यहां के देवघाट पर गायों के झुंड के बीच कुछ लोग पिंडदान करने के लिए काफिले में फल्गू नदी तट की ओर जाते दिखते हैं। बचनू लाल पाठक कहते हैं, पितृ मुक्त तीर्थधाम में लोग बाहर से आते हैं। यहां ऐसा विकास होना चाहिए कि लोग आकर्षित हों। जितने लोग भी आते हैं वह बोधगया की बात करते हैं और वहीं से वापस चले जाते हैं। भगवान विष्णु की गया की बात कोई नहीं करता। प्लूरल्स पार्टी की प्रत्याशी और पेशे से शिक्षिका अलका सिंह गया शहर की गंदगी को दूर कराना चाहती हैं। वह कहती हैं, जो लोग गया आते भी हैं वो ऐसा अनुभव लेकर जाते हैं कि दोबारा आना न चाहें। शहर में वाशरूम नहीं हैं। गंदगी इतनी कि पूछिए भी मत।
गया जिले की जनसंख्या करीब 43 लाख है और यहां कुल 10 विधानसभा सीटें हैं। ऐतिहासिक और पौराणिक होने के बावजूद गया को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में शामिल नहीं किया गया। जेनएनयू विवि से पढ़ाई फिर 25 साल जापान में रहने के बाद अपने शहर लौटे अदित्य कुमार विजय बखूबी समझाते हैं। आदित्य कहते हैं, गया के बारे में विदेशों में खूब नाम है, लेकिन हालत देखकर दु:ख होता है। पूरे एशिया से बोधगया में काफी पर्यटक आते हैं, जबकि यहां से 12 किमी दूर गया के विष्णुपद तीर्थ तक पर्यटक नहीं पहुंच पाते।
पितृपक्ष के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग
देवघाट पर ही भगवा कुर्ता पहने और माथे पर चंदन लगाए एक सज्जन बोलते हैं, हम जिस वर्ग से आते हैं उसने न सरकार से सहयोग लिया, न ही आरक्षण लिया। हमने सरकार को वोट, टैक्स और समर्थन इसलिए दिया कि हिंदूवादी विचारधारा से आते हैं। कोरोना के कारण पितृपक्ष पखवाड़े में रौनक नहीं रही। जब पंडा समाज के हजारों लोग दाने-दाने को मोहताज थे तो नेता सोशल डिस्टेंसिंग बना के दिल्ली-पटना में रह रहे थे। इसलिए विकास के लिए व्यवस्था को बदलना चाहिए।
बदलाव के लिए विकल्प नहीं
सुमित अहिरवाद कहते हैं, ज्ञान की भूमि में आज शिक्षा क्षेत्र विकसित नहीं है, सरकारी स्कूलों में टीचर नहीं हैं। पढ़ाई कैसे हो रही है उसका कोई जायजा लेने वाला नहीं। गया के ही गोकुल दुबे की राय है कि लोग इतिहास से सीखते हैँ, और उसे न दोहराना ही बुद्धिमानी है। बदलाव के लिए उसके एवज में कोई बढ़ के तो आना चाहिए। जिसे वोट दे सकें।
बोधगया में खूब चहल-पहल
गया शहर से करीब 12 किमी दूर बोधगया का नजारा काफी बदला-बदला सा नजर आता है। यहां मंदिरों के बाहर लगी लंबी लाइन लगी रहती है। तरह-तरह की दुकानें हैं। इस तीर्थस्थल में हमेशा चहल-पहल रहती है लेकिन जैसे ही बोधगया के क्षेत्र से बाहर निकलेंगे गंदगी के ढेर और अव्यवस्थाएं देखने को मिलेंगी। नालंदा से बोधगया आए एक बौद्ध भिक्षु बताते हैं, पूरे बिहार में ही अलग-अलग दिक्कतें हैं, लेकिन जो सबसे बड़ी समस्या है वो शिक्षा की है। वहीं, गया में रहने वाले युवराज नई दिल्ली में सीए की तैयारी कर रहे हैं। लॉकडाउन में वापस लौटे युवराज कहते हैं, सबसे पहले शिक्षा को सही करना पड़ेगा। पहले हमारे यहां की नालंदा विवि काफी प्रसिद्ध था। लेकिन उसी धरती पर आज शिक्षा बदहाल है।
मेला न लगने से पंडा समाज खफा
पितृपक्ष में हर बार गया में होने वाला मेला इस बार कोरोनाकाल में न होने से यहां के लोगों की कमर टूट गई है। गया के लोगों की जीविका और आमदनी का जरिया पितृपक्ष मेला ही है। पंडा समाज के लोगों की नाराजगी इस बात से हैं कि अगर चुनाव हो सकते थे तो मेला क्यों नहीं लगने दिया। इस पर कृषि मंत्री प्रेम कुमार कहते हैं कि चुनाव तो आयोग का फैसला था, इस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं। युवा रवि कुमार कहते हैं कि चुनाव के बाद नेता अंतरध्यान हो जाते हैं। यहां हर ओर अधूरे काम हैं।आज नेता हमसे मिल रहे हैं, लेकिन आठ महीने से लॉकडाउन में किसी ने हाल तक नहीं पूछा, न ही कोई आया।
पर्यटन के क्षेत्र में बहुत कामः प्रेम
गया क्षेत्र के विकास के लिए उपेक्षा के आरोप पर यहां की राजनीति पर पिछले 30 साल से काबिज बिहार के कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार कहते हैं, गया में पर्यटन के क्षेत्र में काफी काम हुआ है और आगे चल भी रहा है। बड़े पर्यटकों के लिए हमने कानून का राज स्थापित किया है। पर्यटनस्थलों को सड़कों से जोड़ा जा रहा है। प्रेम कुमार की टक्कर कांग्रेस प्रत्याशी मोहन श्रीवास्तव से है।
गया के साथ भेदभाव हुआः मोहन
कांग्रेस प्रत्याशी मोहन श्रीवास्तव ने आरोप मढ़ा कि जदयू सरकार ने पूरी तरह से गया से भेदभाव किया है। शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधा नहीं है। यहाँ तक इस ज्ञान और मोक्ष की भूमि को स्मार्ट सिटी में भी शामिल नहीं किया। हमने डिप्टी मेयर रहते हुए जो संभव था, गया जी के लिए किया। शमशान घाट से लेकर सड़क तक सब पर काम किया। सत्ता में आए तो गया के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।