मुजफ्फरपुरएक घंटा पहले
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मुरौल प्रखंड में बांध टूटने का एक अपना इतिहास है। तिरहुत नहर का निर्माण 1974 में किया गया था। लक्ष्य था किसानों के खेत में पानी पहुंचाना, लेकिन हुआ ठीक विपरीत। रबी हो या खरीफ सीजन तिरहुत नहर से सिचाई नहीं हो सकता, क्याेकि सिंचाई के लिए चैनल का कही भी निर्माण नहीं किया गया। दूसरी ओर तिरहुत नहर महमदपुर कोठी पर बूढ़ी गंडक नदी में मिला दिया जाता है व इसी गांव में नहर समाप्त हो जाता है। जिस समय नहर से महमदपुर को डैंप बनाकर चारों तरफ से घेर कर नदी में मिलाया गया, उसी समय यहां के लोगों ने इसका विरोध किया था। नतीजा यह हुआ कि मुजफ्फरपुर से लेकर महमदपुर तक कहीं भी बांध टूटने पर गांवाें में पानी घुस जाता है।
सबसे पहले सादिकपुर मुरौल में 1987 में टूटा था बांध
सबसे पहले सादिकपुर मुरौल में 1987 में बांध टूटा था। उसके बाद महमदपुर में 1974, 14 जुलाई 2004 , 2017, 2 अगस्त 2020, रजवाड़ा में 1975 और 2017 में बांध धाराशायी हाे गया था। इससे एक बड़ी आबादी प्रभावित हुई थी। जब शहर पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगता है, तब प्रशासन द्वारा नियुक्त पेशेवर बंधकटवा की निगरानी के लिए रात भर रतजगा करते हैं।
जनप्रतिनिधियाें का आराेप : प्रशासन ने दो जगहों पर जेसीबी से बांध कटवा दिया, लाठीचार्ज निंदनीय
स्थानीय मुखिया सीता देवी ने कहा कि बांध काटने पर लाखों लोग प्रभावित हो जाते, इसलिए जनप्रतिनिधि के नाते बांध काटने से रोकने गई तो पुलिस ने पिटाई कर दी। मेरा पीठ, सीना के अलावे पैर पूरी तरह जख्मी हो गया। स्थानीय पैक्स अध्यक्ष प्रज्ञा ने कहा कि बार-बार विनती की, लेकिन प्रशासन ने एक न सुनी व पुलिस के द्वारा मारपीट की गई। बांध काटने का विरोध करने वाले को पुलिस ने लहुलुहान कर दिया। प्रशासन ने दो जगहों पर जेसीबी से बांध कटवा दिया। इस अन्याय के विरुद्ध हम लोग लड़ाई लड़ेंगे। महिला मुखिया और पैक्स अध्यक्ष को पीटे जाने पर सकरा व मुरौल के जनप्रतिनिधियों में भारी उबाल है। जिला पार्षद सुरेश प्रसाद यादव ने कहा कि प्रशासन के द्वारा महिला जनप्रतिनिधियों को इस तरह से पीटा जाना निंदनीय है।
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