Bihar: Employment of unemployed in election promises, Patna News in Hindi

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Bihar: Employment of unemployed in election promises - Patna News in Hindi




पटना। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के जरिए राज्य की सत्ता तक पहुंचने के लिए कोई भी राजनीतिक दल कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रही है। सभी दल मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के वादे कर रहे हैं। इसी क्रम में चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड) के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी वादों की झोली लेकर लोगों के सामने पहुंच गए, वहीं मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव भीे वादों को पूरी पोटली खोल दी। दोनों के चुनावी वादों से साफ है कि दोनों पार्टियों की नजर बेरोजगार युवाओं को आकर्षित करने की है।

उल्लेखनीय है कि दोनों दल 15-15 साल बिहार की सत्ता पर काबिज रह चुके हैं। चुनावी की तारीखों की घोषणा के साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगों से वादों की बौछार कर दी। मुख्यमंत्री ने जहां सत्ता में लौटने के बाद सात निश्चय पार्ट-2 के तहत काम करने का वादा किया, वहीं ‘युवा शक्ति बिहार की प्रगति’ के तहत युवाओं को नौकरी मिल सके इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित करने का वादा किया।

उन्होंने कौशल विकास योजना पर ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने और प्रत्येक जिले में मेगा स्किल सेंटर बनाने के साथ ही स्किल एवं उद्यमिता के लिए एक नया विभाग भी बनाने का वादा किया। मुख्यमंत्री ने युवाओं को रिझाने के लिए उद्यमिता के लिए इस बार हर किसी को मदद देने का आश्वासन दिया।

इधर, नीतीश के वादों की लंबी फेहरिस्त के बाद राजद के नेता भी पीछे नहीं रहे। तेजस्वी भी रविवार को पत्रकारों के सामने आए और सत्ता में आने के बाद दो महीने के अंदर ही 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा कर इस चुनाव में बड़ा दांव चल दिया। तेजस्वी ने सरकारी विभागों में आंकड़ों के जरिए रिक्त पदों का हवाला देते हुए कहा कि हमारी सरकार बनी तो कैबिनेट की पहली बैठक में 10 लाख युवाओं को रोजगार देने का फैसला किया जाएगा।

उन्होंने कहा, अगर उनकी पार्टी को यहां के लोग मौका देते हैं तो इन सभी रिक्त पदों पर नियुक्ति की जाएगी। उन्होंने कहा कि यह वादा नहीं मजबूत इरादा है। दीगर बात है कि दोनों पार्टियों के नेता के वादों को लेकर विरोधी प्रश्न खड़ा कर रहे हैं। एक-दूसरे पर सत्ता में रहने पर काम क्यों नहीं करने को लेकर प्रश्न पूछ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार कहते हैं कि राजनीतिक दलों का चुनाव से पहले घोषणाएं और वादा करना कोई नई बात नहीं है। यह प्रारंभ से होता आया है।

उन्होंने कहा, “कोरोना काल में कई प्रवासी मजदूर वापस लौट आए हैं, विपक्ष पिछले कुछ महीने से बेरोजगारी को मुद्दा बनाने में जुटा है। ऐसे में सत्ता पक्ष के पास भी रोजगार का वादा करना मजबूरी है।” उन्होंने कहा कि दोनों दल 15-15 साल सत्ता में रह चुके हैं, अगर इस मामले को लेकर ईमानदारी से प्रयास किया जाता तो स्थिति बदली रहती। उन्होंने हालांकि सवालिया लहजे में कहा कि चुनावी घोषणाएं और वादे कितने पूरे होते हैं, ये सभी जानते हैं।

–आईएएनएस

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