राजग का हाल
सीटों पर छिड़े विवाद के बीच भाजपा ने लोजपा को 27 सीटें और भविष्य में एमएलसी की दो सीटों का नया प्रस्ताव दिया है। भाजपा ने साफ कर दिया है कि वह इससे ज्यादा सीटें लोजपा को नहीं देगी। हालांकि, कई ऐसे सवाल हैं, जिसका जवाब फिलहाल नहीं है। मसलन जदयू और भाजपा कितनी-कितनी सीटों पर लड़ेंगी?
जदयू का दावा है कि उसे 122 और भाजपा को 121 सीटें मिलेंगी। भाजपा अपने कोटे से लोजपा को और जदयू अपने कोटे से जीतन राम मांझी की हम को सीटें देगी। जबकि भाजपा का कहना है कि वह 101, जदयू 103 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बाकी बची 39 सीटें सहयोगियों को दी जाएंगी।
महागठबंधन में भी फंसा पेच
राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन में भी सीट बंटवारे की गुत्थी नहीं सुलझ रही। राजद के फार्मूले पर कांग्रेस और वाम दलों ने सहमति नहीं दी है। राजद कांग्रेस को अधिकतम 60 और वाम दलों को 20 सीटें देना चाहती है। जबकि कांग्रेस 80 और वाम दल 40 सीटों पर दावा जता रहे हैं। राजद की मुश्किल यह है कि उसे अपने कोटे से वीआईपी और जेएमएम को भी सीटें देनी है। बहरहाल नए फार्मूले पर माथापच्ची जारी है।
क्यों बने इतने मोर्चे?
राजग और महागठबंधन के इतर चार गठबंधन बनने की वजह विपक्ष में एकता के अभाव के अलावा क्षेत्रीय नेताओं की सियासी महत्वाकांक्षा है। यूडीएसए बनाने वाली एआईएमआईएम और एसएडी, भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के साथ पीडीए बनाने वाले पप्पू यादव, बसपा के साथ तीसरा मोर्चा बनाने वाले आरएलएसपी के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा और 16 दलों का यूडीएफ बनाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा महागठबंधन में अधिक से अधिक सीटें चाहते थे। इसकी संभावना कम होने पर इन दलों से जुड़े नेताओं ने पहले दबाव बनाने की कोशिश की। इसमें सफल नहीं होने पर कई गठबंधन बन गए।
बीते चुनाव में झेली थी बुरी दुर्गती
पिछले विधानसभा चुनाव में सपा के नेतृत्व में जाप, एनसीपी, समरस समाज पार्टी, एसजेडी ने मोर्चा खड़ा किया था। एआईएमआईएम मुस्लिम बहुल सीमांचल की छह सीटों पर चुनाव लड़ी थी। जबकि छह दलों के साथ वाम दल अलग से मैदान में उतरे थे।
मगर सपा की अगुवाई वाले गठबंध और एआईएमआईएम के करीब करीब सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। वाम दलों में सीपीआई माले को तीन सीटों के अलावा बाकी पांच वाम दलों के हाथ कुछ नहीं आया था।
मोर्चा से महागठबंधन को नुकसान
मोर्चा राजग के विरोध के नाम पर बना है, मगर इसके प्रभावी होने पर नुकसान विपक्षी महागठबंधन को उठाना होगा। सभी मोर्चे मुख्यत: विपक्षी बागी नेताओं का ही जमघट है। इसके अलावा इनका प्रभाव क्षेत्र और प्रभाव वाला वर्ग भी महागठबंधन के प्रभाव और क्षेत्र वाला है।