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बिहार की राजनीति के संदर्भ में भी गणित का यही नियम दशकों से चला आ रहा है। प्रदेश के तीन प्रमुख दल राजद, भाजपा और जदयू भी त्रिभुज के तीन अलग-अलग भुजाओं के समान ही हैं और हाल के दिनों की राजनीतिक परिपाटी की समीक्षा करें तो पाएंगे कि राज्य के इन्हीं तीन दलों में से किन्हीं दो दलों की भुजाएं मिल जा रही हैं और तीसरे दल से बड़ी बन सत्तारूढ़ गठबंधन का स्वरूप ले ले रही हैं।
अपवाद रहा 2014 का लोकसभा चुनाव
इस संदर्भ में साल 2005 (भाजपा+ जदयू), 2010 (भाजपा+ जदयू) और 2015 (राजद+ जदयू) के बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों को उदाहरण के रूप में समीक्षा की जा सकती है। अपवाद 2014 का लोकसभा चुनाव रहा था, तब राज्य के तीनों प्रमुख दल राजद, जदयू और भाजपा की भुजाएं अलग-अलग होकर लकीर का स्वरूप ले चुकी थी और तीनों दलों (राजद-जदयू-भाजपा) की लकीर की लंबाई से बिहार की जनता रूबरू हुई थी। तब के लोकसभा चुनाव में भाजपा, राजद और जदयू को क्रमशः 31, 9 और 2 सीटों पर जीत मिली थी। मतलब जब तीनों दल अलग-अलग चुनाव लड़े तब उनके वास्तविक जनाधार का अंदाजा लगा।
इस साल हो रहे बिहार विधानसभा चुनाव में भी त्रिभुज की दो भुजाएं (भाजपा+जदयू) एक हो गई हैं। मगर बिहार में अकेले चुनाव लड़ रही लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) जदयू पर आक्रामक होकर एनडीए की एक भुजा को लकीर में तब्दील कर अपनी ताकत का एहसास कराना चाह रही है और एक भुजा बनना चाह रही है।
लोजपा के 134 उम्मीदवार मैदान में
बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा के कुल 134 उम्मीदवार मैदान में हैं। कुल उम्मीदवारों में से 114 जदयू के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं। जबकि पहले चरण की 71 सीटों में से लोजपा के कुल 42 प्रत्याशी हैं, जिनमें से 35 जदयू के खिलाफ खड़े हैं। पहले चरण में अतरी, दिनारा, सासाराम, संदेश, जहानाबाद, ब्रह्मपुर और ओबरा में लोजपा की उम्मीदवारों की स्थिति सशक्त है और यहां लोजपा प्रत्याशी जदयू उम्मीदवारों पर भारी पड़ रहे हैं। सासाराम से पार्टी के प्रत्याशी रामेश्वर चौरसिया हैं।
रामेश्वर चौरसिया 80 के दशक से ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भाजपा से जुड़े रहे हैं। हाल के दिनों में भाजपा नेतृत्व से क्षुब्ध होकर उन्होंने लोजपा का दामन थाम लिया और फिलहाल चुनावी मैदान में हैं। भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय मंत्री रहे रामेश्वर चौरसिया का कहना है कि सुशील मोदी की साजिश के तहत मुझे टिकट से वंचित किया गया।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगे जिस बिहार भाजपा की रीढ़ रबर सी हो गई थी, उसी भाजपा से एक-दो नहीं कई सरयू राय एक झटके में निकलकर लोजपा के साथ हो लिए। इनमें कई नाम हैं जैसे दिनारा से चुनाव लड़ रहे राजेंद्र सिंह, जहानाबाद से इंदु कश्यप, संदेश से श्वेता सिंह आदि. कामोवेश इन सभी प्रत्याशियों का विरोध जदयू और उसके शीर्ष नेतृत्व से है। हालांकि, जदयू की ओर से बयान जारी कर लोजपा और उसके उम्मीदवारों को वोटकटवा बताया जा रहा है।
जदयू ने लोजपा को वोटकटवा बताया
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगे जिस बिहार भाजपा की रीढ़ रबर सी हो गई थी, उसी भाजपा से एक-दो नहीं कई सरयू राय एक झटके में निकलकर लोजपा के साथ हो लिए। इनमें कई नाम हैं जैसे दिनारा से चुनाव लड़ रहे राजेंद्र सिंह, जहानाबाद से इंदु कश्यप, संदेश से श्वेता सिंह आदि. कामोवेश इन सभी प्रत्याशियों का विरोध जदयू और उसके शीर्ष नेतृत्व से है। हालांकि, जदयू की ओर से बयान जारी कर लोजपा और उसके उम्मीदवारों को वोटकटवा बताया जा रहा है।
दरअसल जदयू को इस चुनाव में दो-दो फ्रंट से चुनौतियां मिल रही हैं। लोजपा के अलावा जदयू की राजद से 77 सीटों पर सीधी लड़ाई है। इसके अलावा कांग्रेस से 22, सीपीआई (माले) से 10, सीपीएम से तीन और सीपीआई से एक सीट पर लड़ाई है। वहीं भाजपा के खिलाफ राजद 51 सीटों पर चुनावी मैदान में है और कांग्रेस के 48, सीपीआई (माले) के आठ, सीपीआई के तीन और सीपीएम के एक प्रत्याशी भाजपा के विरुद्ध खड़े हैं।
इस विकट राजनीतिक परिस्थिति में आम लोगों के बीच यह समझ गहरी होती जा रही है कि लोजपा भाजपा की ही दूसरी टीम है। हालांकि पार्टी नेतृत्व इसको लेकर कई बार यह संदेश दे चुका है कि एनडीए गठबंधन में सिर्फ चार दल भाजपा-जदयू-हम-वीआईपी ही हैं। इस परिस्थिति को लेकर महागठबंधन के नेता भी संशय में हैं। उधर भाजपा के कार्यकर्त्ता और कैडर लोजपा प्रत्याशियों को हाथों-हाथ ले रहे हैं। इससे जदयू नेताओं के मन में दोनों बातें चल रही हैं कि भाजपा ने पहले ही इस स्थिति को संभालने की कोशिश क्यों नहीं की और अब जदयू के नेता-कार्यकर्त्ता दबी जुबान में ही सही इसका ठीकरा भाजपा पर ही फोड़ रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोजपा के साथ जो भी जुड़े हैं उनका लगाव भावनात्मक है। दूसरी ओर मजबूत संगठन खड़ा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि चिराग पासवान ने एक बड़ा रिस्क लिया है। चिराग या तो रोशन होंगे या मिट सकते हैं। लेकिन, एक बात तय है कि जदयू की तुलना में लोजपा का वोट शेयर इस चुनाव में बढ़ेगा भले ही उसका विधानसभा में संख्या बल जदयू से कम हो। ऐसा अधिक सीटों पर जुझारू लोजपा प्रत्याशियों की वजह से होगा। अब देखना यह है कि इस चुनाव में विषंबाहु त्रिभुज की सबसे सबसे छोटी भुजा है कौन दल होता है। लोजपा का चिराग पासवान के नेतृत्व में फिर से पुनर्जन्म होता है या मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिर काबिज होकर नीतीश कुमार यथास्थिति का रिन्यूअल करेंगे।
बिहार की राजनीति के संदर्भ में भी गणित का यही नियम दशकों से चला आ रहा है। प्रदेश के तीन प्रमुख दल राजद, भाजपा और जदयू भी त्रिभुज के तीन अलग-अलग भुजाओं के समान ही हैं और हाल के दिनों की राजनीतिक परिपाटी की समीक्षा करें तो पाएंगे कि राज्य के इन्हीं तीन दलों में से किन्हीं दो दलों की भुजाएं मिल जा रही हैं और तीसरे दल से बड़ी बन सत्तारूढ़ गठबंधन का स्वरूप ले ले रही हैं।
अपवाद रहा 2014 का लोकसभा चुनाव
इस संदर्भ में साल 2005 (भाजपा+ जदयू), 2010 (भाजपा+ जदयू) और 2015 (राजद+ जदयू) के बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों को उदाहरण के रूप में समीक्षा की जा सकती है। अपवाद 2014 का लोकसभा चुनाव रहा था, तब राज्य के तीनों प्रमुख दल राजद, जदयू और भाजपा की भुजाएं अलग-अलग होकर लकीर का स्वरूप ले चुकी थी और तीनों दलों (राजद-जदयू-भाजपा) की लकीर की लंबाई से बिहार की जनता रूबरू हुई थी। तब के लोकसभा चुनाव में भाजपा, राजद और जदयू को क्रमशः 31, 9 और 2 सीटों पर जीत मिली थी। मतलब जब तीनों दल अलग-अलग चुनाव लड़े तब उनके वास्तविक जनाधार का अंदाजा लगा।
इस साल हो रहे बिहार विधानसभा चुनाव में भी त्रिभुज की दो भुजाएं (भाजपा+जदयू) एक हो गई हैं। मगर बिहार में अकेले चुनाव लड़ रही लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) जदयू पर आक्रामक होकर एनडीए की एक भुजा को लकीर में तब्दील कर अपनी ताकत का एहसास कराना चाह रही है और एक भुजा बनना चाह रही है।
लोजपा के 134 उम्मीदवार मैदान में
बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा के कुल 134 उम्मीदवार मैदान में हैं। कुल उम्मीदवारों में से 114 जदयू के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं। जबकि पहले चरण की 71 सीटों में से लोजपा के कुल 42 प्रत्याशी हैं, जिनमें से 35 जदयू के खिलाफ खड़े हैं। पहले चरण में अतरी, दिनारा, सासाराम, संदेश, जहानाबाद, ब्रह्मपुर और ओबरा में लोजपा की उम्मीदवारों की स्थिति सशक्त है और यहां लोजपा प्रत्याशी जदयू उम्मीदवारों पर भारी पड़ रहे हैं। सासाराम से पार्टी के प्रत्याशी रामेश्वर चौरसिया हैं।
रामेश्वर चौरसिया 80 के दशक से ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भाजपा से जुड़े रहे हैं। हाल के दिनों में भाजपा नेतृत्व से क्षुब्ध होकर उन्होंने लोजपा का दामन थाम लिया और फिलहाल चुनावी मैदान में हैं। भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय मंत्री रहे रामेश्वर चौरसिया का कहना है कि सुशील मोदी की साजिश के तहत मुझे टिकट से वंचित किया गया।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगे जिस बिहार भाजपा की रीढ़ रबर सी हो गई थी, उसी भाजपा से एक-दो नहीं कई सरयू राय एक झटके में निकलकर लोजपा के साथ हो लिए। इनमें कई नाम हैं जैसे दिनारा से चुनाव लड़ रहे राजेंद्र सिंह, जहानाबाद से इंदु कश्यप, संदेश से श्वेता सिंह आदि. कामोवेश इन सभी प्रत्याशियों का विरोध जदयू और उसके शीर्ष नेतृत्व से है। हालांकि, जदयू की ओर से बयान जारी कर लोजपा और उसके उम्मीदवारों को वोटकटवा बताया जा रहा है।
जदयू ने लोजपा को वोटकटवा बताया
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगे जिस बिहार भाजपा की रीढ़ रबर सी हो गई थी, उसी भाजपा से एक-दो नहीं कई सरयू राय एक झटके में निकलकर लोजपा के साथ हो लिए। इनमें कई नाम हैं जैसे दिनारा से चुनाव लड़ रहे राजेंद्र सिंह, जहानाबाद से इंदु कश्यप, संदेश से श्वेता सिंह आदि. कामोवेश इन सभी प्रत्याशियों का विरोध जदयू और उसके शीर्ष नेतृत्व से है। हालांकि, जदयू की ओर से बयान जारी कर लोजपा और उसके उम्मीदवारों को वोटकटवा बताया जा रहा है।
दरअसल जदयू को इस चुनाव में दो-दो फ्रंट से चुनौतियां मिल रही हैं। लोजपा के अलावा जदयू की राजद से 77 सीटों पर सीधी लड़ाई है। इसके अलावा कांग्रेस से 22, सीपीआई (माले) से 10, सीपीएम से तीन और सीपीआई से एक सीट पर लड़ाई है। वहीं भाजपा के खिलाफ राजद 51 सीटों पर चुनावी मैदान में है और कांग्रेस के 48, सीपीआई (माले) के आठ, सीपीआई के तीन और सीपीएम के एक प्रत्याशी भाजपा के विरुद्ध खड़े हैं।
इस विकट राजनीतिक परिस्थिति में आम लोगों के बीच यह समझ गहरी होती जा रही है कि लोजपा भाजपा की ही दूसरी टीम है। हालांकि पार्टी नेतृत्व इसको लेकर कई बार यह संदेश दे चुका है कि एनडीए गठबंधन में सिर्फ चार दल भाजपा-जदयू-हम-वीआईपी ही हैं। इस परिस्थिति को लेकर महागठबंधन के नेता भी संशय में हैं। उधर भाजपा के कार्यकर्त्ता और कैडर लोजपा प्रत्याशियों को हाथों-हाथ ले रहे हैं। इससे जदयू नेताओं के मन में दोनों बातें चल रही हैं कि भाजपा ने पहले ही इस स्थिति को संभालने की कोशिश क्यों नहीं की और अब जदयू के नेता-कार्यकर्त्ता दबी जुबान में ही सही इसका ठीकरा भाजपा पर ही फोड़ रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोजपा के साथ जो भी जुड़े हैं उनका लगाव भावनात्मक है। दूसरी ओर मजबूत संगठन खड़ा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि चिराग पासवान ने एक बड़ा रिस्क लिया है। चिराग या तो रोशन होंगे या मिट सकते हैं। लेकिन, एक बात तय है कि जदयू की तुलना में लोजपा का वोट शेयर इस चुनाव में बढ़ेगा भले ही उसका विधानसभा में संख्या बल जदयू से कम हो। ऐसा अधिक सीटों पर जुझारू लोजपा प्रत्याशियों की वजह से होगा। अब देखना यह है कि इस चुनाव में विषंबाहु त्रिभुज की सबसे सबसे छोटी भुजा है कौन दल होता है। लोजपा का चिराग पासवान के नेतृत्व में फिर से पुनर्जन्म होता है या मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिर काबिज होकर नीतीश कुमार यथास्थिति का रिन्यूअल करेंगे।