पीएम मोदी और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
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सार
- बिछाए जाल में फंसकर रह गए महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव
- चिराग ने अपनी और नीतीश कुमार की लुटिया डुबोई
- रालोसपा, एआईएमआईएम, बसपा के गठबंधन ने बिगाड़ा खेल
विस्तार
इस मामले में पार्टी ने एनडीए का घटक दल जद(यू) 42 सीटों पर जीत पाकर छोटा भाई (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार) बन गया है। बिहार की सत्ता में एनडीए की वापसी हुई है और नीतीश कुमार को चौथी बार राज्य का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल गया है। भाजपा को न केवल बिहार में बल्कि उत्तर प्रदेश, गुजरात राज्य में हुए उपचुनाव में भी फायदा हुआ।
महिलाओं ने दी जीत की चाबी
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए को जीत की चाबी महिलाओं ने दे दी। इस बार के चुनाव में महिलाओं ने जमकर वोट डाला। उनके वोट का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 05 प्रतिशत अधिक रहा। समझा जा रहा है कि नीतीश कुमार द्वारा महिलाओं को ध्यान में रखकर चलाई गई योजनाओं का एनडीए को लाभ मिला। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य में महिलाओं के लिए साइकिल बंटवाई थी। राज्य में शराबबंदी से महिलाएं खुश थीं। उज्वला योजना के तहत महिलाओं को मिले गैस कनेक्शन, स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय निर्माण तथा कोविड-19 संक्रमण के मद्देनजर प्रतिव्यक्ति के हिसाब से पांच किलो अनाज के वितरण ने पूरे चुनाव को एनडीए के पक्ष में सोने पर सुहागा बना दिया।
नीतीश के लिए घाटे का सौदा बने चिराग तो भाजपा को मिली ताकत
राजनीति का खेल अजूबा है। बड़ी मुश्किल से बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने एक सीट जीतकर खाता खोल लिया है, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़े डेंट देते हुए जद(यू) को कुछ दर्जन सीटों पर बड़ा नुकसान पहुंचाया। राजनीति के पंडितों का मानना है कि एनडीए से अलग चुनाव लड़ने, भाजपा का समर्थन करने और जद(यू) की खुली मुखालफत का सीधा फायदा भजपा को मिला।
भाजपा विधायकों की संख्या के मामले में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई, जबकि जद(यू) को तीसरे नंबर पर आकर सहयोग करना पड़ा। जद(यू) का एक धड़ा इसके लिए भाजपा के नेतृत्व को ही जिम्मेदार मानता है। बिहार में चुनाव सर्वे में जुटे कुछ सूत्रों की मानें तो चिराग के एनडीए छोड़ने के बाद महागठबंधन का चुनाव प्रचार खड़ा हो गया था। भाजपा ने ऐसे बिछाए तेजस्वी के लिए कांटे और एनडीए के लिए फूल
महागठबंधन का हिस्सा रहे रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा, वीआईपी के मुकेश साहनी, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी को उससे अलग करना एनडीए के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ। अंदरखाने के जानकार बताते हैं कि कुशवाहा, मुकेश साहनी ने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के इशारे पर महागठबंधन को छोड़ा। नीतीश कुमार की सहमति से भाजपा ने जीतन राम मांझी को भी एनडीए में लौटने का अवसर दे दिया। नीतीश को मांझी लोजपा के चिराग पासवान को कमजोर करने की दवा भी लग रहे थे। शतरंज की बिसात पर ये मोहरे बिछते चले गए। वीआईपी और हम एनडीए का हिस्सा बन गई।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से संरक्षण का दावा करते हुए लोजपा ने चुनाव में अकेले उतरने का फैसला कर लिया। रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा को नीतीश कुमार ने एनडीए में जगह नहीं लेने दी तो वह बसपा, असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएमआईएम के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतर गए। इस गठबंधन को कुल छह सीटें मिल गई। एक बसपा को और पांच एमआईएमआईएम को, लेकिन इस तालमेल ने महागठबंधन का जायका बिगाड़ दिया। भाजपा और उसके रणनीतिकार भी यही चाहते थे। इस तरह से मंगलवार शुभ मंगल साबित हो गया।