Bihar Assembly Election 2020 News In Hindi: Third Fronts Fragrance, Cpi Male Can Lead – Bihar Election 2020: तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट, नेतृत्व कर सकती है भाकपा माले

कुमार निशांत, अमर उजाला, पटना।

Updated Tue, 29 Sep 2020 03:10 AM IST

बिहार विधानसभा चुनाव
– फोटो : AMAR UJALA

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बिहार में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट भी है। इस मोर्चे का नेतृत्व भाकपा माले कर सकती है। तीसरे मोर्चे की कोई भी कवायद बिहार में तभी सफल हो सकती है जब मोर्चे में कम से कम दो मजबूत दल हों। महागठबंधन में शामिल छोटे दलों में पहले से ही असंतोष है। 

पहले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने महागठबंधन के खिलाफ मोर्चा खोला। अब रालोसपा और भाकपा माले भी मोर्चे पर हैं। भाकपा माले की महागठबंधन में बात बनती नहीं दिख रही है। सीट के बंटवारे के मुद्दे पर भाकपा माले अब राजद नेता तेजस्वी से बात करने के पक्ष में नहीं है। भाकपा और माकपा अभी महागठबंधन में ही संभावनाएं तलाश रहे हैं लेकिन भाकपा माले अलग रास्ते पर जाने की तैयारियों में जुट गया है।

पिछले चुनाव में तीन सीट पर माले की जीत

पिछले चुनाव में भाकपा माले ने बलरामपुर, तरारी और दरौली सीट पर जीत दर्ज की थी। बलरामपुर में महबूब आलम को 23 हजार और दरौली में सत्यदेव राम को 13800 वोटों से जीत मिली थी। तरारी में सुदामा प्रसाद ने 272 वोट से जीत दर्ज की थी। 2010 में भाकपा माले के प्रत्याशी 5 विधानसभा दरौली, रघुनाथपुर, जीरादेई, बलरामपुर व अरवल में दूसरे स्थान पर रहे थे।

तीसरा मोर्चा बना तो महागठबंधन को ही नुकसान

भाकपा माले नेतृत्व का मानना है कि बदली राजनीतिक परिस्थितियों में उसका आधार वोटबैंक बढ़ा है। पार्टी चाहती है कि पप्पू यादव की जाप, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, यशवंत सिन्हा के नेतृत्व वाला राष्ट्र मंच और शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल के साथ गठबंधन हो और बिहार के और भी छोटे दलों को इस मोर्चे में शामिल किया जाए। सूत्र बता रहे हैं कि लोजपा के रुख का भी इंतजार किया जा रहा है।

भाकपा माले की इस पहल पर बाकी वामपंथी दलों की निगाह भी है। बिहार में अगर तीसरे मोर्चे की कवायद सफल हुई तो संभव है आम आदमी पार्टी भी उसमें शामिल हो। तीसरा मोर्चा बनने से महागठबंधन को नुकसान हो सकता है। कांग्रेस इस कोशिश में है कि कोई तीसरा मोर्चा ना बने लेकिन राजद के रुख से कांग्रेस नेता सशंकित हैं।

तीसरे मोर्चे की पक्षधर अकेली माले

फिलहाल तीन विधायकों वाली भाकपा माले को छोड़कर और कोई मजबूत दल मोर्चे की पहल करता नहीं दिख रहा है। ऐसे में बहुत कुछ लोजपा के फैसले पर निर्भर होगा। पप्पू यादव ने बाढ़ में लोगों के बीच जाकर अपनी लोकप्रियता में थोड़ा इजाफा तो जरूर किया है लेकिन वो लोकप्रियता वोट में तब्दील होगी या नहीं इसका अंदाजा लगाना अभी बेहद मुश्किल है।

बिहार में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट भी है। इस मोर्चे का नेतृत्व भाकपा माले कर सकती है। तीसरे मोर्चे की कोई भी कवायद बिहार में तभी सफल हो सकती है जब मोर्चे में कम से कम दो मजबूत दल हों। महागठबंधन में शामिल छोटे दलों में पहले से ही असंतोष है। 

पहले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने महागठबंधन के खिलाफ मोर्चा खोला। अब रालोसपा और भाकपा माले भी मोर्चे पर हैं। भाकपा माले की महागठबंधन में बात बनती नहीं दिख रही है। सीट के बंटवारे के मुद्दे पर भाकपा माले अब राजद नेता तेजस्वी से बात करने के पक्ष में नहीं है। भाकपा और माकपा अभी महागठबंधन में ही संभावनाएं तलाश रहे हैं लेकिन भाकपा माले अलग रास्ते पर जाने की तैयारियों में जुट गया है।

पिछले चुनाव में तीन सीट पर माले की जीत

पिछले चुनाव में भाकपा माले ने बलरामपुर, तरारी और दरौली सीट पर जीत दर्ज की थी। बलरामपुर में महबूब आलम को 23 हजार और दरौली में सत्यदेव राम को 13800 वोटों से जीत मिली थी। तरारी में सुदामा प्रसाद ने 272 वोट से जीत दर्ज की थी। 2010 में भाकपा माले के प्रत्याशी 5 विधानसभा दरौली, रघुनाथपुर, जीरादेई, बलरामपुर व अरवल में दूसरे स्थान पर रहे थे।

तीसरा मोर्चा बना तो महागठबंधन को ही नुकसान

भाकपा माले नेतृत्व का मानना है कि बदली राजनीतिक परिस्थितियों में उसका आधार वोटबैंक बढ़ा है। पार्टी चाहती है कि पप्पू यादव की जाप, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, यशवंत सिन्हा के नेतृत्व वाला राष्ट्र मंच और शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल के साथ गठबंधन हो और बिहार के और भी छोटे दलों को इस मोर्चे में शामिल किया जाए। सूत्र बता रहे हैं कि लोजपा के रुख का भी इंतजार किया जा रहा है।

भाकपा माले की इस पहल पर बाकी वामपंथी दलों की निगाह भी है। बिहार में अगर तीसरे मोर्चे की कवायद सफल हुई तो संभव है आम आदमी पार्टी भी उसमें शामिल हो। तीसरा मोर्चा बनने से महागठबंधन को नुकसान हो सकता है। कांग्रेस इस कोशिश में है कि कोई तीसरा मोर्चा ना बने लेकिन राजद के रुख से कांग्रेस नेता सशंकित हैं।

तीसरे मोर्चे की पक्षधर अकेली माले

फिलहाल तीन विधायकों वाली भाकपा माले को छोड़कर और कोई मजबूत दल मोर्चे की पहल करता नहीं दिख रहा है। ऐसे में बहुत कुछ लोजपा के फैसले पर निर्भर होगा। पप्पू यादव ने बाढ़ में लोगों के बीच जाकर अपनी लोकप्रियता में थोड़ा इजाफा तो जरूर किया है लेकिन वो लोकप्रियता वोट में तब्दील होगी या नहीं इसका अंदाजा लगाना अभी बेहद मुश्किल है।

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