Postive News: Meet Shipra Shandilya -The Varanasi Entrepreneur Behind Rs 24 Lakh Turnover, Startup Delivering Pure Cow Ghee | फैशन इंडस्ट्री की नौकरी छोड़कर गाय का देसी घी और कुकीज का बिजनेस शुरू किया, पहले ही साल 24 लाख रु का टर्नओवर हुआ, 15 महिलाओं को रोजगार भी दिया

  • Hindi News
  • Db original
  • Postive News: Meet Shipra Shandilya The Varanasi Entrepreneur Behind Rs 24 Lakh Turnover, Startup Delivering Pure Cow Ghee

नई दिल्ली27 मिनट पहलेलेखक: विकास वर्मा

शिप्रा ने बनारस और आसपास के गांव की महिलाओं को जोड़कर एक फर्म बनाई, जिसका नाम रखा प्रभूति एंटरप्राइजेज।

  • उनकी कंपनी में हर महीने 100 किलो देसी घी बनाया जाता है, इसकी कीमत 2460 रुपए प्रति किलो तक है
  • शिप्रा कहती हैं- अगले साल टर्नओवर चार गुना करने का टारगेट है, 700 किसानों को भी जोड़ेंगे

शिप्रा शांडिल्य…90 के दशक में फैशन इंडस्ट्री में ये एक चमकता नाम था, लेकिन 19 साल तक फैशन इंडस्ट्री में काम करने के बाद अचानक एक दिन उस चमचमाती दुनिया को छोड़कर गांव का रुख किया। पिछले सात सालों से वे ग्रामीण इलाकों में ही रहकर यहां के लोगों के साथ ही काम कर रही हैं। शिप्रा ने बनारस और आसपास के गांव की महिलाओं को जोड़कर एक फर्म बनाई, जिसका नाम रखा प्रभूति एंटरप्राइजेज। अब वे इसके जरिए करीब 12 तरह के अलग-अलग फूड प्रोडक्ट्स तैयार करती हैं। शुरुआत गाय के शुद्ध देसी घी से की थी और फिर रागी, बाजरा जैसे मोटे अनाजों के नॉन प्रिजर्वेटिव कुकीज भी बनाने लगीं।

अपनी बेकरी में गांव की 15 महिलाओं को रोजगार देकर शिप्रा उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं, साथ ही 450 से अधिक छोटे किसानों से भी सीधे संपर्क में हैं, जो उन्हें हर महीने 30 हजार लीटर गाय का दूध उपलब्ध कराते हैं। जल्द ही आसपास के जिलों के 700 किसानों को भी जोड़ने की प्लानिंग है।

शिप्रा बताती हैं कि ‘इसमें करीब 10 लाख रुपए का इंवेस्टमेंट हुआ, जिसमें आठ लाख रुपए मुद्रा योजना के तहत लोन लिया। पिछले फाइनेंशियल ईयर में 24 लाख रुपए का टर्नओवर रहा, जिसे अगले साल में चार गुना करने का प्लान है।’

अपनी बेकरी में गांव की 15 महिलाओं को रोजगार देकर शिप्रा उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं, साथ ही 450 से अधिक छोटे किसानों से भी सीधे संपर्क में हैं, जो उन्हें हर महीने 30 हजार लीटर गाय का दूध उपलब्ध कराते हैं।

अपनी बेकरी में गांव की 15 महिलाओं को रोजगार देकर शिप्रा उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं, साथ ही 450 से अधिक छोटे किसानों से भी सीधे संपर्क में हैं, जो उन्हें हर महीने 30 हजार लीटर गाय का दूध उपलब्ध कराते हैं।

आध्यात्म की ओर रुझान हुआ तो अहसास हुआ कि फैशन इंडस्ट्री में बहुत गंदगी है

अपने शुरुआती दिनों के बारे में शिप्रा बताती हैं, ‘मेरे पिताजी बीएसएफ में थे, उस समय हम नोएडा में रहते थे। मैंने 12वीं तक की पढ़ाई के बाद डिस्टेंस से पढ़ाई की। मैंने हमेशा किताबों में पढ़ा और सक्सेसफुल लोगों से सुना था कि पैशन को ही प्रोफेशन बनाना बेहतर रहता है। तो मैंने 12वीं के बाद पत्राचार से फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। कोर्स के बाद मेरे पास जॉब ऑफर भी था, लेकिन मुझे अपना काम करना था तो गैराज में ही अपना एक छोटा सा स्टोर बनाकर शुरुआत की।

शिप्रा ने 1992 में फैशन डिजाइनिंग की फील्ड में काम शुरू किया। कुछ ही सालों में वे कामयाब फैशन डिजाइनर बन गईं। कम समय में ही शिप्रा को पैसा और शोहरत दोनों मिल गए। डिजाइनिंग के बाद शिप्रा ने कई सालों तक डाई के सेक्टर में भी काम किया। इसके लिए वह अलग-अलग शहरों में रहीं और वहां काम सीखा भी और सिखाया भी।

इस बीच शिप्रा का रुझान आध्यात्म की ओर भी हुआ और उन्हें अहसास होने लगा कि फैशन इंडस्ट्री दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित इंडस्ट्री में से एक है। साथ ही यहां बड़े पैमाने पर कारीगरों का शोषण होता है, उन्हें उनके काम का सही दाम तक नहीं मिलता है। फिर एक वक्त आया जब शिप्रा को लगा कि अब उन्हें कुछ और करने की जरूरत है। 19 साल बाद 2011 में वे नाेएडा का अपना जमा जमाया बिजनेस छोड़कर बनारस आ गईं। शिप्रा बताती हैं, ‘जब मैं गांव आई तो सब मुझे पागल ही समझते थे।’

साल 2019 में शिप्रा ने प्रभूति एंटरप्राइजेज की शुरुआत की। ‘इसमें करीब 10 लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट हुआ, जिसमें आठ लाख रुपए मुद्रा योजना के तहत लोन लिया। पिछले फाइनेंशियल ईयर में 24 लाख रुपए का टर्नओवर रहा।

साल 2019 में शिप्रा ने प्रभूति एंटरप्राइजेज की शुरुआत की। ‘इसमें करीब 10 लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट हुआ, जिसमें आठ लाख रुपए मुद्रा योजना के तहत लोन लिया। पिछले फाइनेंशियल ईयर में 24 लाख रुपए का टर्नओवर रहा।

बनारस आकर तय किया कि ऐसा बिजनेस करूंगी जिससे लोगों को खुशी मिले

शिप्रा बताती हैं कि ‘जब मैं बनारस आई तो सोचा कि यहां कोई ऐसा काम करूंगी जिसमें पर्यावरण का नुकसान न हो और न ही किसी का शोषण हो। मैं नहीं चाहती थी कि बिजनेस से आने वाले पैसे लाेगों के मानसिक और पर्यावरणीय प्रदूषण से नहीं, बल्कि उनकी खुशियों से आएं।

2013 में यहां महिलाओं के हुनर को देखा कि वे कैसे जपमाला और कई तरह-तरह की माला तैयार करती हैं। शिप्रा ने सोचा कि जिस माला से लोग भगवान का ध्यान करते हैं वो माला सड़क किनारे मिलती है। इसके बाद उन्होंने ‘माला इंडिया’ के नाम से एक बिजनेस शुरू किया। इस बिजनेस में शिप्रा ने करीब 100 महिलाओं को जोड़ा। इन प्रोडक्ट्स को भारत समेत विदेशों तक भी पहुंचाया। लेकिन कस्टम के नियमों में बदलाव के बाद एक्सपोर्ट का खर्च बढ़ गया तो शिप्रा ने महसूस किया कि इस बिजनेस में ज्यादा फायदा नहीं हो सकेगा।

गाय के देसी घी की इतनी डिमांड आई कि सप्लाई कम पड़ने लगी

शिप्रा ने तय किया कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे गांव में रहने वाले हर एक परिवार को जोड़ा जा सके और वे लोग बिना लागत के ही काम शुरू कर सकें। इसी सोच के साथ 2019 में शिप्रा ने प्रभूति एंटरप्राइजेज की शुरुआत की। शिप्रा कहती हैं कि ‘ मैंने सोचा कि ऐसी क्या चीज़ है जो हर ग्रामीण घर में होती है? पता चला कि ज्यादातर किसान परिवार गाय-भैंस तो रखते ही हैं। तो मैंने घर पर बने शुद्ध घी को मार्केट तक पहुंचाने का निर्णय लिया।

इसके लिए शिप्रा ने 55 हजार की लागत से दूध से क्रीम निकालने वाली एक मशीन खरीदी, जहां किसान दूध से क्रीम निकाल लेते और फिर इस क्रीम से पारम्परिक तरीके से शुद्ध देसी घी तैयार करना शुरु किया। इसमें बीएचयू के केमिकल इंजीनियर डिपार्टमेंट ने भी सपोर्ट किया। शुरुआत में जान-पहचान के लोगों से इस घी का फीडबैक लिया फिर इसे काशी घृत नाम देकर बाजार में उतारा। बाजार में ऑर्गेनिक शॉप्स पर इस घी को अच्छा रिस्पांस मिला।

शिप्रा हर महीने करीब 100 किलो देसी घी तैयार करती हैं लेकिन इसकी डिमांड बहुत ज्यादा है। अब वे आस-पास के जिलों के किसानों को भी जोड़ रही हैं ताकि उन्हें ज्यादा मात्रा में गाय का दूध मिल सके, जिससे वे घी तैयार कर मार्केट में सप्लाई कर सकें। 30 लीटर दूध की क्रीम से एक किलो घी तैयार होता है। फिलहाल शिप्रा, तीन तरह के घी (सामान्य देसी घी, ब्राह्मी घी, शतावरी घी) बना रही हैं। इस घी की कीमत 1450 रुपए से लेकर 2460 रुपए प्रति किलो तक है।

घी के अलावा वो नारियल, ओट्स, रागी, हल्दी आदि के कुकीज भी बना रही हैं। इन कुकीज में किसी भी तरह के एडिटिव, प्रिजर्वेटिव और ग्लूटन का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

घी के अलावा वो नारियल, ओट्स, रागी, हल्दी आदि के कुकीज भी बना रही हैं। इन कुकीज में किसी भी तरह के एडिटिव, प्रिजर्वेटिव और ग्लूटन का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

किसानों को उनकी उपज से ही काम देकर तैयार कराती हैं मल्टीग्रेन कुकीज

बनारस से सटे गांवों के किसान रागी, ज्वार भी उगाते हैं। शिप्रा ने सोचा कि क्यों न इन किसानों को उनकी अपनी उपज से ही कुछ काम दिया जाए। इस तरह घी के बाद इन अनाजों के कुकीज बनाने का आइडिया आया। घी के अलावा वे नारियल, ओट्स, रागी, हल्दी आदि के कुकीज भी बना रही हैं। इन कुकीज में किसी भी तरह के एडिटिव, प्रिजर्वेटिव और ग्लूटन का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

इनमें छह तरह के कुकीज वीगन डाइट वालों के लिए भी बनाए गए हैं। हर महीने करीब 50 किलाे कुकीज तैयार की जाती है, इन कुकीज की कीमत 1300 रुपए से लेकर 1500 रुपए प्रति किलो तक है। घी और कुकीज की पैकिंग के लिए कांच के एयरटाइट जार का इस्तेमाल किया जाता है।

मार्केट डिमांड देखकर ही बिजनेस प्लान पर काम करें

शिप्रा कहती हैं कि कोई भी बिजनेस शुरू करने से पहले यही देखा जाए कि मार्केट में किस चीज की डिमांड है, उसी हिसाब से अपने बिजनेस प्लान पर काम करें। शिप्रा की योजना है कि उनके प्रोडक्ट्स पूरे देश में पहुंचें और वे ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे सकें।

शिप्रा कहती हैं, जरूरी नहीं है कि आपके पास पैसे हों तभी आप बिजनेस शुरू कर सकते हैं। सरकार की तमाम योजनाएं हैं, बस इसे सही तरीके से समझकर इसके लिए आवेदन करने की जरूरत है। शिप्रा कहती हैं कि ‘अगर कोई भी व्यक्ति अपने बिजनेस की शुरुआत करना चाहता है तो हम उसकी हर तरह से नि:शुल्क मदद करते हैं।’

ये पॉजिटिव खबरें भी आप पढ़ सकते हैं…

1. मेरठ की गीता ने दिल्ली में 50 हजार रु से शुरू किया बिजनेस, 6 साल में 7 करोड़ रु टर्नओवर, पिछले महीने यूरोप में भी एक ऑफिस खोला

2. पुणे की मेघा सलाद बेचकर हर महीने कमाने लगीं एक लाख रुपए, 3 हजार रुपए से काम शुरू किया था

3. इंजीनियरिंग के बाद सरपंच बनी इस बेटी ने बदल दी गांव की तस्वीर, गलियों में सीसीटीवी और सोलर लाइट्स लगवाए, यहां के बच्चे अब संस्कृत बोलते हैं

4. कश्मीर में बैट बनाने वाला बिहार का मजदूर लॉकडाउन में फंसा तो घर पर ही बैट बनाने लगा, अब खुद का कारखाना शुरू करने की तैयारी

0

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

Bihar Assembly Election 2020 Election Commission To Announce Dates Know The Current Party Seats Status  - आज बिहार चुनाव की तारीखों का होगा एलान, जानें विधानसभा में क्या है वर्तमान दलीय स्थिति

Fri Sep 25 , 2020
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पटना Updated Fri, 25 Sep 2020 09:23 AM IST बिहार विधानसभा (फाइल फोटो) – फोटो : vidhansabha.bih.nic.in पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर कहीं भी, कभी भी। *Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP! ख़बर सुनें ख़बर सुनें चुनाव आयोग शुक्रवार […]

You May Like