Bihar Election News In Hindi : Left Politics Depends On Lalu Prasad Yadav, Left Wing In Dilemma – Bihar Election 2020 : लालू के आसरे वाम सियासत, असमंजस में वामपंथी

लालू प्रसाद यादव (फाइल फोटो)
– फोटो : Facebook

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बिहार विधानसभा में 1972 से 1977 तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मुख्य विपक्षी दल रही। इससे पहले भी सदन में पार्टी के सदस्य हमेशा दहाई अंकों में रहे  लेकिन 1977 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रवधान लागू किया, राज्य में वाम राजनीति की ज़मीन सिकुड़ गई। जाति की पहचान राजनीति का केंद्र बनी। जातीय राजनीति सत्ता का समीकरण। बाद में मंडल आंदोलन ने वाम दलों की रही-सही जमीन भी हथिया ली।

जातीय राजनीति में वाम का जनाधार सिमटा

1990 के बाद मंडल आंदोलन की उपज लालू प्रसाद ने जातीय अस्मिता की बहस तेज की और वाम दल अपना आधार खोते गए। 1990 के विधानसभा चुनाव में इंडियन पीपुल्स फ्रंट ने सात सीटों पर जीत दर्ज की थी। इनमें भोजपुर के चर्चित नक्सली नेता जगदीश मास्टर के दामाद भगवान सिंह कुशवाहा भी शामिल थे।

1993 में इसी भगवान सिंह कुशवाहा के नेतृत्व में नक्सली आंदोलन चला रहे आईपीएफ के तीन विधायकों ने लालू प्रसाद से हाथ मिला लिया। धीरे-धीरे राज्य में वर्गीय पहचान की जगह जातीय पहचान का महत्व बढता गया। अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए वाम दलों ने भी वर्गीय पहचान वाली सोच को किनारे कर उसी लालू प्रसाद से हाथ मिला लिया जिस लालू ने बिहार की राजनीति में वाम विचारधारा को हाशिए पर धकेला।

कन्हैया कुमार भी किनारे

जेएनयू दिल्ली छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार वाम दलों के लिए एक उम्मीद बनकर उभरे भी तो भाकपा की आंतरिक राजनीति ने उनको मौका नहीं दिया। कन्हैया विपक्ष की आवाज बनकर सामने आए। सांप्रदायिक और जातिवादी राजनीति से अलग जमीनी मुद्दों पर चर्चा शुरू की लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कन्हैया जिनको उम्मीदवार बनाना चाहते थे पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया। इतना ही नहीं वामपंथी पार्टी भाकपा माले कन्हैया कुमार की राजनीति से असहज महसूस करती है।

मन ही मन खटास भी

वाम दलों का बुनियादी जनाधार अब कुछ जगहों पर ही बचा है, और वो भी बहुत कम। राजद से गठबंधन कर वाम दल जैसे-तैसे वजूद बचाने की जुगत में हैं। राजद ने इस बार भाकपा माले को 19, भाकपा को 6 और माकपा को 4 सीटें दी हैं। वाम दलों और राजद के इस गठबंधन पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। सबसे गंभीर सवाल वामपंथी नेता चंद्रशेखर की हत्या को लेकर उठते हैं।

31 मार्च 1997 को सीवान के जेपी चौक पर चंद्रशेखर समेत भाकपा माले के एक नेता की गोली मारकर हत्या की गई थी। इस हत्याकांड में लालू प्रसाद यादव के करीबी बाहुबली नेता शहाबुद्दीन का नाम आया। वाम दलों के भीतर से ही ये सवाल उभरता है कि जिस पार्टी पर चंद्रशेखर की हत्या करवाने, हत्या आरोपियों को बचाने के आरोप हैं, उसी पार्टी से चुनावी समझौता कैसे किया जा सकता है।

भाकपा माले ने अपनो कोटे के सभी 19 उम्मीदवारों के नाम का एलान कर दिया है। भाकपा माले पहले चरण की आठ सीटों पर मैदान में है। भाकपा ने भी अपने सभी 6 और माकपा ने अपने सभी 4 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है।

विश्व मोहन मंडल और लोजपा सांसद महबूब अली के बेटे राजद में

जदयू के पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता विश्व मोहन मंडल और खगड़िया से लोजपा सांसद महबूब अली कैसर के पुत्र यूसुफ कैसर ने सोमवार को राजद की सदस्यता ग्रहण की। दोनों नेताओं को राजद नेता तेजस्वी यादव की मौजूदगी में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने पार्टी की शपथ दिलाई है। इस दौरान यूसुफ कैसर ने कहा कि वे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए काम करेंगे। इस दौरान राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता सांसद मनोज झा भी उपस्थित रहे।

राबड़ी के आवास पर प्रदर्शन

दिवंगत रघुवंश सिंह के इलाके से अच्छी संख्या में लोग 10 सर्कुलर मार्ग पहुंचे। इस दौरान इन लोगों ने रामा सिंह के राजद में कथित तौर पर प्रवेश देने की तैयारी के विरोध में प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के सामने भी रामा सिंह के विरोध में नारेबाजी की। दिवंगत रघुवंश प्रसाद सिंह अमर रहे के नारे भी लगाए।

राजद एससी-एसटी प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश सचिव शक्ति मलिक हत्याकांड से बिहार की राजनीति गरमा गई है। शक्ति मलिक की पत्नी ने इस मामले में लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटों तेजप्रताप और तेजस्वी यादव के खिलाफ नामजद प्राथमिकी दर्ज करवाई है। इस घटना ने चुनाव के समय विरोधियों को बैठे-बिठाए बड़ा मुद्दा दे दिया है।

जदयू ने बिना देर लगाए इस मुद्दे का सियासी इस्तेमाल शुरू कर दिया है। पार्टी के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी समेत प्रवक्ताओं ने इस मसले में तेजस्वी और तेजप्रताप को घेरना शुरू कर दिया है। मामले को दलित समाज पर हो रहे अत्याचार से जोड़ने की कवायद तेज हो गई है।

उधर भाजपा ने इस मुद्दे पर राजद पर दलितों की आवाज बंद करने का आरोप लगाया है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने पूछा कि क्या राजद का यही सामाजिक न्याय है। एक युवा दलित नेता शक्ति मलिक की राजद छोड़ने के बाद हत्या कर दी गई। पात्रा ने कहा कि मलिक की पत्नी ने राजद नेता पर आरोप लगाया है कि उसके पति से चुनाव में टिकट के नाम पर पैसे मांगे गए।

बिहार विधानसभा में 1972 से 1977 तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मुख्य विपक्षी दल रही। इससे पहले भी सदन में पार्टी के सदस्य हमेशा दहाई अंकों में रहे  लेकिन 1977 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रवधान लागू किया, राज्य में वाम राजनीति की ज़मीन सिकुड़ गई। जाति की पहचान राजनीति का केंद्र बनी। जातीय राजनीति सत्ता का समीकरण। बाद में मंडल आंदोलन ने वाम दलों की रही-सही जमीन भी हथिया ली।

जातीय राजनीति में वाम का जनाधार सिमटा

1990 के बाद मंडल आंदोलन की उपज लालू प्रसाद ने जातीय अस्मिता की बहस तेज की और वाम दल अपना आधार खोते गए। 1990 के विधानसभा चुनाव में इंडियन पीपुल्स फ्रंट ने सात सीटों पर जीत दर्ज की थी। इनमें भोजपुर के चर्चित नक्सली नेता जगदीश मास्टर के दामाद भगवान सिंह कुशवाहा भी शामिल थे।

1993 में इसी भगवान सिंह कुशवाहा के नेतृत्व में नक्सली आंदोलन चला रहे आईपीएफ के तीन विधायकों ने लालू प्रसाद से हाथ मिला लिया। धीरे-धीरे राज्य में वर्गीय पहचान की जगह जातीय पहचान का महत्व बढता गया। अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए वाम दलों ने भी वर्गीय पहचान वाली सोच को किनारे कर उसी लालू प्रसाद से हाथ मिला लिया जिस लालू ने बिहार की राजनीति में वाम विचारधारा को हाशिए पर धकेला।

कन्हैया कुमार भी किनारे

जेएनयू दिल्ली छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार वाम दलों के लिए एक उम्मीद बनकर उभरे भी तो भाकपा की आंतरिक राजनीति ने उनको मौका नहीं दिया। कन्हैया विपक्ष की आवाज बनकर सामने आए। सांप्रदायिक और जातिवादी राजनीति से अलग जमीनी मुद्दों पर चर्चा शुरू की लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कन्हैया जिनको उम्मीदवार बनाना चाहते थे पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया। इतना ही नहीं वामपंथी पार्टी भाकपा माले कन्हैया कुमार की राजनीति से असहज महसूस करती है।

मन ही मन खटास भी

वाम दलों का बुनियादी जनाधार अब कुछ जगहों पर ही बचा है, और वो भी बहुत कम। राजद से गठबंधन कर वाम दल जैसे-तैसे वजूद बचाने की जुगत में हैं। राजद ने इस बार भाकपा माले को 19, भाकपा को 6 और माकपा को 4 सीटें दी हैं। वाम दलों और राजद के इस गठबंधन पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। सबसे गंभीर सवाल वामपंथी नेता चंद्रशेखर की हत्या को लेकर उठते हैं।

31 मार्च 1997 को सीवान के जेपी चौक पर चंद्रशेखर समेत भाकपा माले के एक नेता की गोली मारकर हत्या की गई थी। इस हत्याकांड में लालू प्रसाद यादव के करीबी बाहुबली नेता शहाबुद्दीन का नाम आया। वाम दलों के भीतर से ही ये सवाल उभरता है कि जिस पार्टी पर चंद्रशेखर की हत्या करवाने, हत्या आरोपियों को बचाने के आरोप हैं, उसी पार्टी से चुनावी समझौता कैसे किया जा सकता है।


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वाम दलों के सभी 29 उम्मीदवार घोषित

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