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बिहार विधानसभा चुनाव में वामदलों ने भी चौंकाने वाला प्रदर्शन किया है। महागठबंधन से वामदलों का तालमेल होने के बाद राज्य में उनकी शानदार वापसी हुई है। इनमें भी सबसे ज्यादा फायदे में भाकपा माले रही। वर्ष 1989 में इस पार्टी ने पहली बार बिहार में एक सीट जीती थी। इसके बाद 1990 में इसके सात विधायक चुने गए।
इस बार गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए वामदलों को कुल 19 सीटें मिली थीं। इनमें से 16 सीटों पर उनकी जीत हुई। अकेले भाकपा माले ने ही 12 जीतीं और भाकपा एवं माकपा दो-दो सीटों पर विजयी हुईं। माकपा के चार प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से दो जीते, जबकि भाकपा ने छह प्रत्याशी खड़े किए थे उसे दो पर जीत मिली।
जानते हैं कि भाकपा माले की स्थापना कब और किन लक्ष्यों के साथ की गई थी
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), जिसे संक्षेप में भाकपा माले या सीपीआई एमएल कहते हैं। इसका चुनाव चिन्ह आयताकार लाल झंडे पर सफेद हंसिया और हथौड़ा अंकित है। पार्टी का कार्यालय दिल्ली में है। पार्टी का दूसरा कार्यालय बिहार की राजधानी पटना में है।
1925 में बनी भाकपा, निजाम के खिलाफ किया संघर्ष
भारत में वर्ष 1925 में भारतीय कम्युनिट पार्टी (सीपीआई) का गठन किया गया था। सीपीआई ने हैदराबाद के निजाम के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चलाया, लेकिन बाद में सीपीआई के समझौतावादी रुख अख्यितार करने से पार्टी में मतभेद बढ़ गया।
1964 में टूटकर माकपा बनी
वर्ष 1964 में पार्टी टूट गई और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीआई एम या मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) का गठन हुआ। विभाजन के वक्त तमाम क्रांतिकारी सीपीआई एम में शामिल हो गए, लेकिन उसके ढुलमुल रवैये के कारण पार्टी में आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया।
वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में भूमि संघर्ष छिड़ गए, जिसे दबाने के लिए संयुक्त मोर्चा सरकार ने सशस्त्र कार्रवाई की। नक्सलबाड़ी में शांतिपूर्ण जुलूस पर पुलिस ने गोलियां चलाकार 11 गरीब-भूमिहीन महिला-पुरुष-बच्चों की हत्या कर दी। 25 मई, 1967 की इस घटना के बाद सीपीआई एम विभाजित हो गई।
1969 में बनी भाकपा माले
सीपीआई (एम) से अलग होकर कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने 22 अप्रैल, 1969 को लेनिन के जन्म दिवस पर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की स्थापना की। चारु मजूमदार पार्टी के पहले महासचिव बने थे।
वर्ष 1974 में हुआ पुनर्गठन
मजूमदार की हत्या के बाद पार्टी में बिखराव आ गया था। बिखराव, भ्रम व नेतृत्वहीनता के उस माहौल में वर्ष 1974 में जौहर (सुब्रत दत्त) के नेतृत्व में भाकपा माले का पुनर्गठन किया गया था। तीन सदस्यीय केंद्रीय कमेटी का गठन हुआ, जिसमें जौहर के अलावा विनोद मिश्र व स्वदेश भट्टाचार्य शामिल थे।
इन सबसे मुश्किल दौरों में भी पार्टी ने खुद को कदम-ब-कदम पुनर्गठित किया और बिहार के भोजपुर में नक्सलबाड़ी की मशाल को जलाए रखा। जौहर की वर्ष 1975 में भोजपुर के बाबूबांध में पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई। इसके बाद विनोद मिश्र पार्टी के तीसरे महासचिव बनाए गए। इसके बाद पार्टी ने बिहार में किसान आंदोलन समेत कई अन्य आंदोलन चलाए।
पहली बार 1989 में आरा से जीत
वर्ष 1989 में पहली बार बिहार के आरा लोकसभा क्षेत्र से रामेश्वर प्रसाद निर्वाचित हुए और 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के सात विधायक विजयी हुए। इसके बाद से बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी अपने उम्मीदवार उतारती आ रही है। बिहार के अलावा झारखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश जैसे कई अन्य राज्यों में पार्टी की उपस्थिति है।
बिहार विधानसभा चुनाव में वामदलों ने भी चौंकाने वाला प्रदर्शन किया है। महागठबंधन से वामदलों का तालमेल होने के बाद राज्य में उनकी शानदार वापसी हुई है। इनमें भी सबसे ज्यादा फायदे में भाकपा माले रही। वर्ष 1989 में इस पार्टी ने पहली बार बिहार में एक सीट जीती थी। इसके बाद 1990 में इसके सात विधायक चुने गए।
इस बार गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए वामदलों को कुल 19 सीटें मिली थीं। इनमें से 16 सीटों पर उनकी जीत हुई। अकेले भाकपा माले ने ही 12 जीतीं और भाकपा एवं माकपा दो-दो सीटों पर विजयी हुईं। माकपा के चार प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से दो जीते, जबकि भाकपा ने छह प्रत्याशी खड़े किए थे उसे दो पर जीत मिली।
जानते हैं कि भाकपा माले की स्थापना कब और किन लक्ष्यों के साथ की गई थी
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), जिसे संक्षेप में भाकपा माले या सीपीआई एमएल कहते हैं। इसका चुनाव चिन्ह आयताकार लाल झंडे पर सफेद हंसिया और हथौड़ा अंकित है। पार्टी का कार्यालय दिल्ली में है। पार्टी का दूसरा कार्यालय बिहार की राजधानी पटना में है।
1925 में बनी भाकपा, निजाम के खिलाफ किया संघर्ष
भारत में वर्ष 1925 में भारतीय कम्युनिट पार्टी (सीपीआई) का गठन किया गया था। सीपीआई ने हैदराबाद के निजाम के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चलाया, लेकिन बाद में सीपीआई के समझौतावादी रुख अख्यितार करने से पार्टी में मतभेद बढ़ गया।
1964 में टूटकर माकपा बनी
वर्ष 1964 में पार्टी टूट गई और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीआई एम या मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) का गठन हुआ। विभाजन के वक्त तमाम क्रांतिकारी सीपीआई एम में शामिल हो गए, लेकिन उसके ढुलमुल रवैये के कारण पार्टी में आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया।
1967 में बंगाल में संघर्ष होने पर यह भी टूटी
वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में भूमि संघर्ष छिड़ गए, जिसे दबाने के लिए संयुक्त मोर्चा सरकार ने सशस्त्र कार्रवाई की। नक्सलबाड़ी में शांतिपूर्ण जुलूस पर पुलिस ने गोलियां चलाकार 11 गरीब-भूमिहीन महिला-पुरुष-बच्चों की हत्या कर दी। 25 मई, 1967 की इस घटना के बाद सीपीआई एम विभाजित हो गई।
1969 में बनी भाकपा माले
सीपीआई (एम) से अलग होकर कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने 22 अप्रैल, 1969 को लेनिन के जन्म दिवस पर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की स्थापना की। चारु मजूमदार पार्टी के पहले महासचिव बने थे।
वर्ष 1974 में हुआ पुनर्गठन
मजूमदार की हत्या के बाद पार्टी में बिखराव आ गया था। बिखराव, भ्रम व नेतृत्वहीनता के उस माहौल में वर्ष 1974 में जौहर (सुब्रत दत्त) के नेतृत्व में भाकपा माले का पुनर्गठन किया गया था। तीन सदस्यीय केंद्रीय कमेटी का गठन हुआ, जिसमें जौहर के अलावा विनोद मिश्र व स्वदेश भट्टाचार्य शामिल थे।
बिहार में ऐसे अस्तित्व में आई पार्टी
इन सबसे मुश्किल दौरों में भी पार्टी ने खुद को कदम-ब-कदम पुनर्गठित किया और बिहार के भोजपुर में नक्सलबाड़ी की मशाल को जलाए रखा। जौहर की वर्ष 1975 में भोजपुर के बाबूबांध में पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई। इसके बाद विनोद मिश्र पार्टी के तीसरे महासचिव बनाए गए। इसके बाद पार्टी ने बिहार में किसान आंदोलन समेत कई अन्य आंदोलन चलाए।
पहली बार 1989 में आरा से जीत
वर्ष 1989 में पहली बार बिहार के आरा लोकसभा क्षेत्र से रामेश्वर प्रसाद निर्वाचित हुए और 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के सात विधायक विजयी हुए। इसके बाद से बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी अपने उम्मीदवार उतारती आ रही है। बिहार के अलावा झारखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश जैसे कई अन्य राज्यों में पार्टी की उपस्थिति है।
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