Patna News In Hindi : At one time there was no money to study in a good school, today we go to institutions all over the world to teach. | एक समय अच्छे स्कूल में पढ़ने तक के पैसे नहीं थे, आज दुनिया भर के संस्थानों में जाते हैं पढ़ाने

  • कोरोना संकट के बीच विपरीत परिस्थितियों में जीत की कहानी सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में

दैनिक भास्कर

Jun 25, 2020, 03:56 PM IST

बिहार के खगड़िया जिले के एक छोटे से गांव का रहने वाला था शशि कुमार। वह अपने पिता सूर्य नारायण साहू के साथ हमेशा की तरह मिठाई लेकर मेरे पास आया। यह 2009 की बात है। पांच साल पहले जब वह पहली दफा मुझसे मिलने आया था तब भी उसके हाथ में ऐसा ही एक डिब्बा था। उस मिठाई का स्वाद मुझे भाया और मैंने तारीफ कर दी थी। शशि उसके बाद जब भी गांव से लौटता मिठाई लाना कभी नहीं भूलता था। मगर इस बार तो खास मौका था। पिता-पुत्र ने डिब्बा सामने रखा और दोनों भरी आंखों से मुझे देखते रहे। उनके पास बड़ी खुशखबरी भी थी। शशि का आईआईटी में चयन जो हुआ था। एक बेहद गरीब बाप के लिए इससे बड़ी सौगात क्या हो सकती थी कि कठिन संघर्षों में पढ़ा उसका बेटा देश के एक सबसे प्रतिष्ठित इम्तिहान में कामयाब हो गया था। उन्हें यह बड़ी तसल्ली थी कि बेटे को मेहनत-मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी। वह उजले भविष्य की तरफ कदम बढ़ा चुका था।

गांव के जिस छोटे से सरकारी स्कूल में शशि पढ़ा था, उसके बगल के प्राइवेट स्कूल तक में पढ़ाने की आर्थिक क्षमता उसके पिता के पास नहीं थी। बिहार बोर्ड से ही उसने दसवीं तक की पढ़ाई की। पैसे की तंगी इस बात की इजाजत नहीं देती थी कि वह गांव से बाहर जाकर पढ़ सके। मगर वह आईआईटी में प्रवेश की इच्छा रखता था। सुपर 30 में उसके चयन के लिए पिता-पुत्र पहली बार बड़ी आस लिए भावुक होकर आए थे। सोहन पापड़ी लेकर। वह पहली बार पटना आया था। उसने दिन-रात जी-तोड़ मेहनत की। खाना-खुराक, सेहत सब कुछ भूल गया। सिर्फ आईआईटी की परीक्षा ही उसे सोते-जागते दिखाई देती। मैंने इस हद तक मेहनत करने वाले बच्चे कम ही देखे हैं। वह पीलिया की चपेट में आ गया, मगर पढ़ाई नहीं रोकी। हमें पता चला तो हम डॉक्टर के पास लेकर गए। तब बीमारी का पता चला।

2004 में पहले ही प्रयास में आईआईटी में उसका चयन हुआ। मगर रैंक अच्छी नहीं मिली। शशि ने प्रवेश की बजाय एक बार फिर तैयारी का निर्णय लिया। इस बार उसने पहले से दोगुनी मेहनत की। परिणाम सर्वश्रेष्ठ होने के लिए और क्या चाहिए था? अगले साल उसे आईआईटी खड़गपुर में कम्प्यूटर साइंस की मनपसंद ब्रांच मिली। पिता-पुत्र दोनों एक बार फिर मिठाई लाए। मेरे लिए भी यह गर्व के पल थे। आईआईटी के चार सालों में भी शशि ने कोई कसर नहीं छोड़ी। लक्ष्य के प्रति लगन कभी कम नहीं हुई। इसलिए जिंदगी की एक और बड़ी खुशखबरी उसके लिए आना बाकी थी। आईआईटी के आखिरी साल में उसे यूरोप की सबसे प्रतिष्ठित स्कॉलरशिप की परीक्षा में पूरी दुनिया में पहला स्थान मिला था। यह थी एलसीटी में यूरोपियन मास्टर प्रोग्राम की एरासमस मुंडस स्कॉलरशिप। कामयाबी की इस खबर के साथ वह उसी मिठाई के साथ एक बार फिर सामने हाजिर था। मैं यह बताते हुए रोमांचित हूं कि मेरा काबिल शिष्य शशि आज फ्रांस से पढ़ाई पूरी करने के बाद लंदन के गूगल ऑफिस में बतौर सीनियर साइंटिस्ट काम कर रहा है । रिसर्च वर्क भी जारी है। कई नामी रिसर्च जर्नल्स में उसके पेपर छपे हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई अवॉर्ड उसे मिले हैं। वह कई देशों में जाकर पढ़ाता है। फोन और मेल पर मेरे संपर्क में वह निरंतर है और हर खबर पहले मुझसे शेयर करता है। अभी पिछले साल मैं जब कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में लेक्चर देने गया था तब वह दिनभर मेरे साथ था।

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