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सार
- सीट बंटवारे ने उलझा दिए सारे समीकरण
- स्थानीय बनाम बाहरी के जंग में उलझा महागठबंधन
- संघ से जुड़े भाजपा के तीन कद्दावर नेता लोजपा के टिकट पर लड़ रहे चुनाव
- सभी सीटों पर कहीं त्रिकोणीय तो कहीं चतुष्कोणीय मुकाबला
विस्तार
बीते विधानसभा चुनाव में जदयू-राजद से गठबंधन का सबसे अधिक लाभ कांग्रेस को मिला था। मजबूत संगठन और मजबूत चेहरे के अभाव के बावजूद पार्टी जदयू-राजद समर्थक मतदाताओं के समर्थन की बदौलत तीन सीटें जीतने में कामयाब रही थी।
इसी प्रदर्शन के बूते पार्टी इस बार चार सीटें हासिल करने में कामयाब रही, मगर इस बार कदवा और प्राणपुर सीट पर बाहरी उम्मीदवार के सवाल पर पार्टी को परेशानी झेलनी पड़ रही है। जिले की तीन सीटों पर जीत के कारण कांग्रेस विधायकों को एंटीइन्कबेंसी का भी मुकाबला करना पड़ रहा है।
इसलिए उलझे समीकरण
बीते तीन दशक से इस जिले की छह सीटों पर मुख्य प्रभाव राजद और भाजपा का रहा है। एक मात्र बलरामपुर की सीट पर भाकपा माले और भाजपा के बीच सीधी भिड़ंत होती रही है। हालांकि इस बार राजग में तीन-तीन सीटें जदयू-भाजपा और एक सीट वीआईपी के हिस्से में गई है।
इसी प्रकार विपक्षी महागठबंधन में चार सीटें कांग्रेस, दो राजद और एक सीपीआई माले के हिस्से गई है। बंटवारे के कारण जहां राजद के कार्यकर्ताओं का कांग्रेस से तालमेल नहीं बन पा रहा, वहीं मनिहारी, कदवा और बरारी सीट पर भाजपा के कद्दावर नेताओं ने लोजपा के टिकट पर चुनौती पेश कर दी है।
बेहद मुश्किल में जदयू
चुनाव में जिले की अपने हिस्से की तीनों सीटों पर जदयू मुश्किल में है। भाजपा कार्यकर्ता सीधे और परोक्ष तौर पर लोजपा उम्मीदवारों का प्रचार कर रहे हैं।
भाजपा ने कदवा, बरारी और मनिहारी सीट पर लोजपा से चुनाव लड़ रहे चंद्रभूषण ठाकुर, विभाष चौधरी और अनिल कुमार को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। इसके बावजूद भाजपा कार्यकर्ता इन तीनों सीटों पर लोजपा उम्मीदवारों के साथ डटे हैं।
मुस्लिम मतों में बंटवारा तय
जिले के बलरामपुर, कदवा, कटिहार विधानसभा में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते आए हैं। बलरामपुर विधानसभा में तो मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 66 फीसदी है।
मुस्लिम मतदाता राजग को सत्ता में आने से रोकने के लिए तत्पर हैं, मगर विपक्षी महागठबंधन के पक्ष में एकजुटता की संभावना भी नहीं दिखती। बलरामपुर सीट पर कहीं सीपीआई माले का प्रभाव ज्यादा है तो कहीं एसडीपीआई के मौलाना मुनौवर आलम का।
कुछ इलाकों में एआईएमआईएम उम्मीदवार और अन्य मुस्लिम उम्मीदवारों का प्रभाव है। इसी प्रकार कदवा में मुस्लिम मतदाता वर्तमान कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान और एनसीपी के उम्मीदवार निजाम राही के बीच बंटे हैं।
बीते चुनाव में महागठबंधन का था पलड़ा भारी
बीते चुनाव में जिले में महागठबंधन का पलड़ा भारी था। तब कांग्रेस को तीन,सीपीआई माले, राजद को एक-एक और भाजपा के हिस्से दो सीट आई थी। जाहिर तौर पर महागठबंधन के सामने अपना पुराना प्रदर्शन दुहराने की चुनौती है, जबकि राजग के सामने पुराना दमखम दिखाने की चुनौती है।
बीते चुनाव का इतिहास
सीट | विजेता | पार्टी |
कटिहार | तारकिशोर प्रसाद | भाजपा |
कदवा | शकील अहमद खान | कांग्रेस |
बलरामपुर | महबूब आलम | भाकपा माले |
मनिहारी | मनोहर प्रसाद | कांग्रेस |
कोढ़ा | सुनीता देवी | कांग्रेस |
प्राणपुर | विनोद सिंह | भाजपा |
बरारी | नीरज यादव | राजद |
मैं कार्यकर्ताओं की लड़ाई लड़ रहा हूं। इस सीट पर दशकों से भाजपा संघर्ष करतीरही। जिस जदयू का वजूद ही नहीं उसे तोहफे में सीट दे दी गई। चुनाव जीत कर भाजपा की सरकार बनाऊंगा। लोजपा के टिकट पर कदवा सीट से भाजपा के बागी प्रत्याशी- चंद्रभूषण ठाकुर
लगातार तीन बार से तारकिशोर प्रसाद भाजपा के विधायक चुनाव जीत रहे हैं।स्थानीय स्तर पर विकास शून्य है। लोग बेहद नाराज हैं। राज्य के साथ इस सीट को नए नेतृत्व की जरूरत है। – प्रो रामप्रकाश महतो, राजद उम्मीदवार कटिहार
सडक़, पुल-पुलिया, बिजली सहित हर क्षेत्र में काम किया। जनता इस बार भी किसीबहकावे में नहीं आएगी। कटिहार की जनता जंगलराज की वापसी नहीं चाहती। -तारकिशोर प्रसाद, विधायक और भाजपा उम्मीदवार, कटिहार
जिले के मुद्दे
पलायन, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और पिछड़ापन