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सार
- पिछली बार राजद, जदयू, कांग्रेस का 26 में से 20 सीटों पर कब्जा।
- इस बार राजद-जदयू अलग-अलग होने से राजग को फायदे के आसार।
विस्तार
मगध प्रक्षेत्र के पांच जिलों गया, औरंगाबाद, अरवल, जहानाबाद और नवादा की कुल 26 विधानसभा सीटों पर इस बार जबरदस्त टक्कर है। इनमें छह सीटे आरक्षित हैं। 2015 में मगध की माटी पर राजद का जलवा था। पार्टी ने 26 सीटों में से 10 पर जीत दर्ज की थी। तब राजद और जदयू का गठबंधन था। जदयू ने भी छह सीटें जीतीं। इसी गठबंधन का हिस्सा कांग्रेस ने भी चार सीटों पर जीत दर्ज की थी। कुल मिलाकर 26 में 20 सीटों पर राजद-जदयू-कांग्रेस गठबंधन की जीत हुई थी। राजग को बची छह सीटों पर संतोष करना पड़ा था। भाजपा को सिर्फ पांच सीटें और एक सीट हम को मिली थी।
गया में भाजपा के प्रेम को कांग्रेस के ओंकार से चुनौती
पिछले तीस सालों में भाजपा को गया सीट पर बड़ी चुनौती सिर्फ एक बार मिली है। 2000 के विधानसभा चुनाव में भाकपा के मसूद मंजर ने गिनती के आखिरी वक्त तक भाजपा उम्मीदवार प्रेम कुमार का पीछा किया था। मात्र 3.959 मतों के अंतर से प्रेम कुमार जीत पाए थे। 1990 से लगातार जीतते आ रहे प्रेम कुमार के खिलाफ 2015 में कांग्रेस ने प्रेम रंजन डिंपल को मैदान में उतारा। टक्कर जबरदस्त रही। प्रेम कुमार फिर भी जीते। एक बार फिर भाजपा ने नीतीश कैबिनेट के सदस्य प्रेम कुमार को मैदान में उतारा है। प्रेम कुमार को कांग्रेस उम्मीदवार अखौरी ओंकार नाथ श्रीवास्तव चुनौती दे रहे हैं।
इमामगंज में मांझी-उदय नारायण फिर आमने-सामने
इमामगंज से हम अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मैदान में हैं। 2015 में जीतन मांझी ने जदयू के कद्दावर नेता उदय नारायण चौधरी को हरा कर जीत दर्ज की थी। तब वो भाजपा के साथ थे। एक बार फिर जीतन राम मांझी भाजपा के साथ हैं। इस बार वो भाजपा के अलावा जदयू के साथ भी हैं। नक्सलियों के गढ़ में जीतन राम मांझी की अच्छी पकड़ है। इस विधानसभा क्षेत्र में कुशवाहा, मांझी, यादव और मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा है। गांवों में मूलभूत सुविधाएं पहुंच नहीं पाई हैं। पहाड़ और जंगली इलाका होने की वजह से ये इलाका सैकड़ों नक्सली घटनाओं का गवाह बना। इस बार महागठबंधन ने यहां से राजद नेता और पूर्व विधानसभा स्पीकर उदय नारायण चौधरी को फिर से मैदान में उतारा है।
नवादा में कौशल-विभा के बीच टक्कर
मगध प्रक्षेत्र का नवादा प्राकृतिक मनोरम के लिए मशहूर है। 1990 में भाजपा के कृष्णा प्रसाद ने यहां से जीत दर्ज की थी। बाद में वो लालू प्रसाद के सहयोगी बन गए। उनके निधन के बाद उनके छोटे भाई राजभल्लभ यादवे ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली। 1995 में निर्दलीय ही जीत दर्ज की। 2000 में वह राजद के साथ हो गए और चुनाव जीते तो मंत्री भी बने। 2005 और 2010 में राजभल्लभ यादव को पूर्णिमा यादव ने चुनाव में हराया। 2015 में फिर राजभल्लभ यादव ने राजद के टिकट पर विधानसभा में वापसी की। 2018 में दुष्कर्म के आरोप में राजभल्लभ को सजा हो गई। 2019 के उपचुनाव में जदयू के कौशल यादव को जीत मिली। इस बार राजभल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी को राजद ने अपना उम्मीदवार बनाया है। जदयू की तरफ कौशल यादव ही मैदान में हैं।
मगध साम्राज्य के चित्तौड़गढ़ औरंगाबाद में भाजपा के राजपूत चेहरा रामाधार सिंह एक बार फिर कमल खिलाने निकले हैं। 2005 और 2010 में शानदार जीत दर्ज करने वाले रामाधार सिंह को 2015 में कांग्रेस के आनंद शंकर सिंह से हार का सामना करना पड़ा था। आनंद शंकर सिंह एक बार फिर महागठबंधन की तरफ से मैदान में हैं। टक्कर देने के लिए राजग ने रामाधार सिंह को ही मोर्चे पर उतारा है।
बेलागंज में त्रिकोणीय संघर्ष
महागठबंधन के सामने इस चुनाव में औरंगाबाद के साथ-साथ बेलागंज सीट को बचाना बड़ी चुनौती है। बेलागंज में पिछली बार राजद के सुरेंद्र प्रसाद यादव जीते थे। राजद ने सुरेंद्र प्रसाद यादव को ही मैदान में उतारा है, जबकि जदयू ने अभय कुशवाहा को मैदान में उताकर लड़ाई को रोचक बना दिया है। लोजपा ने रामाश्रय शर्मा के जरिए लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है।
मगध का साम्राज्य बनाए रखना चुनौती
2015 में राजद ने अरवल की दो सीटों में से एक पर जीत दर्ज की थी। जहानाबाद की तीन सीटों में से राजद ने दो सीटें जीत ली थीं। राजद ने औरंगाबाद जिले की छह सीटों में एक पर जीत की थी और नवादा की पांच सीटों में से दो को अपने नाम किया था। सबसे बड़ी जीत उसे गया जिले में मिली थी। गया की 10 सीटों में चार पर राजद ने जीत दर्ज की थी। तब और अब में अंतर आ गया है। तब नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक कुशवाहा और कुर्मी भी राजद के खाते में गया था। इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। दलित वोटर भी 2015 का समीकरण को तोड़ते नजर आ रहे हैं। इसलिए इस बार राजद के लिए मगध का साम्राज्य बचाए रखना बड़ी चुनौती है।