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105 प्रखंड़ों की सवा नौ सौ पंचायतें बाढ़ का कहर झेल रहीं हैं। बाढ़ में फंसी तकरीबन 70 लाख की आबादी में से 100 से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ी है। चुनाव में तबाही कोई मुद्दा नहीं होती अगर चुनाव की तारीखों का एलान बाढ़ की विभीषिका के बीच नहीं होता।
बिहार को हर बाढ़ के बाद कुछ चूड़ा और गुड़ मिल जाता है। इसी के साथ बाढ़ की समस्या के स्थायी समाधान का आश्वासन भी। हर साल बाढ़, हर साल आश्वासन। हलांकि इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बाढ़ राहत के लिए बिहार को विशेष पैकेज दिया था।
बिहार में बाढ़ से बचाव के लिए 70 के दशक के बाद कोई ठोस काम नहीं हुआ। बाद की सरकारों ने इस दिशा में आरोप-प्रत्यारोप से आगे कुछ किया भी नहीं। सबसे आसान होता है पड़ोसी देश नेपाल के सिर आरोपों का ठीकरा फोड़ना।
जानकार बताते हैं कि सीमावर्ती क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि नेपाल चाह कर भी बारिश का पानी नहीं रोक सकता। नेपाल हिमालय की ऊंची पहाड़ियों पर बसा है। पहाड़ों पर जब बारिश होती है तो वो नदियों के रास्ते बिहार में आकर तबाही मचाती है। नेपाल ने उस पानी को रोकने की कोशिश की तो वह खुद तबाह हो जाएगा।
देसी नदियां भी मचाती हैं तबाही
बिहार में बाढ़ सिर्फ नेपाल से आने वाली नदियों से नहीं आती। बिहार में गंगा नदी यूपी से आती है। आरा, छपरा, हाजीपुर, पटना, बेगूसराय, मुंगेर, लखीसराय, भागलपुर होते हुए कटिहार के बाद पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है। यूपी से ही आने वाली घाघरा गोपलागंज, सीवान और छपरा में कई जगहों पर बाढ़ लाती है।
सोन, पुनपुन और फल्गु नदी झारखंड से आती हैं। सोन सासाराम, अरवल और आरा के बड़े हिस्से में बाढ़ लाती है। पुनपुन का पानी औरंगाबाद, जहानाबाद और पटना के कुछ हिस्सों को डुबोता है। फल्गु भी गया, जहानाबाद और पटना में तबाही मचाती है। महानंदा पश्चिम बंगाल से आती है। किशनगंज और कटिहार होते हुए फिर बंगाल चली जाती है।
बाढ़ की समस्या साल दर साल बढ़ती गई
बिहार में बाढ़ पर अध्ययन करने वाली कानपुर आईआईटी की टीम के प्रमुख राजीव सिन्हा ने साफ कहा था फरक्का में गंगा नदी पर बैराज बनने की वजह से गंगा में गाद भर गया है और नदी उथली हो गई है। गंगा का बहाव धीमा हुआ है, जिससे उसकी सहायक नदियों का बहाव भी कमजोर हुआ है। बिहार की सारी नदियां गंगा में ही मिलती हैं। जाहिर है गंगा का बहाव कम होने से बाकी सभी नदियों का बहाव कम हुआ है। बाढ़ की समस्या साल दर साल बढ़ती गई।
सबने बाढ़ पर बिहार को गुमराह किया
बाढ़ के मुद्दे पर नीतीश कुमार को घेरने वाले राजद यह भूल गया है कि उसके शासनकाल में भी बाढ़ से बिहार कराहता रहा है। तब भी सरकार ने आश्वासनों के के अलावा कुछ नहीं दिया था। बिहार में पिछले दस सालों में आई भयानक बाढ़ ने हजारों जिंदगियां लील लीं। राज्य के आपदा विभाग के मुताबिक बाढ़ से इस साल अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
- 2016 में राज्य के 12 जिले बाढ़ की चपेट में थे। इस साल 250 लोगों की मौत हुई थी।
- 2013 में 20 जिले बाढ़ प्रभावित थे और 250 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
- 2011 में 25 जिले बाढ़ से घिरे और 249 मारे गए।
- 2008 में राज्य के 18 जिले बाढ़ से प्रभावित हुए। इस साल 258 लोगों की डूबने और बहने से मौत हुई।
- 2007 में तो डूबने और बह जाने से 1287 लोगों की मौत हुई। इस साल 22 जिले बाढ़ से बूरी तरह से प्रभावित हुए थे।
- 2004 में बाढ़ की वजह से 885 लोगों को जान गंवानी पड़ी। इस साल 20 जिले बाढ़ प्रभावित थे।
- 2002 में राज्य के 25 जिले बाढ़ प्रभावित थे और 489 लोगों की मौत हुई थी।
- सन 2000 में राज्य के 33 जिले बाढ़ प्रभावित थे और 336 लोगों की मौत हुई थी।
(मतलब लालू-राबड़ी शासनकाल से लेकर नीतीश कुमार के 15 वर्षों के शासन तक बाढ़ की तबाही एक ही रही और सरकारों का रवैया भी एक ही रहा।)