शराबबंदी की घोषणा के बाद बिहार में पहले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को लुभाने और मतदान को प्रभावित करने के लिए शराब के इस्तेमाल को रोकना चुनाव आयोग के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी। पिछले कुछ महीनों में राज्य के विभिन्न हिस्सों में तस्करों से शराब की लगातार बरामदगी और इसकी तस्करी में शामिल लोगों की गिरफ्तारी से यह साफ है कि चुनाव आयोग के लिए इस पर नियंत्रण पाना आसान नहीं होगा।
तस्करों ने बदला काम करने का तरीका
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के एक अधिकारी ने कहा कि निगरानी बढ़ने के कारण, तस्करों ने अपने काम करने के तौर-तरीके बदल दिए हैं। तस्कर अब छोटी-छोटी मात्रा में शराब की तस्करी कर रहे हैं, जिसे पता लगाने में परेशानी हो रही है।
उन्होंने बताया कि एनसीबी बिहार जोन, अब तक 4,000 किलोग्राम गांजा, 50 किलोग्राम चरस, अफीम और कुछ अन्य दवाओं को अब तक बरामद कर चुका है और 68 लोगों को गिरफ्तार कर चुका है, जबकि राज्य पुलिस द्वारा की गई बरामदगी इससे भी अधिक है।
सीमांचल के इलाकों में बड़ी चुनौती
अंतरराज्यीय सीमा से सटे सीमांचल के इलाकों में शराबखोरी पर रोक लगाना उत्पाद विभाग एवं स्थानीय पुलिस के लिए भी चुनौती बनती जा रही है। कार्रवाई एवं सख्ती बरते जाने के बाद भी शराब तस्करी एवं शराब पीने के मामले सामने आ रहे हैं। विभाग द्वारा गिरफ्तारी एवं बरामदगी के आंकड़ों पर उपलब्धि का मूल्यांकन किया जाता है। लेकिन, तमाम कोशिशों के बाद भी शराब की खेप पड़ोसी राज्यों से पहुंच रही है।
पश्चिम बंगाल और झारखंड से होती है शराब की तस्करी
सीमांचल के जिलों में पश्चिम बंगाल एवं झारखंड के रास्ते शराब तस्करी का मामला सामने आने के बाद दोनों राज्यों से लगती सीमा पर चेक पोस्ट बनाए गए हैं। इस दौरान कई बार शराब की बड़ी खेप भी पकड़ी गई है। चेक पोस्ट पर सघन तलाशी के कारण शराब तस्करों द्वारा ट्रेनों से शराब की खेप पहुंचाई जा रही है। किशनगंज से लेकर बरौनी तक रेल पुलिस द्वारा पांच स्टेशनों पर विशेष रूप से चेक प्वाइंट भी बनाया गया है।
हाल के दिनों में नेपाल एवं पूर्वोत्तर के राज्यों से भी शराब की खेप सीमांचल में पहुंचाए जाने के मामले सामने आए हैं। अंतरराज्यीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटा होने के कारण उत्पाद विभाग एवं स्थानीय पुलिस को शराबबंदी अभियान में मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना के कारण लॉकडाउन के दौरान भी शराब तस्करों की सक्रियता बढ़ी है। हाल के दिनों में शराब की खेप के साथ कई तस्कर पकड़े भी गए हैं।
गौरतलब है कि 2015 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान महिलाओं से पूर्ण शराबबंदी का वादा करने के बाद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पांच अप्रैल, 2016 को राज्य में पूर्ण शराबबंदी का आदेश दिया था, जिसके बाद एक ही बार में सभी शराब की दुकानों पर ताले लग गए थे। इसके बाद बिहार विधानसभा और बिहार विधान परिषद में सर्वसम्मत से इस निर्णय को मंजूर किया गया, जहां दोनों सदनों के सदस्यों ने शराब का उपयोग नहीं करने और दूसरों को इसका उपयोग करने से हतोत्साहित करने का भी संकल्प लिया था।
2015 के विधानसभा चुनावों के दौरान, बिहार में करीब 5,500 लाइसेंसी शराब की दुकानें थीं और चुनाव आयोग ने सभी स्टॉकिंग प्वाइंट पर वीडियो निगरानी का आदेश दिया था। फिर भी, चुनाव के दौरान शराब के उपयोग के बारे में शिकायतें मिली थीं।
हालांकि, पुलिस ने सभी सीमावर्ती क्षेत्रों में चुनाव के लिए सतर्कता बढ़ा दी है, लेकिन हाल ही में शराब माफियाओं द्वारा पुलिस पर हमला करने के कई मामले सामने आए हैं। इस महीने की शुरुआत में पटना में पुलिसकर्मियों की पिटाई भी की गई थी, जब वे शराब तस्करी के संदेह पर एक जगह पर छापा मारने गए थे।
राज्य के विभिन्न हिस्सों से गिरफ्तारी और शराब की बरामदगी हर दिन होती रही है, लेकिन तैयार बाजार और आदतन अपराधियों के कारण शराब की आमद जारी है। पिछले साल शराबबंदी के बीच बिहार में पहले लोकसभा चुनाव के दौरान सख्ती से शराब की बरामदगी में महत्वपूर्ण गिरावट आई थी, हालांकि सात चरणों के दौरान नियमित रूप से शराब तस्करों की गिरफ्तारी भी हुई थी।