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पटना9 घंटे पहलेलेखक: फिरोज अख्तर/शालिनी सिंह
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यह पटना के रघुनाथ बालिका सेंटर पर बेसुध हुई रिंकी है। इसी तरह कैमूर के मोहनियां में परीक्षार्थी खुशी बेहोश हो गई। राज्य में ऐसे कई केस आए।
कंकड़बाग के रघुनाथ बालिका उच्च विद्यालय में दूसरी पाली की मैट्रिक परीक्षार्थी रिंकी 2 घंटे पहले से खड़ी थी, लेकिन जैसे ही पहली पाली की परीक्षा खत्म कर परीक्षार्थी बाहर निकले तो उन्हें देखते ही सिर झुकाकर बैठ गई। फिर सुबकने लगी। और, कुछ ही मिनट में बेसुध होकर लुढ़क गई। कैमूर के महानियां में खुशी के साथ भी यही हुआ।……मनोवैज्ञानिक इसे एग्जाम फोबिया बता रहे, लेकिन भास्कर ने जब मैट्रिक परीक्षार्थियों से बात की तो घिर गए परीक्षा लेने वाले। साल के 365 दिनों में बिहार के सरकारी स्कूल 251 दिन पढ़ाते हैं, इस साल एक दिन पढ़ाया नहीं। केंद्रीय बोर्ड के प्राइवेट स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाया भी, बिहार बोर्ड से जुड़े स्कूलों ने वह भी नहीं लिया। स्कूलों के शिक्षक मोबाइल पर भी उपलब्ध नहीं थे। कोचिंग-ट्यूशन बंद ही था। तनाव तो तय था। परीक्षा दिलाने आए अभिभावक भी कह रहे- मैट्रिक में जो भी पास हो जाए, उसपर गर्व करना चाहिए।
10वीं में प्रमोट हुए, कक्षा में तो प्रवेश ही नहीं किया
पटना कॉलेजिएट में परीक्षा देने पहुंचे जितेंद्र हों या रवींद्र बालिका उच्च विद्यालय में आई रश्मि हों या बिहार के किसी भी सेंटर पर मैट्रिक एग्जाम देने आया कोई भी छात्र- किसी एक ने 10वीं के क्लासरूम में कदम नहीं रखा। इतिहास में पहला ऐसा मौका है, जब बिना पढ़े ही बिहार बोर्ड के बच्चे मैट्रिक परीक्षा दे रहे हैं। कोरोना के कारण 24 मार्च को बिहार सहित पूरे देश में पहला लॉकडाउन लगाया गया। इसके बाद से स्कूल बंद हो गए। 226 दिन बाद 11 नवंबर को सिर्फ सेंटअप एग्जाम देने के लिए बच्चों ने स्कूल का मुंह देखा। इसके 95 दिन बाद 4 जनवरी से 8वीं से ऊपर के स्कूल तो खुले, लेकिन इससे इन छात्रों को कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि सेंटअप के बाद परंपरा के तहत इन्हें पढ़ाया नहीं गया।
7 महीने बाद होता है सेंटअप, वह भी बिना पढ़े दिया
बिहार के सरकारी स्कूलों में सेशन अप्रैल में शुरू होता है। सालभर में 60 दिन सरकारी छुटि्टयां और 54 रविवार को जोड़ कर कुल 114 दिनों की छुटि्टयां रहती हैं। साल के 365 दिन में 114 दिन घटा दीजिए तो एक सेशन में 251 दिन की पढ़ाई होती है। 10वीं के बच्चों की पढ़ाई इससे भी कम होती है, क्योंकि सेंटअप एग्जाम नवंबर में ही हो जाता है। मोटे तौर पर देखें तो सात महीना यानी 210 दिन, लेकिन इसबार पूरा सेशन ही लैप्स कर गया।
कोई पानी गटक रहा था, कुछ सिगरेट पीते दिखे
14-15 साल के बच्चे होते हैं ज्यादातर मैट्रिक परीक्षार्थी। शिक्षकों की कमी के कारण वैसे ही पढ़ाई नहीं होती थी, लेकिन इस बार तो साफ ही नहीं हुई। इसलिए, टेंशन भी बहुत था इनके मन में। सेंटर के बाहर बहुत गर्मी नहीं थी, लेकिन परीक्षार्थी पानी पर पानी गटक रहे थे। कुछ गहरी सांसें छोड़कर टेंशन दूर भगाते दिख। सिगरेट पीते भी कुछ बच्चे दिख गए। गया के जगजीवन कॉलेज सेंटर के ठीक बाहर चार-पांच बच्चे सिगरेट पीते दिखे, टोका तो एक लाइन कहते भागे- टेंशनिया गए हैं, क्या करें!

गया के एक परीक्षा केंद्र पर सुट्टा मारता छात्र।
दूरदर्शन पर उन्नयन कार्यक्रम किया, मगर पता ही नहीं था
भास्कर ने इस हालत पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों से बात की तो बताया गया कि “कोरोना के कारण छात्रों की पढ़ाई की भरपाई के लिए दूरदर्शन पर उन्नयन कार्यक्रम चलाया गया। जुलाई-अगस्त में दूरदर्शन के माध्यम से माध्यम से 1 घंटे की ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था की गई। फिर बीच में बंद हुई तो नवंबर-दिसंबर में चली।” अब शिक्षा विभाग के इस दावे पर जब परीक्षार्थियों और अभिभावकों से बात की गई तो साफ जवाब मिला- “गांव-कस्बों के बच्चों को कोई लाभ नहीं मिला। सभी के पास TV हो, यह गारंटी नहीं और इस उन्नयन कार्यक्रम की जानकारी भी तो नहीं दी गई थी ठीक से।”
इस बार पिछले साल से 24466 बच्चे अधिक परीक्षार्थी
कोरोना के कारण पढ़ाई नहीं हुई, फिर भी पिछले साल से 24466 अधिक बच्चे इसबार मैट्रिक की परीक्षा में बैठे हैं। पिछले साल 16 लाख 60 हजार परीक्षार्थी शामिल हुए थे, लेकिन इसबार कोरोना काल होने के बावजूद परीक्षार्थियों की संख्या ज्यादा है। इसबार 16,84,466 परीक्षार्थी इस महापरीक्षा में शामिल हो रहे हैं।