न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Sun, 11 Oct 2020 05:49 AM IST
फणीश्वर नाथ रेणु (फाइल फोटो)
– फोटो : Twitter
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बात आपातकाल से ठीक पहले की है। कांग्रेस का बोलबाला था। 1970-72 से ही आपातकाल जैसा माहौल बनने लगा था। उन दिनों इंदिरा परिवार की करीबी रहीं चर्चित लेखिका महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद में लेखकों का सम्मेलन बुलाया था। इसमें बिहार से भी कई साहित्यकार व लेखकों ने हिस्सा लिया था। इसी माहौल में बिहार विधानसभा का 1972 का चुनाव हुआ। तब पूर्णिया जिले के फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र से जाने-माने साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु निर्दलीय उम्मीदवार हो गए। कांग्रेस ने सरयू मिश्र को अपना उम्मीदवार बनाया था।
सरयू मिश्र की गिनती उस समय राज्य के वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में होती थी। सोशलिस्ट पार्टी से लखनलाल कपूर उम्मीदवार थे। सरयू मिश्र, लखन लाल कपूर व रेणुजी तीनों मित्र हुआ करते थे। 1942 के आंदोलन में तीनों एक साथ भागलपुर जेल में बंद भी थे। रेणुजी का चुनाव चिह्न नाव था। उनके पक्ष में जहां साहित्यकारों और लेखकों की टोली गांव-गांव घूम कर प्रचार कर रही थी वहीं, लखन लाल कपूर के पक्ष में समाजवादी नेता भी पैदल व अपने साधनों से जनसंपर्क कर रहे थे। कांग्रेस के नेता सरयू मिश्र के पक्ष में थे।
चुनाव के दौरान रेणु जी के पक्ष में नारा लगा था- कह दो गांव-गांव में, अबकी इस चुनाव में, वोट देंगे नाव में। तीनों उम्मीदवारों ने चुनाव के दौरान एक- दूसरे के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की। चुनाव परिणाम जब आया तो रेणु जी चौथे नंबर पर रहे। दरअसल. रेणुजी इस चुनाव में जीतने के लिए नहीं खड़े हुए थे, बल्कि हुकूमत के प्रतीकात्मक विरोध में चुनाव लड़ा था।
बात आपातकाल से ठीक पहले की है। कांग्रेस का बोलबाला था। 1970-72 से ही आपातकाल जैसा माहौल बनने लगा था। उन दिनों इंदिरा परिवार की करीबी रहीं चर्चित लेखिका महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद में लेखकों का सम्मेलन बुलाया था। इसमें बिहार से भी कई साहित्यकार व लेखकों ने हिस्सा लिया था। इसी माहौल में बिहार विधानसभा का 1972 का चुनाव हुआ। तब पूर्णिया जिले के फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र से जाने-माने साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु निर्दलीय उम्मीदवार हो गए। कांग्रेस ने सरयू मिश्र को अपना उम्मीदवार बनाया था।
सरयू मिश्र की गिनती उस समय राज्य के वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में होती थी। सोशलिस्ट पार्टी से लखनलाल कपूर उम्मीदवार थे। सरयू मिश्र, लखन लाल कपूर व रेणुजी तीनों मित्र हुआ करते थे। 1942 के आंदोलन में तीनों एक साथ भागलपुर जेल में बंद भी थे। रेणुजी का चुनाव चिह्न नाव था। उनके पक्ष में जहां साहित्यकारों और लेखकों की टोली गांव-गांव घूम कर प्रचार कर रही थी वहीं, लखन लाल कपूर के पक्ष में समाजवादी नेता भी पैदल व अपने साधनों से जनसंपर्क कर रहे थे। कांग्रेस के नेता सरयू मिश्र के पक्ष में थे।
चुनाव के दौरान रेणु जी के पक्ष में नारा लगा था- कह दो गांव-गांव में, अबकी इस चुनाव में, वोट देंगे नाव में। तीनों उम्मीदवारों ने चुनाव के दौरान एक- दूसरे के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की। चुनाव परिणाम जब आया तो रेणु जी चौथे नंबर पर रहे। दरअसल. रेणुजी इस चुनाव में जीतने के लिए नहीं खड़े हुए थे, बल्कि हुकूमत के प्रतीकात्मक विरोध में चुनाव लड़ा था।
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Sun Oct 11 , 2020
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