former Indian women’s kho-kho captain Sarika Kale says there was a time when she could afford only one meal a day for almost a decade due to financial problems | खो-खो टीम की पूर्व कप्तान सारिका बोलीं- मुझे भले ही आज अर्जुन अवॉर्ड मिल रहा, लेकिन जिंदगी के 10 साल ऐसे बीते जब एक वक्त का खाना ही मिलता था

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7 घंटे पहले

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सारिका काले की कप्तानी में 2016 के साउथ एशियन गेम्स में भारतीय महिला टीम ने गोल्ड जीता था। -फाइल

  • सारिका काले 2016 के साउथ एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वालीं भारतीय टीम की कप्तान थीं
  • उन्होंने कहा कि इस खेल ने मेरी जिंदगी बदल दी और अब मैं महाराष्ट्र में बतौर खेल अधिकारी काम कर रही हूं

इस साल अर्जुन अवॉर्ड के लिए चुनीं गईं खो-खो टीम की पूर्व कप्तान सारिका काले आज भी संघर्ष के दिन नहीं भूलीं हैं। इस पुरस्कार के लिए चुने जाने पर उन्होंने कहा कि मेरी जिंदगी में 10 साल ऐसे थे, जब मैं आर्थिक तंगी के कारण दिन में एक वक्त का ही खाना खा पाती थी। लेकिन इस खेल ने मेरी जिंदगी बदल दी।

सारिका फिलहाल महाराष्ट्र सरकार में बतौर स्पोर्ट्स ऑफिसर काम कर रही हैं। उन्हें 29 अगस्त यानी राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर अर्जुन पुरस्कार दिया जाएगा।

मुझे दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था: सारिका

2016 के साउथ एशियन गेम्स में टीम को अपनी कप्तानी में गोल्ड जिताने वाली काले ने कहा कि मुझे भले ही इस साल अर्जुन अवॉर्ड के लिये चुना गया है, लेकिन मुझे अब भी अपने पुराने दिन याद हैं। जब मुझे दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था।

‘खो-खो ने मेरी जिंदगी बदल दी’

उन्होंने आगे कहा कि अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण ही मैं इस खेल से जुड़ी और इसने मेरी जिंदगी बदल दी और अब मैं खेल अधिकारी के पद पर काम कर रही हूं।

’13 साल की उम्र में खो-खो खेलना शुरू किया’

इस 27 साल की खिलाड़ी ने बीते दिनों को याद करते हुए बताया कि मेरे चाचा उस्मानाबाद में खो-खो खेलते थे और वही मुझे 13 साल की उम्र में पहली बार मैदान पर ले गए थे। इसके बाद से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और तब से खो-खो से जुड़ी हुईं हूं।

दादा-दादी की कमाई से ही हमारा परिवार चलता था

उन्होंने आगे कहा कि मेरी मां सिलाई और घर के अन्य काम करती थी। मेरे पिताजी शारीरिक रूप से अक्षम थे। इसी कारण से ज्यादा कमा नहीं पाते थे। हमारा पूरा परिवार मेरे दादा-दादी की कमाई पर निर्भर था। उस समय मुझे तभी खास खाना मिलता था, जब मैं कैंप या किसी चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने के लिए जाती थी। हालांकि, परेशानियों के बावजूद परिवार ने हमेशा मेरा साथ दिया और कभी खो-खो खेलने से नहीं रोका।

कोच की समझाइश के बाद सारिका दोबारा मैदान पर लौटीं

सारिका ने 2016 में परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण खेल छोड़ने का फैसला कर लिया था। तब कोच चंद्रजीत जाधव उनकी मदद को आगे आए और उनकी समझाइश के बाद सारिका दोबारा मैदान पर लौंटीं।

कोच जाधव उस समय को याद करते हुए कहते हैं कि तब सारिका इतनी परेशान हो गईं थीं कि उन्होंने खेल छोड़ने का फैसला कर लिया था। मुझसे बात करने के बाद वह मैदान पर लौटीं और यह उसके करियर का टर्निंग पॉइंट था। उसने अपना खेल जारी रखा और पिछले साल उसे सरकारी नौकरी मिल गई, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार आ गया।

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