- पहली बार कई देशों से वर्चुअल लाइव स्ट्रीमिंग, लोगों ने लिया हिस्सा
दैनिक भास्कर
Jul 05, 2020, 07:58 AM IST
गया. आषाढ़ पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध ने अपने उन पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया, जो ज्ञानप्राप्ति के पहले उनके साथ रहे थे। इस घटना को बौद्ध साहित्य में धम्मचक्कपवत्तनं (धर्मचक्रप्रवर्तन) कहा जाता है। इसे भगवान बुद्ध ने सारनाथ के मृगदाव में दिया था। उन्होंने प्रथम उपदेश में उन सभी सत्यों की जानकारी दी, जिसका उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। दुख व उसके कारणों, दुख खत्म हो सकता है और उसे समाप्त करने के उपाय। यही उपदेश बौद्ध धर्म व अध्यात्म की नींव है। इसके दूसरे दिन से वर्षावास शुरू होता है।
भगवान बुद्ध ने पहला वर्षावास अपने 60 शिष्यों के साथ चार माह तक किया था। इस मौके पर महाबोधि मंदिर में शनिवार को पूर्णिमा के एक दिन पहले विशेष प्रार्थना सभा बोधिवृक्ष के नीचे हुई। बाद में शाम में मंदिर परिसर के दीपघर में दीप प्रज्वलित किए गए। इस मौके पर मुख्य भिक्षु चालिंदा, भिक्षु दीनानंद, भिक्षु बोधानंद सहित बीटीएमसी सचिव नांजे दोरजे व अन्य मौजूद थे।
राष्ट्रपति ने की समारोह की शुरुआत
भगवान बुद्ध के जीवन की इस महत्वपूर्ण घटना को इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कंफेडरेशन को वैश्विक रूप से मनाया गया। इसकी वर्चुअल लाइव स्ट्रीमिंग की गई। दिल्ली से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इंडियन कौंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस के अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्ध, संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजीजू मौजूद थे। इसकी शुरुआत सारनाथ के मूलगंधकुटी से धम्मचक्कपवतनं सुत्तपाठ से हुई। कंबोडिया की राजकुमारी, चीन द्वारा सुत्तपाठ, मंगोलिया द्वारा थेरवाद परंपरानुसार सुत्तपाठ हुआ।
डिजिटल कंजूर का लोकार्पण
मंगोलियन कंजूर (भगवान बुद्ध के उपदेश का संग्रह)के पहले भाग का राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लोकार्पण किया। इसके बाद मंगोलिया के राष्ट्रपति के संदेश को वहां के राजदूत ने पढ़ा। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भी संबोधित किया। आषढ़ पूर्णिमा के महत्व पर सारनाथ के मूलगंधकुटी से लाइव स्ट्रीमिंग की गई। इसी के तहत अपराह्न 12 बजे महाबोधि मंदिर, श्रीलंका के कैंडी, थाइलैंड से सुत्तपाठ किया गया।
आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व
बौद्ध संस्कृति में आषाढ़ पूर्णिमा का बहुत महत्व है। आज के ही दिन भगवान बुद्ध अपनी माता के गर्भ में आये थे। इसके अलावे आज के ही दिन उन्होंने गृह त्याग किया और सत्य की खोज में भटकते रहे। वैशाख पूर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति के बाद वह सारनाथ पहुंचे और आज के ही दिन पंच वर्गीय भिक्षुओं को प्रथम उपदेश, धम्मचक्कपवतनम (धर्मचक्रप्रवर्तन) किया था।