Bihar: assembly election 2020 third front has not been successful in Bihar, in 2005 Ram Vilas Paswan kept wandering for the key of King Maker. | बिहार में थर्ड फ्रंट नहीं रहा है सफल, 2005 में रामविलास पासवान किंग मेकर की चाबी लिए घूमते रह गए थे

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पटना31 मिनट पहले

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फरवरी 2005 में हुए विधानसभा के चुनाव में 29 सीट जीतकर रामविलास पासवान किंग मेकर बन गए थे।

  • राज्य में कई ऐसे दल हैं जो एक फ्रंट बनाने की जुगत में हैं या फिर बना चुके हैं
  • इक्के-दुक्के नेता जीतते भी हैं तो सरकार बनाने की बारगेनिंग में लग जाते हैं

बिहार में विधानसभा चुनाव हैं। बात उस समय से शुरू करते हैं, जब 2005 के फरवरी में विधानसभा चुनाव में बिहार में खंडित जनादेश आया था। उस समय रामविलास पासवान 29 सीट जीतकर किंग मेकर की भूमिका में आए थे और वो सरकार बनाने की चाबी अपने साथ लेकर घूमने लगे थे। नतीजा यह हुआ कि ना सरकार बनी और ना ही रामविलास पासवान किंग मेकर बने। राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। उसके बाद 2005 के अक्टूबर-नवंबर में हुए चुनाव में भाजपा और जदयू की बहुमत वाली सरकार बन गई।

इस बार के विधानसभा चुनाव में मुख्य राजनीतिक दल को छोड़ दें , तो कई ऐसे दल हैं जो एक फ्रंट बनाने की जुगत में हैं या फिर बना चुके हैं। जानकारों का मानना है कि ऐसे फ्रंट कभी सफल नहीं हो पाए हैं। वहीं कई राजनीतिक दल भी यह मानते हैं कि जो मुख्य पार्टियां हैं वही अपने फ्रंट की सरकार बना सकती हैं।

विधानसभा के चुनाव में राज्यों में छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल होते हैं। वह अपने अंकगणित के मुताबिक चुनाव लड़ते हैं और अपने जातीय समीकरण को देखते हुए उनकी पार्टी चुनाव में शामिल होती है। कभी-कभी ये छोटी पार्टियां बड़े दलों के लिए काफी सहायक हो जाती हैं। वजह यह है कि यदि चुनाव बाद दो फ्रंट में अंकगणित गड़बड़ आता है तो यह अपने छोटे अंक से उसकी भरपाई कर देते हैं।

2015 के विधानसभा चुनाव में ये छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल एक साथ नहीं आए थे। ये अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन इस बार ये छोटे दल एक साथ आए हैं। पप्पू यादव ने अलग एक फ्रंट बनाया है। वहीं आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा ने बसपा के साथ भी अपना एक अलग गठबंधन बनाया है। ऐसे में यह गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में रहे या ना रहे लेकिन यदि इन्हें सफलता मिलती है तो यह सरकार के साथ बारगेनिंग करने की स्थिति में आ ही जाते हैं। ये दल इसी को लेकर अपनी राजनीतिक रोटी आगे के लिए सेंक लेते हैं।

उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव के गठबंधन को प्रमुख राजनीतिक पार्टियां पूरी तरह से कमजोर और बेबुनियाद मानती हैं। जदयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने बिहार में कोई फ्रंट काम नहीं करने वाला है। यह जो अंट-फ्रंट बना रहे हैं वे बेचैन आत्मा हैं। बस ये चुनाव में ही दिखेंगे, उसके बाद गायब हो जाएंगे।

राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि कोई थर्ड फ्रंट, फोर्थ फ्रंट बना ले, लेकिन तेजस्वी यादव फ्रंट फुट पर हैं। तेजस्वी यादव को 12 करोड़ बिहार की जनता मुख्यमंत्री बनाएगी। 10 नवंबर को सबका अंत हो जाएगा। मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि इस बार के चुनाव में सबने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय ले लिया है।

बिहार में थर्ड थर्ड फ्रंट की प्रासंगिकता पर वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि बिहार में थर्ड फ्रंट कभी भी सफल नहीं रहा है। 2005 में रामविलास पासवान भी चाबी लेकर घूमते रहे लेकिन सफल नहीं रहे। यह जो छोटे-छोटे दल होते हैं वे चुनाव के बाद टूट ही जाते हैं। रवि उपाध्याय ने उदाहरण देते हुए कहा कि आरएलएसपी भी टूटकर जदयू में मिल गई थी। उन्होंने बताया कि इन दलों के जो मुखिया होते हैं उनकी महत्वाकांक्षा अलग-अलग होती है।

यह सरकार के साथ बारगेनिंग कर लेते हैं और अंत में इनका कोई फ्रंट नहीं रह जाता है। बिहार में जो अभी फ्रंट बने हैं वे मुख्य राजनीतिक दलों के सामने बहुत ही हल्के और बिना आधार वाले हैं। हालांकि इनमें यदि एक-दो जीत जाते हैं तो आगे चलकर वह जिनकी सरकार बनी रहेगी, उसमें शामिल हो जाएंगे।

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