Jyotiraditya Scindia Yogi Adityanath | MP Uttar Pradesh By-Elections 2020 State Wise List Update; Kamal Nath, Shivraj Singh Chouhan | बिहार के साथ 11 राज्यों की 56 सीटों पर उपचुनाव: मोदी के 56 इंच के सीने पर कोरोना का कितना रहा असर?

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27 मिनट पहलेलेखक: रवींद्र भजनी

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  • मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार का भविष्य तय करेंगे नतीजे
  • उत्तरप्रदेश में महिला सुरक्षा के मुद्दे पर घिरी है योगी सरकार

इस समय पूरा फोकस बिहार विधानसभा चुनाव पर है, लेकिन 11 राज्यों की 56 विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव हो रहे हैं। भले ही विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे हावी हैं, यह नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल का रिपोर्ट कार्ड भी बनाएंगे। यह चुनाव केंद्र सरकार का कोरोना टेस्ट भी है, जहां जनता तय करेगी कि मोदी सरकार पॉजिटिव रही या निगेटिव।

चुनाव आयोग के मुताबिक राज्यों की विधानसभाओं में इस समय 63 सीटें खाली हैं। इसमें से सिर्फ 56 सीटों पर ही उपचुनाव हो रहे हैं। 54 सीटों पर मंगलवार (3 नवंबर) को वोटिंग होगी और 2 सीटों पर शनिवार को बिहार में तीसरे फेज के साथ वोटिंग होगी। केरल, तमिलनाडु, असम और पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव है, इस वजह से वहां की 7 खाली सीटों पर चुनाव आयोग ने फिलहाल उपचुनाव टाल दिए हैं। बिहार में वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट पर 7 नवंबर को उपचुनाव होंगे। जेडी(यू) सांसद बैद्यनाथ प्रसाद महतो के फरवरी में निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव जरूरी हो गया था। सभी उपचुनावों के नतीजे 10 नवंबर को सामने आएंगे।

कहां कितनी सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं?

सबसे ज्यादा 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव मध्यप्रदेश में हों रहे हैं। इसके बाद गुजरात में 8, उत्तरप्रदेश में 7, ओडिशा, नगालैंड, कर्नाटक और झारखंड में 2-2 और हरियाणा, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में 1-1 सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं।

क्यों महत्वपूर्ण हैं उपचुनाव के नतीजे?

बिहार के साथ-साथ उपचुनावों को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल की नीतियों, उपलब्धियों पर जनमत संग्रह के तौर पर देखा जा रहा है। कोरोनावायरस महामारी को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन, बेरोजगारी, खस्ताहाल इकोनॉमी के साथ-साथ नए किसान कानून और चीनी सेना के लद्दाख में घुस आने के मुद्दों पर जनता की राय सामने आएगी।

इसके साथ-साथ इस दौरान जम्मू-कश्मीर के संबंध में अनुच्छेद 370 को हटाना, वहां जमीन लेने का अधिकार सभी भारतीयों को देना, राम मंदिर का भूमिपूजन भी कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिस पर वोटर विचार करेगा। इस वजह से न केवल भाजपा के लिए बल्कि विपक्षी पार्टियों के लिए भी यह उपचुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं।

किस राज्य में कितना महत्व है उपचुनावों का?

मध्यप्रदेश (28 सीटें): सिंधिया, कमलनाथ, चौहान का सियासी भविष्य दांव पर

  • मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा जॉइन की। इसकी वजह से 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में एक बार फिर भाजपा सत्ता में आई। बाद में तीन और कांग्रेस विधायक भाजपा में आए। तीन सीटें विधायकों के निधन की वजह से खाली हुई थी।
  • 2018 के विधानसभा चुनावों में 230 सीटों वाले सदन में कांग्रेस ने 114 सीटें जीती थी, जबकि भाजपा ने 109 सीटें। इस समय विधानसभा में भाजपा के पास 107 सीटें हैं। उसे अपने दम पर बहुमत के लिए सिर्फ नौ सीटें चाहिए। वहीं, कांग्रेस को सत्ता में आने के लिए कम से कम 21 सीटें जीतनी होंगी, तब वह BSP, SP और निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में होगी। इन चुनावों में केंद्र का परफॉर्मेंस तो महत्वपूर्ण रहेगा ही, शिवराज सिंह चौहान, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही नरेंद्र सिंह तोमर का राजनीतिक भविष्य भी निर्भर करेगा।

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गुजरात (8 सीटें): BJP के मिशन 2022 का टेस्ट

  • गुजरात में 8 सीटों पर उपचुनाव जरूरी हो गए थे क्योंकि जून में राज्यसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफा दिया था। गुजरात BJP चीफ सीआर पाटिल ने 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए 200 में से 182 सीटें जीतने का मिशन सेट किया है। यह उपचुनाव पाटिल का बड़ा टेस्ट होगा।
  • 1995 के बाद अपना बेस्ट परफॉर्मेंस देते हुए 2017 में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं और वह चाहती है कि सभी आठ सीटें उसकी ही झोली में गिरे। BJP की राज्यसभा सीटें कायम रखने के लिए जिन 8 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी थी, उनमें से 5 को BJP ने टिकट दिए हैं।
  • गुजरात में उपचुनावों के परिणाम सरकार पर सीधा असर नहीं डालेंगे क्योंकि वहां BJP के पास 182 सदस्यों वाले सदन में 103 सीटें हैं। वहीं, कांग्रेस के पास फिलहाल सिर्फ 65 सीटें ही हैं। इसके बाद उपचुनावों में वोटर्स का मूड समझ आएगा, खासकर ग्रामीण इलाकों में क्योंकि वहां राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं।

उत्तरप्रदेश (7 सीटें): महिला सुरक्षा बनेगा योगी की चुनौती

  • 2017 में जब BJP ने एकतरफा जीत हासिल की थी तो कई दशक के बाद इन 7 में से 6 सीटों पर जीत हासिल की थी। एक सीट पर SP का विधायक था। इन उपचुनावों में BJP की राह आसान नहीं रहने वाली क्योंकि सातों सीटों पर विपक्ष योगी आदित्यनाथ सरकार को कानून-व्यवस्था, खासकर महिला सुरक्षा और हालिया दुष्कर्म और जाति-आधारित संघर्षों को सामने रखकर घेर रहा है।
  • यदि BJP का परफॉर्मेंस अच्छा नहीं रहा तो यह समझा जाएगा कि उसकी राज्य सरकार ने दलितों की उम्मीदों को पूरा नहीं किया, खासकर हाथरस के दुष्कर्म के मामले में। बांगरमऊ के BJP विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को रेप और मर्डर के मामले में सजा हुई है, जिससे सीट खाली हुई है। वहां भी योगी को जवाब देना मुश्किल हो रहा है।

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कर्नाटक, झारखंड, नगालैंड, मणिपुर (2-2 सीटें) में औपचारिकता

  • कर्नाटक, झारखंड, नगालैंड, मणिपुर में 2-2- सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। कर्नाटक में दोनों सीटों पर कांग्रेस और JD (S) ताकतवर है। ऐसे में BJP की जीत से उसकी स्थिति ही मजबूत होगी। दोनों ही जगह विधायकों की मौत होने की वजह से सीट खाली थी।
  • ओडिशा में दो में से BJP और BJD के पास एक-एक सीट थी। दोनों ही पार्टियों ने पूर्व विधायकों के बेटों को टिकट दिए हैं। ताकि संवेदना के आधार पर वोट हासिल कर सकें। झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक सीट छोड़ दी थी, वहीं कांग्रेस के एक विधायक की मौत हुई थी।
  • नगालैंड में दो विधायकों की मौत होने पर उपचुनाव जरूरी थे। सिर्फ मणिपुर ही 11 राज्यों में ऐसा राज्य है जहां 7 नवंबर को उपचुनावों की वोटिंग होनी है। चुनाव आयोग ने पांच विधानसभा सीटों को खाली बताया था, लेकिन दो के लिए ही उपचुनाव घोषित किए। कुल मिलाकर राज्य में इस समय 13 सीटें खाली पड़ी हैं।

तेलंगाना, हरियाणा, छत्तीसगढ़ (1-1 सीट) में कोई खास चर्चा नहीं

  • तेलंगाना में TRS विधायक के निधन से सीट खाली हुई थी। हरियाणा में जाट बहुल सीट कांग्रेस के कब्जे वाली रही है। यहां मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को BJP के लिए मौका दिख रहा है, वहीं कांग्रेस के लिए यह कॉन्फिडेंस बूस्टर साबित होगी। छत्तीसगढ़ में अजित जोगी के निधन से खाली हुई मरवाही सीट पर दो दशक से परिवार का ही कब्जा रहा है।

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