिन जेब में पैसे नहीं थे। सपने बिखर रहे थे। उसने कई कोचिंग संस्थाओं का दरवाजा खटखटाया। पर हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी। गरीबी का दंश झेल रहे अभिषेक के सपने उसकी जेब के आगे हारने लगे। फिर किसी तरह वह मेरे पास आया। वह साल सुपर 30 का पहला साल था। मैं सुपर 30 की नींव ही रख रहा था। सुपर 30 के लिए बच्चों के चुनाव के उद्देश्य से परीक्षा होने ही वाली थी। मेरे सामने भी पहली-पहली बार कुछ करने की चुनौती थी। अभिषेक को देखा तो लगा कि यह लड़का जरूर कुछ कर सकता है। वजह थी, उसका गजब का आत्मविश्वास। गणित के सवालों को हल करने में वह प्रयोगधर्मी था। उसकी काबलियत ने उसे मेरे पहले बैच के सभी बच्चों से अलग कर दिया था।
अमेरिका में लगी पहली नौकरी
आईआईटी प्रवेश-परीक्षा के दिन भी अभिषेक बड़े इत्मिनान से सेंटर पर गया। और आखिरकर वह दिन आ गया जब रिजल्ट आने वाला था। मैं अपने भाई प्रणव और विद्यार्थियों के साथ रिजल्ट का इंतजार कर रहा था। पहला बैच था। इसलिए घबराहट भी हो रही थी कि पता नहीं क्या होगा। मुझे याद है प्रणव ने बताया कि अभिषेक का रिजल्ट आ गया है। अच्छी रैंक के कारण उसे आईआईटी खड़गपुर में दाखिला मिला। खड़गपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद पहली नौकरी अमेरिका के ह्यूस्टन में की। उसके बाद उसने लंदन में कुछ दिन नौकरी की। एक लेक्चर देने के लिए मैं मास्को में आमंत्रित था। मेरे पास अचानक फोन आया कि सर मैं अभिषेक बोल रहा हूं और अभी मॉस्को में हूं। अभिषेक ने मेरा स्वागत जिस तरह से किया मैं अभिभूत हो गया।
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