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- Children Becoming Indifferent To Online Classes, 80% Of The Daily Routine Is Impaired, This Trend Is More In Children Up To 8th Class
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नई दिल्लीएक घंटा पहलेलेखक: अनिरुद्ध शर्मा
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- लगातार दूसरे सत्र में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू, पिछले सत्र में बिना स्कूल गए बच्चे अगली कक्षा में पहुंचे
ऑनलाइन क्लास से बच्चे पढ़ाई के प्रति उदासीन हो रहे हैं, स्कूल को लेकर बच्चों में उत्साह खत्म हो रहा है। सबकुछ ऑटोमोड में चल रहा है, आलस बढ़ गया है। 80% बच्चों का सोने-जागने, नहाने-ब्रश करने का डेली रूटीन बिगड़ गया है, उन्हें ऑनलाइन क्लास के चलते मिली ढिलाई भाने लगी है, खासकर 8वीं तक के बच्चों में यह प्रवृत्ति ज्यादा है।
सीबीएसई की स्टूडेंट हेल्पलाइन की प्रमुख काउंसलर गीतांजलि कुमार बताती हैं कि उनके पास आने वाले हर 10 पैरेंट्स में से 8 इसी विषय पर बात कर रहे हैं। पैरेंट्स और बच्चों के बीच टोकाटाकी, बहस और चिड़चिड़ापन अब हर घर की कहानी है। कोरोना के चलते इस हफ्ते देशभर में लगातार दूसरा शैक्षणिक सत्र शुरू हुआ, जिसमें ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है।
पिछले सत्र में बिना स्कूल गए सभी बच्चे अगली कक्षाओं में प्रवेश पा गए। गीतांजलि का कहना है कि बच्चों में स्कूल को लेकर उत्साह, उमंग नहीं है। कुछ बच्चे तो स्कूल जाना ही नहीं चाहते, उन्हें ये आरामतलबी रास आने लगी है। अनुशासन कमजोर हुआ। टाइम टेबल का पालन, नियमित दिनचर्या में रहना-ये बातें पूरी तरह से बिगड़ गई हैं। बच्चे आलसी हो रहे हैं। बचपन के साल हमारे पूरे जीवन की नींव हैं, इस दौर में हमारी नींव ही कमजोर हो रही है।
नेशनल प्रोग्रेसिव स्कूल काॅन्फ्रेंस के पूर्व चेयरमैन और एहल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल के निदेशक डॉ. अशोक पांडेय के मुताबिक बीते साल में लर्निंग लॉस तो हुआ ही, इसके दूरगामी नतीजे होंगे। अब इस हानि का विस्तार होता जा रहा है, अब भविष्य में इसकी भरपाई कैसे होगी ये चिंता का विषय है। बेचैनी का दौर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
इसका परिणाम शरीर पर मस्तिष्क पर पड़ता है। ऐसे में अभिभावकों और शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों की मन:स्थिति ठीक रखें, यदि इसमें बदलाव आ रहा है तो कड़ी प्रतिक्रिया न दें। परिजनों, दोस्तों से बात कर समस्याओं को हल करें, ताकि बच्चों के मन और सेहत पर लंबे समय तक प्रभाव न पड़े।
बच्चों की बोरियत दूर करने के लिए उन्हें हॉबी से जोड़ें: मनोवैज्ञानिक
प्रख्यात मनोविज्ञानी डॉ. समीर पारीख कहते हैं कि बच्चों ने इस स्थिति को बड़ों के मुकाबले बेहतर तरीके से हैंडल किया। अचानक ऑनलाइन पढ़ाई में शिफ्ट होना आसान नहीं था, न शिक्षकों के लिए और न ही बच्चों के लिए, पर सबने किया। यह असल स्कूल के मुकाबले अच्छा नहीं हो सकता, लेकिन इससे जीरो पर तो नहीं रहे।
स्थिति हमारे काबू में नहीं थी। इसलिए इसके सकारात्मक पहलुओं को देखना चाहिए। यह जरूरी है क्योंकि कोविड तो अब भी है। हमें बच्चों पर दबाव नहीं डालना है, उनका मूड स्विंग हो, कभी कुंठित, निराश या चिड़चिड़ापन दिखे तो परेशान न हों, यह स्वाभाविक है। उनके साथ खेलें, फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाने की कोशिश करें। आर्ट, म्यूजिक, राइटिंग, रीडिंग, पोएट्री, डांस, एक्टिंग जैसी हॉबी को बढ़ावा दें।