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- A Period Of Short term Governments May Begin In Japan After Suga Becomes Prime Minister, If He Works On Abe’s Foreign Policies, It Will Be Beneficial For India
टोक्यो40 मिनट पहले
योशिहिदे सुगा को जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे का करीबी माना जाता है। उनसे उम्मीद है कि वे कूटनीतिक मामलों में आबे की तरह ही काम करेंगे।- फाइल फोटो
- सुगा की छवि पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाले लीडर की तरह है, उन्हें जापान के ब्यूरोक्रेसी की अच्छी समझ है
- सुगा जिन सवालों को पसंद नहीं करते, उनका जवाब देने से मना कर देते हैं, इस वजह से उन्हें आयरन वॉल भी कहा जाता है
71 साल के योशिहिदे सुगा के जापान का प्रधानमंत्री बनने के साथ ही कहा जा रहा है कि देश में एक बार फिर अल्पकालिक सरकारों का दौर शुरू हो सकता है। 2012 से 2020 तक शिंजो आबे देश के प्रधानमंत्री रहे। वहीं, 2012 से पहले जापान में 19 प्रधानमंत्री बने। 8 साल तक प्रधानमंत्री रहने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री आबे ने 28 अगस्त को स्वास्थ्य कारणों के चलते इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद जापान के पूर्व सेक्रेटरी योशिहिदे सुगा को देश का अगला प्रधानमंत्री बनाया गया। इस खबर में हम सुगा और उनके पीएम बनने से जापान और भारत के संबंधों पर क्या असर होगा, इसके बारे में जानेंगे।
सुगा की छवि पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाले लीडर की तरह है। उन्हें जापान के ब्यूरोक्रेसी की अच्छी समझ है। वे आबे के बेहद करीबी माने जाते हैं। हालांकि, आबे और अन्य प्रधानमंत्रियों की तरह वे करिश्माई वक्ता नहीं माने जाते। उनके बारे में कहा जाता है कि सुगा जिन सवालों को पसंद नहीं करते, उनका जवाब देने से मना कर देते हैं। इस वजह से उन्हें आयरन वॉल भी कहा जाता है।

कौन हैं योशिहिदे सुगा?
जापान के अकिता राज्य में 6 दिसंबर 1948 को योशिहिदे सुगा का जन्म हुआ था। वे अपने परिवार से राजनीति में आने वाले पहले व्यक्ति हैं। सुगा के पिता वासाबुरो द्वितीय विश्व युद्ध के समय साउथ मंचूरिया रेलवे कंपनी में काम करते थे। जंग में अपने देश के सरेंडर करने के बाद वे वापस जापान लौट आए। उन्होंने अकिता राज्य के युजावा कस्बे में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की। बड़े बेटे होने के नाते सुगा बचपन में खेतों में अपने पिता की मदद करते थे। उनकी मां टाटसु एक स्कूल टीचर थीं।
सिक्योरिटी गार्ड और फिश मार्केट में काम किया
सुगा अपने पिता की तरह खेती नहीं करना चाहते थे। इसलिए, वे स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर से भागकर टोक्यो आ गए। यहां आने के बाद उन्होंने कई पार्ट टाइम नौकरियां की। उन्होंने सबसे पहले कार्डबोर्ड फैक्ट्री में काम शुरू किया। कुछ पैसे जमा होने पर 1969 में होसेई यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया। पढ़ाई जारी रखने और यूनिवर्सिटी की फीस भरने के लिए उन्हें कई और पार्टटाइम किया। सुगा ने एक लोकल फिश मार्केट में और सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर भी काम किया।
राजनीति में एंट्री?
ग्रेजुएशन करने के बाद सुगा एक इलेक्ट्रिकल मेंटनेंस कंपनी में काम करने लगे। लेकिन जल्द ही एक सांसद के सचिव बनने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। एक दशक से ज्यादा समय के बाद उन्होंने पोर्ट ऑफ योकोहामा सिटी असेंबली में एक सीट पर जीत मिली। यह 1966 का समय था, जब उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में सफलता हासिल की। वे लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के टिकट पर प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए।
जब आबे जुलाई 2006-सितंबर 2007 और दिसंबर 2012 के बाद से अब तक पीएम थे, तब सुगा पर्दे के पीछे से उनके लिए काम कर रहे थे। वे नीति निर्माण और ब्यूरोक्रेसी के लिए अहम काम करते थे। आबे जहां एक करिश्माई नेता थे, वहीं सुगा एक आत्म-उत्साही हैं।
सुगा की रूटीन
सुगा हर दिन सुबह 5 बजे जगते हैं और 40 मिनट तक सैर करते हैं। कहा जाता है कि वे हर दिन 100 सिट-अप्स लगाते हैं हैं। वह सुबह 9:00 बजे तक ऑफिस पहुंच जाते हैं। इसके बाद वे प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और अधिकारियों के साथ बैठकें करते हैं। वे दोपहर के भोजन में सोबा नूडल्स खाना पसंद करते हैं।
सुगा के पीएम बनने के बाद भारत के साथ संबंधों पर असर
अगर सुगा आबे की विदेश नीतियों पर चलते हैं तो ही यह भारत के लिए एक अच्छी खबर होगी। आबे के प्रधानमंत्री रहने के आखिरी दिनों में भारत और जापान के बीच कई समझौते हुए। इससे दोनों देशों के बीच रिश्ते मजबूत हुए। भारत और जापान ने दोनों देशों की सेना के बीच लॉजिस्टिक सपोर्ट का समझौता किया। आबे और मोदी दोनों ने यह बात कही थी कि इस समझौते से दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के क्षेत्र में मजबूती आएगी। इंडो पेसेफिक क्षेत्र में शांति आएगी और इसकी सुरक्षा बढ़ेगी।
- जापान के पास समुद्री इलाकों में चीन की ओर से दबदबा बनाने की कोशिश को देखते हुए इस क्षेत्र की शांति और सुरक्षा भारत और जापान दोनों के हित में हैं। लद्दाख समेत कुछ दूसरे इलाके भी हैं जो दोनों देशों के हितों से जुड़े हैं। ऐसे में आबे ने चीन के खिलाफ हमेशा भारत का समर्थन किया
- आबे ने भारत को एशियाई देशों के बीच एक अहम सहयोगी समझा। वे इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत की काट के तौर पर भारत को रणनीतिक साझेदार समझते थे। इंडो पैसेफिक विजन 2025 के जरिए उन्होंने भारत और जापान के रिश्ते को आगे ले जाने की कोशिश की। इसके जरिए उन्होंने अपनी कूटनीतिक ताकत दिखाने की कोशिश की।
- क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग या क्वाड के बाद उन्होंने इसमें शामिल देशों के बीच मेलजोल बढ़ाने की कोशिश की। आबे ने ऑर्क ऑफ फ्रीडम एंड प्रॉसपेरिटी में भारत की भूमिका को मजबूत बनाने की कोशिश की। भारत के आर्थिक विकास में भी जापान ने साथ दिया।
- अंडमान निकोबार से पूर्वोत्तर तक कई परियोजनाओं में जापान ने निवेश किया। मुंबई अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को जापान के साथ मिलकर पूरा करने पर सहमति बनी। जब 2006-07 में आबे प्रधानमंत्री थे तो वे भारत के दौरे पर पहुंचे थे।
सुगा ज्यादातर घरेलू मुद्दों पर फोकस करते हैं
एक्सपर्ट्स का मानना है कि नए पीएम विदेश नीतियों के मामले में ज्यादा नहीं परखे गए हैं। टोक्यो के मुसाशिनो यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर डोना वीक्स के मुताबिक, सुगा ज्यादातर घरेलू मुद्दों पर फोकस करते हैं। विदेश संबंधों और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों में उनकी दिलचस्पी को लेकर सवाल उठते रहे हैं। सुगा तथ्यों के आधार पर काम करने वाले माने जाते हैं। उनकी पार्टी एलडीपी के सांसद उन्हें एक न्यूट्रल फिगर के तौर पर देखते हैं, जो न तो किसी का समर्थन करता है और न विरोध।
