प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : सोशल मीडिया
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बिहार विधानसभा चुनाव में निर्णायक लड़ाई सत्ताधारी एनडीए और महागठबंधन के बीच तय मानी जा रही है। ऐसे में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सत्ता को बरकरार रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं। वहीं, राजद नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन 15 साल बाद सत्ता में वापसी के लिए एड़ी चोटी की जोर लगा रहा है। इसी बीच आइए आपको बताते हैं बिहार के अंग क्षेत्र (भागलपुर) की राजनीति के बारे में…
महाभारत काल का अंग क्षेत्र यानी आज का भागलपुर प्रमंडल की बात की जाए तो भाजपा के पास यहां खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन राजद को अपनी सीटों को बचाने के लिए इस बार कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।
2015 में एक सीट से भाजपा को करना पड़ा था संतोष
बिहार के भागलपुर प्रमंडल में दो जिले की 12 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें भागलपुर की सात सीटें और बांका जिले की पांच सीटें हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव ने मिलकर यहां से भाजपा का सफाया कर दिया था। यहां 12 विधानसभा सीटों में से पांच सीटें जेडीयू ने जीती थी, जबकि चार सीटें राजद को मिली थीं। वहीं, दो सीटें कांग्रेस को मिली थी और महज एक सीट भाजपा के खाते में आई थी। मौजूदा दौर में बदले हुए समीकरण को देखा जाए तो महागठबंधन और एनडीए यहां पर बराबर की स्थिति में खड़े नजर आ रहे हैं।
भागलपुर जिले में नहीं खुला था भाजपा का खाता
भागलपुर जिले में सात विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें सुल्तानगंज, नाथनगर, गोपालपुर, बिहपुर, पीरपैंती भागलपुर और कहलगांव विधानसभा शामिल हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने सुल्तानगंज, नाथनगर और गोपालपुर सीट पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस ने बिहपुर और पीरपैंती सीट जीती थी जबकि आरजेडी ने भागलपुर और कहलगांव पर जीत का परचम लहराया था। भाजपा को भागलपुर जिले की सात सीटों में से एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी।
भागलपुर प्रमंडल के बांका जिले में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। जिनमें बेलहर, कटोरिया, अमरपुर, धोरैया और बांका सीट शामिल हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने अमरपुर और धोरैया सीट जीती थी तो राजद ने बेलहर, कटोरिया सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाबी पाई थी। वहीं, भाजपा को सिर्फ बांका सीट पर ही जीती मिली थी।
लेकिन इस बार समीकरण बदल गया है। नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए का नेतृत्व कर रहे हैं। हालांकि, अभी एनडीए में कौन सी सीट किस पार्टी को जाएगी यह तय नहीं है। ऐसे में चर्चा होते ही राजनीतिक गलियारे में 2010 के फॉर्मूले पर सीट बंटवारे की प्राथमिक समझ बता दी जाती है। हालांकि, ऐसा है नहीं। लोजपा भी एनडीए में है। 2010 में वह राजद के साथ था। ऐसे में इस बार भागलपुर प्रमंडल में कुछ अलग होना तय है। दूसरी ओर राजद, कांग्रेस और रालोसपा के स्थानीय नेता मानकर चल रहे हैं कि उनकी पार्टियां मिलकर महागठबंधन के स्वरूप में ही चुनाव लड़ेंगी, पर सीट बंटवारे को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है।
एनडीए का चुनावी गणित
भागलपुर जिले की चुनावी गणित को एनडीए के स्थानीय नेताओं की नजर से देखें तो शीर्ष स्तर पहला फॉर्मूला यह होगा कि जिस सीट पर जो जीता हुआ है वह उसका। भागलपुर जिले की सुल्तानगंज, नाथनगर और गोपालपुर सीट पर जेडीयू का कब्जा तीन टर्म से है। इस पर जेडीयू किसी कीमत पर अपना दावा नहीं छोड़ेगा। बाकी बची जिले की चार सीटों में 2010 के हिसाब से बंटवारा होगा। इसमें भागलपुर, बिहपुर और पीरपैंती सीट पर भाजपा लड़ेगी।
इस बार सीट बंटवारे में अगर जिले की एक सीट लोजपा को भी देनी पड़ी तो वह कहलगांव सीट पर दिख रही है। 2015 में जेडीयू की अनुपस्थिति में लोजपा को भागलपुर जिले की दो सीटों में नाथनगर और कहलगांव की ही सीट मिली थी। 2010 में राजद के साथ गठबंधन के दौर में लोजपा के हिस्से में भागलपुर सीट आई थी। तब यहां से लोजपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी।
बिहार विधानसभा चुनाव में निर्णायक लड़ाई सत्ताधारी एनडीए और महागठबंधन के बीच तय मानी जा रही है। ऐसे में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सत्ता को बरकरार रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं। वहीं, राजद नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन 15 साल बाद सत्ता में वापसी के लिए एड़ी चोटी की जोर लगा रहा है। इसी बीच आइए आपको बताते हैं बिहार के अंग क्षेत्र (भागलपुर) की राजनीति के बारे में…
महाभारत काल का अंग क्षेत्र यानी आज का भागलपुर प्रमंडल की बात की जाए तो भाजपा के पास यहां खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन राजद को अपनी सीटों को बचाने के लिए इस बार कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।
2015 में एक सीट से भाजपा को करना पड़ा था संतोष
बिहार के भागलपुर प्रमंडल में दो जिले की 12 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें भागलपुर की सात सीटें और बांका जिले की पांच सीटें हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव ने मिलकर यहां से भाजपा का सफाया कर दिया था। यहां 12 विधानसभा सीटों में से पांच सीटें जेडीयू ने जीती थी, जबकि चार सीटें राजद को मिली थीं। वहीं, दो सीटें कांग्रेस को मिली थी और महज एक सीट भाजपा के खाते में आई थी। मौजूदा दौर में बदले हुए समीकरण को देखा जाए तो महागठबंधन और एनडीए यहां पर बराबर की स्थिति में खड़े नजर आ रहे हैं।
भागलपुर जिले में नहीं खुला था भाजपा का खाता
भागलपुर जिले में सात विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें सुल्तानगंज, नाथनगर, गोपालपुर, बिहपुर, पीरपैंती भागलपुर और कहलगांव विधानसभा शामिल हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने सुल्तानगंज, नाथनगर और गोपालपुर सीट पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस ने बिहपुर और पीरपैंती सीट जीती थी जबकि आरजेडी ने भागलपुर और कहलगांव पर जीत का परचम लहराया था। भाजपा को भागलपुर जिले की सात सीटों में से एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी।
भागलपुर प्रमंडल के बांका जिले में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। जिनमें बेलहर, कटोरिया, अमरपुर, धोरैया और बांका सीट शामिल हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने अमरपुर और धोरैया सीट जीती थी तो राजद ने बेलहर, कटोरिया सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाबी पाई थी। वहीं, भाजपा को सिर्फ बांका सीट पर ही जीती मिली थी।
इस बार बदला राजनीतिक समीकरण
लेकिन इस बार समीकरण बदल गया है। नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए का नेतृत्व कर रहे हैं। हालांकि, अभी एनडीए में कौन सी सीट किस पार्टी को जाएगी यह तय नहीं है। ऐसे में चर्चा होते ही राजनीतिक गलियारे में 2010 के फॉर्मूले पर सीट बंटवारे की प्राथमिक समझ बता दी जाती है। हालांकि, ऐसा है नहीं। लोजपा भी एनडीए में है। 2010 में वह राजद के साथ था। ऐसे में इस बार भागलपुर प्रमंडल में कुछ अलग होना तय है। दूसरी ओर राजद, कांग्रेस और रालोसपा के स्थानीय नेता मानकर चल रहे हैं कि उनकी पार्टियां मिलकर महागठबंधन के स्वरूप में ही चुनाव लड़ेंगी, पर सीट बंटवारे को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है।
एनडीए का चुनावी गणित
भागलपुर जिले की चुनावी गणित को एनडीए के स्थानीय नेताओं की नजर से देखें तो शीर्ष स्तर पहला फॉर्मूला यह होगा कि जिस सीट पर जो जीता हुआ है वह उसका। भागलपुर जिले की सुल्तानगंज, नाथनगर और गोपालपुर सीट पर जेडीयू का कब्जा तीन टर्म से है। इस पर जेडीयू किसी कीमत पर अपना दावा नहीं छोड़ेगा। बाकी बची जिले की चार सीटों में 2010 के हिसाब से बंटवारा होगा। इसमें भागलपुर, बिहपुर और पीरपैंती सीट पर भाजपा लड़ेगी।
इस बार सीट बंटवारे में अगर जिले की एक सीट लोजपा को भी देनी पड़ी तो वह कहलगांव सीट पर दिख रही है। 2015 में जेडीयू की अनुपस्थिति में लोजपा को भागलपुर जिले की दो सीटों में नाथनगर और कहलगांव की ही सीट मिली थी। 2010 में राजद के साथ गठबंधन के दौर में लोजपा के हिस्से में भागलपुर सीट आई थी। तब यहां से लोजपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी।
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Thu Sep 24 , 2020
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