Bihar Election 2020 Nitish Kumar Tejaswi Upendra Kushwaha Pappu Yadav Focus On Dalit Votes – Bihar Eletion 2020: दलित मतदाताओं पर टिकीं सभी की नजरें, नीतीश, तेजस्वी, उपेंद्र कुशवाहा, पप्पू यादव की जी तोड़ कोशिश

मंडल आंदोलन के बाद बिहार की राजनीति में जो सबसे बड़ा बदलाव आया वो है जाति के आधार पर पार्टियों का समीकरण। 1990 के बाद मंचों से खुलेआम जातिगत वोट की गोलबंदी शुरू हुई। राज्य के अलग-अलग शहरों में जातिगत रैलियां हुईं। चुनाव दर चुनाव जातिगत राजनीति मजबूत हुई और सरोकार के मुद्दे कमजोर। इस चुनाव में भी जातिगत गोलबंदी की कवायद तेज हो गई है।

नीतीश-तेजस्वी के दांव

इस बार की जातिगत राजनीति के केंद्र में हैं दलित जातियां। नीतीश कुमार ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को अपने पाले में लाकर महादलित जाति में सेंधमारी की कोशिश की। इसके बाद तेजस्वी यादव ने जदयू के दलित चेहरे श्याम रजक को अपनी ओर खींच लिया। नीतीश कुमार ने फिर दलित दांव चला और मंत्री अशोक चौधरी को पार्टी का कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बना दिया।

पूर्व सांसद और जाप अध्यक्ष पप्पू ने चंद्रशेखर उर्फ रावण को अपने पाले में लिया और भीम आर्मी से गठबंधन किया। अब उपेंद्र कुशवाहा ने बसपा से गठबंधन किया है।

बिहार में दलित राजनीति परवान पर क्यों है?

इस सवाल का जवाब दलित वोटबैंक का अंकगणित देता है। राज्य में 23 अनुसूचित जातियां हैं। ये आबादी का 16 फीसदी हिस्सा है। अनुसूचित जातियों में सबसे बड़ी आबादी रविदासों की है। उसके बाद पासवान आते हैं। मुसहर, पासी और धोबी इसके बाद आते हैं।

इन सीटों पर 20 से 30 फीसदी दलित मतदाता

कुटुंबा (सु.), फुलवारी (सु.), बाराचट्टी (सु.), राजगीर (सु.), रजौली आदि सुरक्षित क्षेत्रों के अलावा नालंदा, हिसुआ, रफीगंज,अलौली, इमामगंज, नबीनगर, हरनौत, बेलागंज, वजीरगंज, शेरघाटी, गुरुआ, अतरी, टेकारी, अस्थावां, मोहनिया, गोविंदपुर पर दलित मतदान की पकड़ है।

53 विधानसभा क्षेत्रों में भी पकड़

इसके अलावा 10 से 20 फीसदी दलित मतदाताओं वाले 53 विधानसभा क्षेत्र हैं। जाहिर है दलित मतदाता बिहार की राजनीति में ताकत रखते हैं। बिहार के राजनेता दलित मतदाताओं की इस ताकत को खुद से जोड़ने की सारी जुगत लगाते हैं। इस बार भी तमाम राजनीतिक दल इसी कोशिश में दिख रहे हैं। चिराग पासवान को भी इसलिए भाजपा ने अपने साथ जोड़े रखने को जोर लगा रखा है। बिहार कांग्रेस के पास ऐसा कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है जिनकी दलित मतदाताओं पर मजबूत पकड़ हो।

243 विधानसभा क्षेत्रों में 21 विधानसभा सीटों पर दलितों मतदाताओं का जोर कहीं-कहीं तो दलित समुदाय गोलबंद होकर किसी पक्ष में मतदान कर देता है।

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