Why Bihar State Lags In Population Control, What Is The Reason – जनसंख्या नियंत्रण के मामले में उत्तर प्रदेश से पिछड़ रहा बिहार, जानें क्या है कारण?

जनसंख्या नियंत्रण पर क्यों पिछड़ रहा बिहार
– फोटो : PTI

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आबादी के लिहाज से देश के बड़े राज्यों में से एक बिहार जनसंख्या रोकने के मामले में पिछड़ता जा रहा है। हाल ही में किए गए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम का शोध बताता है कि अन्य राज्यों की तुलना में बिहार काफी पीछे छूटता जा रहा है। साल 2006 की बात करें तो सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के मुताबिक बिहार और उत्तर प्रदेश एक ही पायदान पर खड़े दिख रहे थे। दोनों ही राज्यों में प्रजनन दर 4.2 थी। 

मगर 2018 में जहां यूपी में प्रजनन दर (टीएफआर) घटकर 2.9 हो गई, वहीं बिहार 14 साल में महज 3.2 तक ही पहुंच पाया। ये उन आठ बड़े राज्यों में से सबसे ज्यादा है जहां दर 2.1 से ज्यादा रजिस्टर की गई है। आखिर बिहार जनसंख्या नियंत्रण की दौड़ में क्यों पीछे छूटता जा रहा है? आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब… 

इस तरह से यूपी ने बिहार को पीछे छोड़ा
14 साल पहले बिहार और यूपी दोनों एक ही पायदान पर खड़े थे। मगर उत्तर प्रदेश ने जहां अपनी स्थिति में सुधार किया, वहीं बिहार खड़ा ताकता रहा। इसके पीछे का बड़ा कारण है कि यूपी ने गर्भ निरोधक उपायों का ज्यादा उपयोग किया। 2006 के बाद से यूपी में प्रजनन क्षमता दर में साल दर साल गिरावट होती रही जबकि बिहार के साथ ऐसा नहीं हुआ। 

टीएफआर मतलब ‘टोटल फर्टिलिटी रेट'(कुल प्रजनन क्षमता)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की परिभाषा के मुताबिक आसान भाषा में समझें तो एक महिला अपने जीवनकाल में जितने बच्चों को जन्म देती है या देने की संभावना होती है, उस दर को टीएफआर कहा जाता है। 2.1 टीएफआर को रिप्लेसमेंट लेवल फर्टिलिटी कहा जाता है। मतलब जनसंख्या को नियंत्रण में रखने के लिए एक महिला को औसतन 2.1 बच्चे को जन्म देने की जरूरत है। 

कैसे होती है टीएफआर की गणना 
टीएफआर की गणना करने के लिए किसी महिला, जिसकी उम्र 15-49 साल है, के लिए उम्र विशिष्ट प्रजनन दर को जोड़ा जाता है। इस आयु सीमा को पांच सालों के अंतराल में तोड़ा जाता है, (15-19, 20-24, 24-29, 45-49)। एएसएफआर वह संख्या है, जिसे प्रति हजार की जीवित आबादी में मध्य आयुवर्ग के लोगों की संख्या से एक विशेष सूत्र के जरिये गणना करके निकाला जाता है।

प्रजनन दर के पीछे कई कारण 
टीएफआर, कई घटकों पर काम करता है। किसी महिला की प्रजनन क्षमता दर के पीछे कई कारण हो सकते हैं। पहला शादी की उम्र, अगर महिला की शादी जल्दी हो जाती है तो उस समय उम्र विशिष्ट प्रजनन दर उस आयु वर्ग में ज्यादा होगी जिससे ज्यादा टीएफआर में योगदान होगा। दूसरा, परिवार नियोजन के लिए क्या विधि अपनाई जा रही है, जिसमें पैदा हुए बच्चों की उम्र के बीच फासला भी शामिल होता है। 
इन दोनों कारणों की तुलना करने पर पता लगाया जा सकता है कि बिहार में जनसंख्या नियंत्रण क्यों फेल है, वहां शिशु जन्म दर ज्यादा क्यों है?
उम्र विशिष्ट प्रजनन दर में बिहार यूपी की तुलना में पिछड़ता नजर आता है। 15-19 साल के आयु वर्ग में बिहार में उम्र विशिष्ट प्रजनन दर सबसे ज्यादा है। 30 से 34 साल के आयु वर्ग में भी प्रजनन दर बिहार में बहुत ज्यादा है। बिहार में किसी महिला की शादी की औसतन आयु 21.7 साल है और यूपी में ये आयु 22.3 साल है। 

बिहार में परिवार नियोजन उपायों की जरूरत 
राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वे 2015-16 में परिवार नियोजन के हिसाब से राज्यों को रैंक में बांटा था। ये रैंक दो श्रेणियों का जोड़ था, जिसमें जन्म के अंतराल की जरूरत और जन्म के सीमित होने की जरूरत शामिल थी। बड़ राज्यों की तुलना में बिहार में महिलाएं को परिवार नियोजन की सबसे ज्यादा जरूरत है। 2005-06 में जब राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वे का तीसरा चरण हुआ था, तब बड़े राज्यों में परिवार नियोजन की आवश्यकता के मामले में झारखंड के बाद बिहार का दूसरा नंबर था।

नसबंदी तो अपनाया लेकिन आधुनिक उपायों से दूरी 
देश में गर्भनिरोधक का सबसे प्रचलित उपाय अभी भी महिला नसंबदी है। पुरुष नसबंदी का सबसे कम इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि इस मामले में बिहार में यूपी से बेहतर स्थिति है। लेकिन अगर मौजूदा परिवार नियोजन विधि की बात करें तो बिहार, उत्तर प्रदेश से काफी पीछे हैं। इसका कारण यह है कि उत्तर प्रदेश में कंडोम का इस्तेमाल बिहार से दस फीसदी ज्यादा किया जाता है। अगर कंडोम के इस्तेमाल की बात आती है तो 36 राज्यों में उत्तर प्रदेश नंबर आठ पर आता है और बिहार 32 नंबर पर आता है।
 
राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वे 2015-16 के मुताबिक 2005-06 और 2015-16 के बीच विवाहित महिला और पुरुष जो अत्याधुनिक गर्भनिरोध का इस्तेमाल करते हैं, उनकी संख्या में कोई बदलाव नहीं आया है। हालांकि बिहार में हाल ही में विवाहित महिला और पुरुष जो अत्याधुनिक गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करते हैं, उनकी संख्या में 5.7 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। 

विवाहित महिला और पुरुष जो अत्याधुनिक गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करते हैं, उममें 2.4 फीसदी की बढ़त देखी गई है। वहीं 2005-06 और 2015-16 के बीच उत्तर प्रदेश में विवाहित महिला के पतियों के द्वारा कंडोम का इस्तेमाल 8.6 फीसदी से बढ़कर 10.8 फीसदी हो गया है।

साल 2015 में बिहार और उत्तर प्रदेश में टीएफआर एक समान था। अगर बिहार अपने टीएफआर स्तर का कम करना चाहता है तो इसे उत्तर प्रदेश से सीखना होगा कि आखिर कैसे विवाहित पुरुषों को कंडोम के इस्तेमाल के प्रति प्रोत्साहित करना है।

आबादी के लिहाज से देश के बड़े राज्यों में से एक बिहार जनसंख्या रोकने के मामले में पिछड़ता जा रहा है। हाल ही में किए गए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम का शोध बताता है कि अन्य राज्यों की तुलना में बिहार काफी पीछे छूटता जा रहा है। साल 2006 की बात करें तो सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के मुताबिक बिहार और उत्तर प्रदेश एक ही पायदान पर खड़े दिख रहे थे। दोनों ही राज्यों में प्रजनन दर 4.2 थी। 

मगर 2018 में जहां यूपी में प्रजनन दर (टीएफआर) घटकर 2.9 हो गई, वहीं बिहार 14 साल में महज 3.2 तक ही पहुंच पाया। ये उन आठ बड़े राज्यों में से सबसे ज्यादा है जहां दर 2.1 से ज्यादा रजिस्टर की गई है। आखिर बिहार जनसंख्या नियंत्रण की दौड़ में क्यों पीछे छूटता जा रहा है? आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब… 

इस तरह से यूपी ने बिहार को पीछे छोड़ा

14 साल पहले बिहार और यूपी दोनों एक ही पायदान पर खड़े थे। मगर उत्तर प्रदेश ने जहां अपनी स्थिति में सुधार किया, वहीं बिहार खड़ा ताकता रहा। इसके पीछे का बड़ा कारण है कि यूपी ने गर्भ निरोधक उपायों का ज्यादा उपयोग किया। 2006 के बाद से यूपी में प्रजनन क्षमता दर में साल दर साल गिरावट होती रही जबकि बिहार के साथ ऐसा नहीं हुआ। 


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