5 days cm in bihar, satish prasad singh, died of corona covid 1968 satish prasad singh | 5 दिन के सीएम ने 1 दिन में कैबिनेट बैठा बिहारी किसानों को दी थी बड़ी सौगात

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पटना2 घंटे पहले

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सतीश प्रसाद सिंह 1968 में 5 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे।

  • किसानों को आलू बिहार से बाहर भेजने की छूट पर मुहर लगाई थी
  • सतीश प्रसाद सिंह किसी दूसरे को सीएम बनाने के लिए बने थे मुख्यमंत्री

(सुनील कुमार सिन्हा.) अनिल कपूर की ‘नायक’ फिल्म तो आपने देखी ही होगी। देखकर लगा भी होगा कि सीएम बने तो ऐसा। बिहार में इसी फिल्म की तरह कुछ नाटकीय घटनाक्रम 1968 में भी हुआ था। तब खगड़िया के सतीश सिंह ‘नायक’ बन गए थे, हालांकि वह फिल्म की तरह कई बड़े निर्णय नहीं ले सके थे। सतीश प्रसाद सिंह बने तो किसी दूसरे को सीएम बनाने के लिए, लेकिन इस प्रक्रिया के लिए बुलाई कैबिनेट बैठक में उन्होंने अपनी कुशवाहा जाति के लिए बड़ा फैसला भी ले लिया। यह फैसला फिर कोई बदल नहीं सका। उसी फैसले के कारण बिहार के किसान यहां से आलू उत्पादन कर बाहर भेजने में सक्षम हुए। सतीश प्रसाद सिंह का सोमवार को नई दिल्ली में कोरोना के कारण निधन हो गया। वे 5 दिन के मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए जाने जाते हैं।

5 दिन के सीएम का निधन:बिहार में गैर कांग्रेसी सरकारों के दूसरे सीएम रहे थे सतीश प्रसाद सिंह; विधायक बनने से पहले फिल्म भी बनाई थी

बीपी मंडल के लिए सीएम का रास्ता बनाने को बनाए गए थे मुख्यमंत्री

1967 तक कांग्रेस की सरकार ही रही थी। इसी साल पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनसंघ, प्रज्ञा सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रांति दल और भाकपा के संयुक्त विधायक दल (संविद) सरकार के मुख्यमंत्री थे महामाया प्रसाद। कांग्रेस इस सरकार को टिकने नहीं देना चाह रही थी और इससे पहले के मुख्यमंत्री के. बी. सहाय इसमें पूरी ताकत झोंक रहे थे। इसी क्रम में संविद सरकार के मंत्री बी. पी. मंडल को आगे किया गया। चूंकि मंडल सांसद थे और विधान परिषद या विधानसभा के सदस्य नहीं बन पाने के कारण छह महीने के बाद मंत्रिमंडल से बाहर हो गए तो बी. पी. मंडल को के. बी. सहाय ने ही आगे किया। तकनीकी परेशानी थी कि छह महीना पूरा होने पर इस्तीफा देकर फिर तो मंत्रिमंडल में आ जाते, लेकिन सीएम बनने पर ज्यादा बड़ा बवाल हो जाता या यूं कहें कि यह असंभव जैसा होता। इसलिए, रास्ता निकालने की बात आई तो सहाय के करीब परमानंद प्रसाद ने रास्ता सुझाया कि कोई दूसरा कुछ समय के लिए सीएम बन जाए और वह राज्यपाल के पास विधान परिषद के लिए बी. पी. मंडल के नाम की अनुशंसा कर दे तो काम हो जाएगा। अब ऐसा विश्वासी नाम ढूंढ़ा जाने लगा। दो नामों पर बात हुई- एक तो जगदेव प्रसाद और दूसरे सतीश प्रसाद सिंह। जगदेव प्रसाद कुर्सी वापस करेंगे कि नहीं, इसपर यकीन नहीं हुआ तो बी. पी. मंडल ने सतीश सिंह के नाम पर सहमति जताई। मंडल कोसी क्षेत्र के थे और सतीश भी खगड़िया के ही। बात पक्की हो गई। महामाया प्रसाद की सरकार गिरी और सतीश प्रसाद सिंह मुख्यमंत्री बने।

कैबिनेट का मौका मिला तो कुशवाहा जाति की बड़ी समस्या कर दी दूर

सतीश प्रसाद को कैबिनेट बुलाकर एक अनुशंसा करनी थी कि बी. पी. मंडल को राज्यपाल विधान परिषद के लिए नॉमिनेट कर दें। सतीश सिंह ने मंडल के लिए यह तो कर दिया, लेकिन साथ ही एक और फैसला ले लिया। यह फैसला भी इसलिए क्योंकि उनकी कुशवाहा जाति के ही ज्यादातर किसान आलू उत्पादन करते थे और पंजाब जैसे राज्यों में मांग के बावजूद बिहार से बिक्री के लिए भेजने की छूट नहीं थी। सतीश प्रसाद को कुल मिलाकर यही एक दिन कैबिनेट मिलना था, इसलिए उन्होंने किसानों को आलू बिहार से बाहर भेजने की छूट पर मुहर लगा दी। इसके बाद वही सब हुआ, जिसकी योजना पहले बनी थी। सबसे कम समय के इस मुख्यमंत्री ने ‘लव-कुश’ जाति को पहली बार राजनीति में उभारने का काम इन्हीं 5 दिनों के अंदर बनी छवि के जरिए किया। बाद के दौर में सतीश प्रसाद भले चर्चा से लगभग गुम रहे, लेकिन बिहार के सबसे कम दिन के इस मुख्यमंत्री के गांव को लोगों ने सतीश नगर का नाम दे दिया।

(लेखक चाणक्य स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष हैं, ये उनके अपने अनुभव हैं।)

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