नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी और चिराग पासवान
– फोटो : Amar Ujala
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अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि विवाद के फैसले के बाद मंदिर निर्माण की आधारशिला और ढांचा विध्वंस में सभी आरोपियों के 22 जनवरी होने के ताजा फैसले को बिहार चुनाव में भाजपा भुना सकती है। भाजपा राम मंदिर मुद्दे को उपलब्धि के तौर पर पेश करना चाहेगी। दूसरी ओर विपक्ष रोजगार, महंगाई, डूबती अर्थव्यवस्था और राज्य की बदहाली को मुद्दा बनाकर केंद्र और राज्य सरकारों की तैयारी कर चुका है। विपक्ष के निशाने पर नीतीश के सुशासन को लेकर सवाल होंगे।
नफा-नुकसान…
बिहार में भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे को पहली भी भुनाया है। 1992 में ढांचा विध्वंस की घटना के बाद 1995 में भाजपा को 41 सीटों पर जीत मिली थी। ये बिहार में भाजपा की तब तक की सबसे बड़ी जीत थी। 2000 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 67 सीटों पर जीत दर्ज की। नवंबर 2005 में हुए चुनावों में भाजपा को राम मंदिर मुद्दा ठंडे बस्ते में डालना महंगा पड़ा। भाजपा को 55 सीटों पर संतोष करना पड़ा। 2010 में फिर भाजपा ने पुराने मुद्दे को प्रमुखता दी और 91 सीटें जीतकर इतिहास रचा।
पिछली बार खिसक गई थी जमीन
2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे को राष्ट्रीय राजनीति का मुद्दा माना और चुनाव में इस से बची। नीतीश के राजद के साथ जाने से मजबूत महागठबंधन से चुनाव के नतीजे आए तो भाजपा की जमीन खिसक गई। भाजपा 91 सीटों से सिमटकर 53 सीटों पर अटक गई। राम मंदिर के फैसले और ढांचा विध्वंस के आरोपियों के बरी होने का राग भाजपा फिर अलापेगी।
अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि विवाद के फैसले के बाद मंदिर निर्माण की आधारशिला और ढांचा विध्वंस में सभी आरोपियों के 22 जनवरी होने के ताजा फैसले को बिहार चुनाव में भाजपा भुना सकती है। भाजपा राम मंदिर मुद्दे को उपलब्धि के तौर पर पेश करना चाहेगी। दूसरी ओर विपक्ष रोजगार, महंगाई, डूबती अर्थव्यवस्था और राज्य की बदहाली को मुद्दा बनाकर केंद्र और राज्य सरकारों की तैयारी कर चुका है। विपक्ष के निशाने पर नीतीश के सुशासन को लेकर सवाल होंगे।
नफा-नुकसान…
बिहार में भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे को पहली भी भुनाया है। 1992 में ढांचा विध्वंस की घटना के बाद 1995 में भाजपा को 41 सीटों पर जीत मिली थी। ये बिहार में भाजपा की तब तक की सबसे बड़ी जीत थी। 2000 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 67 सीटों पर जीत दर्ज की। नवंबर 2005 में हुए चुनावों में भाजपा को राम मंदिर मुद्दा ठंडे बस्ते में डालना महंगा पड़ा। भाजपा को 55 सीटों पर संतोष करना पड़ा। 2010 में फिर भाजपा ने पुराने मुद्दे को प्रमुखता दी और 91 सीटें जीतकर इतिहास रचा।
पिछली बार खिसक गई थी जमीन
2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे को राष्ट्रीय राजनीति का मुद्दा माना और चुनाव में इस से बची। नीतीश के राजद के साथ जाने से मजबूत महागठबंधन से चुनाव के नतीजे आए तो भाजपा की जमीन खिसक गई। भाजपा 91 सीटों से सिमटकर 53 सीटों पर अटक गई। राम मंदिर के फैसले और ढांचा विध्वंस के आरोपियों के बरी होने का राग भाजपा फिर अलापेगी।
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Fri Oct 2 , 2020
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