बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
– फोटो : ANI
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बिहार की जनता ने राजग को सरकार बनाने का जनादेश तो दे दिया है, लेकिन नई सरकार के लिए सबकुछ अब पहले जैसा आसान नहीं होगा। नीतीश कुमार अब तक अपने एक मात्र सहयोगी भाजपा के साथ सरकार चलाते रहे हैं। भाजपा में संगठन पर मजबूत पकड़ रखने वाले सुशील कुमार मोदी का उनको पूरा समर्थन मिलता रहा है। यही वजह है कि पार्टी के बड़े नेता गिरिराज सिंह के नीतीश विरोध को पार्टी ने कभी महत्व नहीं दिया।
इस बार स्थितियां उलट हैं। इस बार भाजपा के साथ-साथ जीतन राम मांझी की हम और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी भी गठबंधन का हिस्सा है। ये दोनों पार्टियां न सिर्फ गठबंधन का हिस्सा भर हैं बल्कि सरकार चलाने के लिए जरूरी बहुमत के आंकड़े के भागीदार हैं। मतलब, इनमें से किसी एक के नाराज होने का मतलब है सरकार के लिए जरूरी बहुमत के आंकड़ों से दूर हो जाना।
जाहिर है ऐसे में सबकी अपनी शर्तें होंगी और सबका अपना नजरिया भी। मंत्रिमंडल से लेकर बाकी जगहों पर इसका दबाव बहुत साफ दिखेगा। ऐसे में नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी बड़े गठबंधन के सभी सहयोगियों को साथ लेकर चलना।
सरकार गठन से पहले ही वीआईपी अध्यक्ष मुकेश सहनी के समर्थक उनको उपमुख्यमंत्री बनाने की मांग करने लगे हैं। नीतीश कुमार की सरकार में सुशील मोदी के बराबर का कद शायद ही किसी को मिले। मुकेश सहनी तो खुद अपना चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में उनके दबाव के आगे जदयू-भाजपा कितना झुकेंगे ये देखना दिलचस्प होगा। यही हाल पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हम का भी है। मांझी की राजनीति का इतिहास देखें तो साफ होता है कि वो दबाव की राजनीति करते हैं। चार विधायकों वाली ये पार्टी सरकार में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी चाहेगी।
भाजपा का एक गुट मांझी और सहनी को दे रहा शह
भाजपा का वो खेमा, जो चाहता है कि मुख्यमंत्री पार्टी का हो, मांझी और मुकेश सहनी को अंदरखाने शह भी दे रहा है। भाजपा की मुश्किल यह है कि वो बिना नीतीश के सरकार नहीं बना सकती। नीतीश जानते हैं कि उनके बिना सरकार नहीं बननी है। भाजपा जानती है कि नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो वो गठबंधन से अलग हो जाएंगे। नीतीश वैसे तो बहुत दबाव बर्दाश्त नहीं करते, लेकिन दबाव कि सियासत से निपटना जानते हैं।
सार
- वीआईपी के मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम चाहते हैं समर्थक।
- पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी दबाव राजनीति में माहिर।
विस्तार
बिहार की जनता ने राजग को सरकार बनाने का जनादेश तो दे दिया है, लेकिन नई सरकार के लिए सबकुछ अब पहले जैसा आसान नहीं होगा। नीतीश कुमार अब तक अपने एक मात्र सहयोगी भाजपा के साथ सरकार चलाते रहे हैं। भाजपा में संगठन पर मजबूत पकड़ रखने वाले सुशील कुमार मोदी का उनको पूरा समर्थन मिलता रहा है। यही वजह है कि पार्टी के बड़े नेता गिरिराज सिंह के नीतीश विरोध को पार्टी ने कभी महत्व नहीं दिया।
इस बार स्थितियां उलट हैं। इस बार भाजपा के साथ-साथ जीतन राम मांझी की हम और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी भी गठबंधन का हिस्सा है। ये दोनों पार्टियां न सिर्फ गठबंधन का हिस्सा भर हैं बल्कि सरकार चलाने के लिए जरूरी बहुमत के आंकड़े के भागीदार हैं। मतलब, इनमें से किसी एक के नाराज होने का मतलब है सरकार के लिए जरूरी बहुमत के आंकड़ों से दूर हो जाना।
जाहिर है ऐसे में सबकी अपनी शर्तें होंगी और सबका अपना नजरिया भी। मंत्रिमंडल से लेकर बाकी जगहों पर इसका दबाव बहुत साफ दिखेगा। ऐसे में नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी बड़े गठबंधन के सभी सहयोगियों को साथ लेकर चलना।
सरकार गठन से पहले ही वीआईपी अध्यक्ष मुकेश सहनी के समर्थक उनको उपमुख्यमंत्री बनाने की मांग करने लगे हैं। नीतीश कुमार की सरकार में सुशील मोदी के बराबर का कद शायद ही किसी को मिले। मुकेश सहनी तो खुद अपना चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में उनके दबाव के आगे जदयू-भाजपा कितना झुकेंगे ये देखना दिलचस्प होगा। यही हाल पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हम का भी है। मांझी की राजनीति का इतिहास देखें तो साफ होता है कि वो दबाव की राजनीति करते हैं। चार विधायकों वाली ये पार्टी सरकार में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी चाहेगी।
भाजपा का एक गुट मांझी और सहनी को दे रहा शह
भाजपा का वो खेमा, जो चाहता है कि मुख्यमंत्री पार्टी का हो, मांझी और मुकेश सहनी को अंदरखाने शह भी दे रहा है। भाजपा की मुश्किल यह है कि वो बिना नीतीश के सरकार नहीं बना सकती। नीतीश जानते हैं कि उनके बिना सरकार नहीं बननी है। भाजपा जानती है कि नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो वो गठबंधन से अलग हो जाएंगे। नीतीश वैसे तो बहुत दबाव बर्दाश्त नहीं करते, लेकिन दबाव कि सियासत से निपटना जानते हैं।
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Fri Nov 13 , 2020
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