Bihar Assembly Election 2020: Bihar Campaign Faces Virtual Test Amid Coronavirus Cases – नीतीश की वर्चुअल रैली के दावे और हकीकत, पार्टियों के लिए अग्निपरीक्षा साबित होगा ये चुनाव

कोरोना वायरस महामारी के बीच अक्तूबर- नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। कोविड-19 संकट के बीच देश में यह पहला चुनाव होगा। इस दौरान चुनाव बूथ पर सामाजिक दूरी के कड़े नियमों का पालन किया जाएगा। 

वहीं, कोरोना के चलते राजनीतिक रैलियों के आयोजन पर पाबंदी लगी है, इसे ध्यान में रखते हुए बिहार में राजनीतिक पार्टियों ने वर्चुअल (आभासी) माध्यम का सहारा लिया है।  हालांकि, संबोधन के इस माध्यम की वजह से राजनीतिक पार्टियों के सामने कई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं। इसमें सबसे बड़ी चुनौती राज्य की टेली-डेनसिटी का कम होना, इंटरनेट तक कम पहुंच और संचार के माध्यमों तक लोगों की पहुंच का कम होना है। 

ये तीनों माध्यम अभियान में संभावित मतदाताओं तक पहुंचने में एक चुनौती हैं और उन तक पहुंचना अप्रत्यक्ष संचार और डिजिटल उपकरणों पर निर्भर करेगा। ये चुनौतियां कोरोना से पहले होने वाले चुनावों के दौरान पैदा होने वाली समस्याओं से भी ज्यादा बड़ी हैं। 

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पहले थी ये समस्याएं
पहले राजनीतिक पार्टियों को रैलियों के साइज, प्रचार अभियान, डोर-टू-डोर अभियान के लिए सामान और उम्मीदवारों के चयन जैसी चुनौतियों से निपटना होता था, लेकिन कोरोना के चलते अब इन्हें नई परेशानियों से निपटना होगा। इन सब चीजों को देखते हुए बिहार में होने वाले चुनाव किसी परीक्षा से कम नहीं है। 

आंकड़े बता रहे राज्य की हालत
बिहार में टेली-डेनसिटी (किसी दिए गए क्षेत्र में प्रति 100 लोगों पर टेलीफोन कनेक्शन की संख्या) सबसे कम है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के आंकड़ों के अनुसार बिहार में टेली-डेनसिटी 59 है, जबकि देश में यह संख्या 89 है। 

ट्राई के डाटा के अनुसार, बिहार में इंटरनेट की पहुंच 2019 के अंत तक प्रति 100 लोगों पर 32 ग्राहक है, जबकि देशभर का औसत 54 है। ये भारत के 22 दूरसंचार सेवा क्षेत्रों में सबसे कम है। वहीं, बिहार के ग्रामीण इलाकों में प्रति 100 लोगों पर केवल 22 इंटरनेट ग्राहक हैं। ग्रामीण इलाकों में राज्य की 89 फीसदी आबादी रहती है। 

संचार के माध्यमों तक पहुंच के मामले में भी बिहार की स्थिति बहुत दयनीय है। 2015-16 में किए गए चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में 61 फीसदी महिलाओं और 36 फीसदी पुरुषों की जनसंचार माध्यमों तक पहुंच नहीं थी।

सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तुलना में बिहार में जनसंचार माध्यमों की पहुंच नहीं रखने वाली महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है, जबकि पुरुषों की हिस्सेदारी के मामले में बिहार झारखंड से पीछे है।

इन सब चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि बिहार विधानसभा चुनाव राजनीतिक पार्टियों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।

सीएम नीतीश की रैली को महज 4.5 हजार लोगों ने ही देखा
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहली वर्चुअल रैली उतनी सफल नहीं हो पाई, जितनी मानी जा रही थी। दावा किया जा रहा था कि सीएम की वर्चुअल रैली को 26 लाख लोग देखेंगे। हालांकि, सीएम की रैली के बाद ये दावे धरे के धरे रह गए। 

तकनीकी कारणों के चलते इस रैली की लाइव स्ट्रीमिंग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नहीं हो पाई। इस रैली का आयोजन एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किया गया, जिसमें अधिकतम रियल टाइम 4.5K (साढ़े चार हजार) लोग ही देखते हुए पाए गए।

बिहार की जनता ने नीतीश को नकार दिया : तेजस्वी
नीतीश कुमार की वर्चुअल रैली से पहले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी कुमार के उन पर सवालों की बैछार की और उनसे इन सवालों के जवाब मांगे। रैली समाप्त होने के बाद तेजस्वी ने कहा, ‘आज हमने सीएम जी से 10 सवाल पूछे थे, परन्तु उनका जवाब उन्होंने नहीं दिया। वर्चुअल रैली में मुख्यमंत्री जी परेशान दिख रहे थे, जो हाल एक मार्च की रैली में हुआ था सुपर डुपर फ्लॉप, उसी तरह का हाल इनकी वर्चुअल रैली का हो गया। बिहार की जनता ने नीतीश जी को नकार दिया। 

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