नीतीश कुमार, चिराग पासवान, तेजस्वी यादव
– फोटो : Amar Ujala (File)
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चिराग पासवान धीरे-धीरे राजनीति के पत्ते खोल रहे हैं। तेजस्वी यादव को अपना छोटा भाई बता चुके हैं। चिराग और तेजस्वी के कॉमन फ्रेंड को पता है कि दोनों की केमिस्ट्री काफी ठीक है। पहले चिराग ने तेजस्वी को शुभकामना देकर तो अब तेजस्वी ने चिराग के साथ सहानुभूति दिखाकर बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा की है। इस हलचल पर भाजपा नेताओं की भी निगाह है। धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा देने वाले राजनीति के पंडित इस समीकरण से काफी खुश हैं। कईयों को लग रहा है कि बड़े भईया के सहयोग से छोटे भईया करामात दिखा सकते हैं। क्या पता, कोईरी, कुर्मी, कुशवाहा को छोड़कर बिहार की शेष यादव, अन्य पिछड़ी जातियां, दलित और मुसलमान भी एकजुटता दिखा दें।
चिराग 21 अक्तूबर से चुनाव प्रचार अभियान में उतरेंगे। अभी उनका चुनाव प्रचार अभियान पिता के श्राद्धकर्म के बाद मीडिया से साक्षात्कार के भरोसे चल रहा है। इसलिए राजनीति में धुंध साफ होने के लिए चिराग के मंच पर आने का इंतजार किया जा रहा है। माना जा रहा है कि चिराग के मंच पर आते-आते प्रधानमंत्री मोदी भी एनडीए के प्रचार में उतर जाएंगे। इस समय का जद(यू) को भी बेसब्री से इंतजार है।
लोजपा की अभी भाजपा से फ्रेंडली फाइट चल रही है
चिराग पासवान ने अभी तक केवल नीतीश कुमार की नस दबा रखी है। वह संभलकर राजनीति कर रहे हैं। कभी प्रधानमंत्री मोदी के हनुमान बन जाते हैं और कभी भाजपा के हितैषी। तो कभी राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए के साथ। शुरू में यह भाजपा को ठीक लग रहा था, लेकिन जद(यू) प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आक्रामक तेवर अपना लेने के बाद स्थिति थोड़ी सी बदली है। चिराग के रुख को लेकर सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने से इंकार कर दिया था।
नीतीश का मानना है कि नड्डा भाजपा के आधे-अधूरे अध्यक्ष हैं। कमान अभी भी अमित शाह के ही हाथ में हैं। बताते हैं कि जद(यू) के साथ बेपटरी हो रहे रिश्ते को ठीक करने के लिए ही पहले राज्य के उपमुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सफाई दी, फिर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने लोक जनशक्ति पार्टी को वोट कटवा कहा। इसके बाद राज्य के प्रभारी भूपेंद्र यादव ने संतुलित तरीके से चिराग पासवान को नसीहत दी। अंत में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को सामने आना पड़ा। इसी सप्ताह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार में चुनाव प्रचार करने वाले हैं। उनके साथ नीतीश कुमार की साझा वर्चुअल जनसभा है। देखना है कि प्रधानमंत्री अपने हनुमान (चिराग पासवान) को लेकर क्या बोलते हैं।
नीतीश कुमार को चौथी बार सीएम नहीं बनने देंगे
चिराग अभी सत्ता विरोधी लहर का लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें वह जद(यू) की राजनीतिक गाड़ी का टायर पंचर करने और 10 नवंबर के बाद भाजपा के साथ लोजपा की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं। इस तरह से सरकार विरोधी लहर से भाजपा को बचाकर और ठीकरा जद(यू) के सिर फोड़ने की तैयारी है। इस तरह से चिराग पासवान की भाजपा के साथ फ्रेंडली फाइट चल रही है। चिराग ने भाजपा के खिलाफ केवल पांच सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। 105 सीटों पर वह भाजपा का सहयोग कर रहे हैं। इसके समानांतर जद(यू) के खिलाफ उतरे चिराग के प्रत्याशियों से उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को परोक्ष लाभ हो रहा है।
दोनों हाथ में लड्डू रखने की राजनीति
चिराग की यह राजनीति ‘सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे’ वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है। वह भाजपा और राजद दोनों से फ्रेंडली रिलेशन फिट कर रहे हैं। जाहिर है चिराग के सलाहकार चुनाव प्रचार अभियान के रणनीतिकार प्रशांत किशोर हैं। खुद चिराग ने भी अकेले लोक जनशक्ति पार्टी को मैदान में उतारने का फैसला बहुत सोच-समझकर ही लिया होगा। 2005 में उनके पिता रामविलास पासवान ने भी अकेले लड़ने का फैसला किया था और फायदे में रहे थे। इससे लालू की राजद को नुकसान हो गया था। बाद में एनडीए के साथ चले जाने पर लोजपा की ताकत पिछले हर चुनाव में घटी। बताते हैं राम विलास पासवान के साथ रहने वाला अल्पसंख्यक वोट उन्हें छोड़ने लगा था। 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग के इस दांव से जद(यू) की बेचैनी इस कारण से भी बढ़ गई है, क्योंकि उसे दलित के साथ-साथ अल्पसंख्यक वोटों के भी छिटककर राष्ट्रीय जनता दल के साथ जाने का खतरा दिखाई पड़ रहा है। कुल मिलाकर राजनीतिक सामथ्र्य के लिहाज से कमजोर ही होंगे।
भाजपा की दुविधा
भाजपा की दुविधा बढ़ रही है। चिराग पासवान भाजपा के खिलाफ न तो कुछ बोल रहे हैं और न ही कोई ऐसा कदम उठा रहे हैं। वह केवल भाजपा छोड़कर आने वाले लोगों को लोजपा का टिकट देकर मैदान में उतार दे रहे हैं। वह खुद को प्रधानमंत्री मोदी का हनुमान बताते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का देहांत हुआ है। चिता की आग अभी ठंडी नहीं हुई है। इसलिए चिराग सहानुभूति का भरपूर सहारा भी ले रहे हैं। ऐसे में भाजपी की दुविधा बढ़ रही है। पार्टी सहयोगी दल जद(यू) की लोजपा से नाराजगी के बाद भी चिराग की तारीफ के बहाने मिलने वाली बिहार के दलितों की सहानुभूति को खोना नहीं चाहती। नीतीश कुमार की नाराजगी को देखते हुए पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री ने अमित शाह ने इसी को संतुलित करने के इरादे से अधिक सीटें आने पर भी नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की है। आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है।
सार
- चिराग और तेजस्वी के बीच बढ़ रही है केमिस्ट्री
- कांग्रेस को भी अच्छा लग रहा है चिराग का पॉलिटिकल गेम
- दलित, यादव, अन्य पिछड़े, मुसलमान का समीकरण बदल सकता है खेल
विस्तार
चिराग पासवान धीरे-धीरे राजनीति के पत्ते खोल रहे हैं। तेजस्वी यादव को अपना छोटा भाई बता चुके हैं। चिराग और तेजस्वी के कॉमन फ्रेंड को पता है कि दोनों की केमिस्ट्री काफी ठीक है। पहले चिराग ने तेजस्वी को शुभकामना देकर तो अब तेजस्वी ने चिराग के साथ सहानुभूति दिखाकर बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा की है। इस हलचल पर भाजपा नेताओं की भी निगाह है। धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा देने वाले राजनीति के पंडित इस समीकरण से काफी खुश हैं। कईयों को लग रहा है कि बड़े भईया के सहयोग से छोटे भईया करामात दिखा सकते हैं। क्या पता, कोईरी, कुर्मी, कुशवाहा को छोड़कर बिहार की शेष यादव, अन्य पिछड़ी जातियां, दलित और मुसलमान भी एकजुटता दिखा दें।
चिराग 21 अक्तूबर से चुनाव प्रचार अभियान में उतरेंगे। अभी उनका चुनाव प्रचार अभियान पिता के श्राद्धकर्म के बाद मीडिया से साक्षात्कार के भरोसे चल रहा है। इसलिए राजनीति में धुंध साफ होने के लिए चिराग के मंच पर आने का इंतजार किया जा रहा है। माना जा रहा है कि चिराग के मंच पर आते-आते प्रधानमंत्री मोदी भी एनडीए के प्रचार में उतर जाएंगे। इस समय का जद(यू) को भी बेसब्री से इंतजार है।
लोजपा की अभी भाजपा से फ्रेंडली फाइट चल रही है
चिराग पासवान ने अभी तक केवल नीतीश कुमार की नस दबा रखी है। वह संभलकर राजनीति कर रहे हैं। कभी प्रधानमंत्री मोदी के हनुमान बन जाते हैं और कभी भाजपा के हितैषी। तो कभी राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए के साथ। शुरू में यह भाजपा को ठीक लग रहा था, लेकिन जद(यू) प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आक्रामक तेवर अपना लेने के बाद स्थिति थोड़ी सी बदली है। चिराग के रुख को लेकर सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने से इंकार कर दिया था।
नीतीश का मानना है कि नड्डा भाजपा के आधे-अधूरे अध्यक्ष हैं। कमान अभी भी अमित शाह के ही हाथ में हैं। बताते हैं कि जद(यू) के साथ बेपटरी हो रहे रिश्ते को ठीक करने के लिए ही पहले राज्य के उपमुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सफाई दी, फिर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने लोक जनशक्ति पार्टी को वोट कटवा कहा। इसके बाद राज्य के प्रभारी भूपेंद्र यादव ने संतुलित तरीके से चिराग पासवान को नसीहत दी। अंत में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को सामने आना पड़ा। इसी सप्ताह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार में चुनाव प्रचार करने वाले हैं। उनके साथ नीतीश कुमार की साझा वर्चुअल जनसभा है। देखना है कि प्रधानमंत्री अपने हनुमान (चिराग पासवान) को लेकर क्या बोलते हैं।
नीतीश कुमार को चौथी बार सीएम नहीं बनने देंगे
चिराग अभी सत्ता विरोधी लहर का लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें वह जद(यू) की राजनीतिक गाड़ी का टायर पंचर करने और 10 नवंबर के बाद भाजपा के साथ लोजपा की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं। इस तरह से सरकार विरोधी लहर से भाजपा को बचाकर और ठीकरा जद(यू) के सिर फोड़ने की तैयारी है। इस तरह से चिराग पासवान की भाजपा के साथ फ्रेंडली फाइट चल रही है। चिराग ने भाजपा के खिलाफ केवल पांच सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। 105 सीटों पर वह भाजपा का सहयोग कर रहे हैं। इसके समानांतर जद(यू) के खिलाफ उतरे चिराग के प्रत्याशियों से उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को परोक्ष लाभ हो रहा है।
दोनों हाथ में लड्डू रखने की राजनीति
चिराग की यह राजनीति ‘सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे’ वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है। वह भाजपा और राजद दोनों से फ्रेंडली रिलेशन फिट कर रहे हैं। जाहिर है चिराग के सलाहकार चुनाव प्रचार अभियान के रणनीतिकार प्रशांत किशोर हैं। खुद चिराग ने भी अकेले लोक जनशक्ति पार्टी को मैदान में उतारने का फैसला बहुत सोच-समझकर ही लिया होगा। 2005 में उनके पिता रामविलास पासवान ने भी अकेले लड़ने का फैसला किया था और फायदे में रहे थे। इससे लालू की राजद को नुकसान हो गया था। बाद में एनडीए के साथ चले जाने पर लोजपा की ताकत पिछले हर चुनाव में घटी। बताते हैं राम विलास पासवान के साथ रहने वाला अल्पसंख्यक वोट उन्हें छोड़ने लगा था। 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग के इस दांव से जद(यू) की बेचैनी इस कारण से भी बढ़ गई है, क्योंकि उसे दलित के साथ-साथ अल्पसंख्यक वोटों के भी छिटककर राष्ट्रीय जनता दल के साथ जाने का खतरा दिखाई पड़ रहा है। कुल मिलाकर राजनीतिक सामथ्र्य के लिहाज से कमजोर ही होंगे।
भाजपा की दुविधा
भाजपा की दुविधा बढ़ रही है। चिराग पासवान भाजपा के खिलाफ न तो कुछ बोल रहे हैं और न ही कोई ऐसा कदम उठा रहे हैं। वह केवल भाजपा छोड़कर आने वाले लोगों को लोजपा का टिकट देकर मैदान में उतार दे रहे हैं। वह खुद को प्रधानमंत्री मोदी का हनुमान बताते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का देहांत हुआ है। चिता की आग अभी ठंडी नहीं हुई है। इसलिए चिराग सहानुभूति का भरपूर सहारा भी ले रहे हैं। ऐसे में भाजपी की दुविधा बढ़ रही है। पार्टी सहयोगी दल जद(यू) की लोजपा से नाराजगी के बाद भी चिराग की तारीफ के बहाने मिलने वाली बिहार के दलितों की सहानुभूति को खोना नहीं चाहती। नीतीश कुमार की नाराजगी को देखते हुए पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री ने अमित शाह ने इसी को संतुलित करने के इरादे से अधिक सीटें आने पर भी नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की है। आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है।
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Tue Oct 20 , 2020
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