Munger Violence : Know More About The Interesting History Of Munger Bihar – स्पेशल रिपोर्ट : महाभारत काल के मोदगिरी से बंदूकों के शहर तक, योगनगरी ‘मुंगेर’ का धूमिल हुआ वर्तमान

1934 में आए भूकंप में मुंगेर का दृश्य
– फोटो : munger.nic.in

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विधानसभा चुनाव के बीच दुर्गा विसर्जन को लेकर मुंगेर में हुई हिंसा ने पूरे देशभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। लेकिन ये शहर आज जितना सुर्खियों में है उससे ज्यादा पहले भी चर्चित रह चुका है। गंगा किनारे बसे इस शहर को कभी मोदगिरी के नाम से जाना जाता था। महाभारत के सभापर्व और दिग्विजय पर्व में भी इस शहर का उल्लेख मिलता है, जब बाहुबली भीम ने अंग के राजा कर्ण को पराजित किया तो उसके पश्चात उसकी लड़ाई मोदगिरी में मौदगल्य के साथ हुई। उस समय का मोदगिरी ही आज का मुंगेर है। उद्योगों की बात करें तो एक समय ऐसा भी था कि इस क्षेत्र को बंगाल के बर्मिंघम (इंग्लैंड में उद्योगों के लिए मशहूर शहर) के रूप में जाना जाता था। यह बात बिहार-बंगाल विभाजन से पहले की है। एशिया का सबसे बड़ा रेलवे वर्कशॉप (जमालपुर रेल कारखाना) भी इस शहर के औद्योगिक रूप से मजबूत होने की कहानी बयां करती है। अंग्रेजों ने देश में पहली रेल लोकोमोटिव कार्यशाला खोलने के लिए मुंगेर जिले के जमालपुर को चुना क्योंकि यहां दक्ष कामगार उपलब्ध थे।

दक्षिणी बिहार में आने वाला यह शहर मुंगेर प्रमंडल का मुख्यालय है। मुंगेर प्रमंडल के अंतर्गत छह जिले आते हैं- मुंगेर, जमुई, खगड़िया, लखीसराय, बेगूसराय और शेखपुरा। मुंगेर को योगनगरी भी कहा जाता है। जिले में स्थित योग विद्यालय दुनिया के श्रेष्ठ योग संस्थानों में से एक है।

सीता कुंड
सीता कुंड गर्म पानी का झरना है जो मुंगेर शहर से चार मील दूर पूर्व में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि माता सीता ने इसी जगह पर अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता सिद्ध की थी। अग्नि परीक्षा के बाद प्रज्वलित अग्नि गर्म जल में परिवर्तित हो गई, जहां राज्यभर से और राज्य के बाहर से भी धर्मावलंबी स्नान करने पहुंचते हैं।

बंगाल के आखिरी नवाब मीर कासिम की राजधानी भी बनी मुंगेर

हम अगर इतिहास और इस शहर की ऐतिहासिक जिक्र करें तो उसपर एक किताब लिखी जा सकती है। बंगाल के आखिरी नवाब मीर कासिम की राजधानी भी मुंगेर बनी। यहां मीर कासिम ने गंगा नदी के किनारे एक भव्य किले का निर्माण कराया, जो 1934 में आए भूकंप में पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। लेकिन इसके अवशेष अभी भी शेष है।

अवैध हथियार निर्माण का इतिहास है पुराना

खेती पर निर्भरता के बावजूद ‘पर कैपिटा इनकम’ के मामले में मुंगेर पटना के बाद दूसरे नंबर पर है। वर्तमान में यह शहर अवैध हथियारों के निर्माण के लिए खासा चर्चा में रहा है। पिछले कुछ सालों के दौरान शहर से 21 एके-47 बरामद किए जा चुके हैं। मुंगेर में अवैध हथियार निर्माण का इतिहास काफी पुराना है। कहा जाता है कि अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए मीर कासिम के सेनापति ने मुंगेर में बंदूक फैक्टरी की स्थापना की। बाद में अंग्रेजी शासनकाल में भी बंदूक फैक्टरी संचालित होती रही, यहीं कारण है कि लोग आज भी कहते हैं कि इस शहर के नदी-नाले-खेत रायफल उगलते हैं।

 

कहा जाता है कि बंदूक फैक्ट्री में काफी संख्या में लोगों को बहाल किया गया। लेकिन, बाद में बंदूक फैक्ट्री बदहाली की कगार पर पहुंच गया। ऐसे में कारीगरों को जब काम मिलना बंद हुआ, तो वे अवैध रुप से हथियार बनाने में जुट गए। देसी कट्टा से शुरू हुआ कारोबार बंदूक की अवैध बिक्री तक भी पहुंच गया। मुंगेर के कारीगर इतने माहिर हो गए कि एक बार कारबाइन को देख उसकी भी डुप्लीकेसी शुरू कर देते हैं। देखते-देखते मुंगेर अवैध हथियार के निर्माण और बिक्री का बड़ा हब बन गया। हथियार तस्करों ने बंगाल को अपना नया ठिकाना बना लिया। बंगाल के साथ ही पश्चिमी यूपी में हथियार का निर्माण करना शुरु किया। हथियार की खरीद करने देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग यहां पहुंचते हैं। इसका फायदा उठाते हुए हथियार तस्करों ने विदेशी हथियार भी मुंगेर लाकर बेचना शुरू कर दिया।

मुंगेर में किसने शुरू करवाया ये कारोबार

17वीं शताब्दी में बंगाल के अंतिम नवाब कासिम अली खान ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित की थी। खान ने यहां बंदूकें बनाने का काम शुरू कराया था और तबसे यह परंपरा बदस्तूर जारी है। फैक्टरी एरिया में गन बनाने वाली आज भी 36 यूनिट हैं। हालांकि, अब चार-पांच चालू यूनिटों में केवल 20-25 कर्मचारी रह गए हैं। केंद्र सरकार ने इस यूनिट को हर साल 119 गन बनाने की अनुमति दी है। बताया जाता है कि 1962 के भारत-चीन युद्घ के दौरान रक्षा मंत्रालय को 410 बोर मस्कट की जरूरत थी। मुंगेर की गन फैक्ट्री ने नमूने के तौर पर तीन 410 बोर मस्कट और तीन मैरी लाइट पिस्टल की आपूर्ति की थी। मुंगेर की अर्थव्यवस्था में गन फैक्ट्री की अहम भूमिका हुआ करती थी।

 

एक बार फिर ये शहर सुर्खियों में है। दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दिन लगने वाला मेला इलाके में काफी चर्चित है। इस दौरान केवल शहर ही नहीं बल्कि आसपास के गांव-कस्बों के लोग भारी संख्या में यहां आते हैं। कहा जा रहा है कि दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान निहत्थे श्रद्धालुओं पर पुलिस की तरफ़ से कथित तौर पर गोलियां चलाई गईं और उन्हें लाठियों से पीटा गया। जिसमें एक की मौत हो गई वहीं गोलियों से घायल कई लोग अस्पताल और निजी क्लीनिकों में इलाजरत हैं। इनके अलावा भी बहुत सारे लोग जख्मी हुए हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाते हुए एसपी और डीएम का तबादला कर दिया है। यहां नए अधिकारियों को नियुक्त किया गया है। फिलहाल इस मामले की जांच चल रही है।

विधानसभा चुनाव के बीच दुर्गा विसर्जन को लेकर मुंगेर में हुई हिंसा ने पूरे देशभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। लेकिन ये शहर आज जितना सुर्खियों में है उससे ज्यादा पहले भी चर्चित रह चुका है। गंगा किनारे बसे इस शहर को कभी मोदगिरी के नाम से जाना जाता था। महाभारत के सभापर्व और दिग्विजय पर्व में भी इस शहर का उल्लेख मिलता है, जब बाहुबली भीम ने अंग के राजा कर्ण को पराजित किया तो उसके पश्चात उसकी लड़ाई मोदगिरी में मौदगल्य के साथ हुई। उस समय का मोदगिरी ही आज का मुंगेर है। उद्योगों की बात करें तो एक समय ऐसा भी था कि इस क्षेत्र को बंगाल के बर्मिंघम (इंग्लैंड में उद्योगों के लिए मशहूर शहर) के रूप में जाना जाता था। यह बात बिहार-बंगाल विभाजन से पहले की है। एशिया का सबसे बड़ा रेलवे वर्कशॉप (जमालपुर रेल कारखाना) भी इस शहर के औद्योगिक रूप से मजबूत होने की कहानी बयां करती है। अंग्रेजों ने देश में पहली रेल लोकोमोटिव कार्यशाला खोलने के लिए मुंगेर जिले के जमालपुर को चुना क्योंकि यहां दक्ष कामगार उपलब्ध थे।

दक्षिणी बिहार में आने वाला यह शहर मुंगेर प्रमंडल का मुख्यालय है। मुंगेर प्रमंडल के अंतर्गत छह जिले आते हैं- मुंगेर, जमुई, खगड़िया, लखीसराय, बेगूसराय और शेखपुरा। मुंगेर को योगनगरी भी कहा जाता है। जिले में स्थित योग विद्यालय दुनिया के श्रेष्ठ योग संस्थानों में से एक है।


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