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विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों ने ‘नया बिहार’ बनाने का वादा किया था और अपराधियों को टिकट नहीं देने का संकल्प लिया था। अब नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के बाद अपराधियों को तो नहीं, लेकिन उनके रिश्तेदारों को जमकर टिकट बांट रहे हैं।
ये दल अपराधियों को इसलिए भी टिकट देने से परहेज कर रहे हैं, क्योंकि चुनाव आयोग के निर्देश के तहत दागी उम्मीवारों को समाचार माध्यमों में तीन-तीन बार अपने आपराधिक मुकदमे की जानकारी देनी होगी।
विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 71 सीटों के लिए राजद ने अपने उम्मीदवार तय कर दिए हैं। पार्टी ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव की पत्नी को नवादा से टिकट दिया है। राजबल्लभ फिलहाल जेल में बंद है।
वहीं पार्टी ने एक और दुष्कर्म आरोपी अरुण यादव की पत्नी को संदेश विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया है। अरुण यादव फरार है। राजद की यह सूची यहीं खत्म नहीं होती। कई हत्याएं और अपहरण के आरोपी रमा सिंह की पत्नी को भी वैशाली से टिकट दिया है।
दिवंगत नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी रमा सिंह को पार्टी में शामिल करने का विरोध करते हुए राजद से त्यागपत्र दे दिया था। वहीं, राजद ने हत्या के आरोपी आनंद मोहन की पत्नी और बेटे को पार्टी में शामिल किया है और उन्हें टिकट भी दिया जाएगा। कई दलों ने अब तक पहले चरण के लिए अधिकांश उम्मीदवारों के नाम की घोषणा नहीं की है।
दागियों से दूरी, परिजनों से नहीं गुरेज
जदयू-भाजपा ने अब तक किसी दागी को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है। वाम दलों ने भी यही रुख अपनाया है। हालांकि दागियों से दूरी जरूर बनाकर चल रहे हैं, लेकिन उनके परिजनों से दलों को कोई गुरेज नहीं है। उधर, जदयू की तरफ से मुख्यमंत्री आवास में टिकट देने से पहले बाकायदा वकील आवेदन की पूरी जांच कर रहे हैं।
सन 1990 के दशक में बिहार की राजनीति में दागियों का जबर्दस्त प्रभाव रहा। बाद में राजनीतिक दलों ने दागियों से किनारा करने की कोशिशें तो कीं, लेकिन वो दिखावे भर की रहीं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की रोशनी में चुनाव आयोग की सख्ती के बाद इस बार सियासी दल दागियों से बचने की कोशिश करते दिख रहे हैं।
जिस अनंत को लालू ने जदयू से निकलवाया, तेजस्वी ने अपनाया
लगता है 2015 में बाढ़ के पुटूस यादव की हत्या का गुस्सा राजद भूल गया है और बाहुबली अनंत सिंह को अपना लिया है। पुटूस की हत्या का आरोप अनंत सिंह पर लगा था और तब वह जदयू में थे। इस घटना से लालू प्रसाद इतने नाराज हुए कि सरकार बचाने के लिए नीतीश कुमार ने अनंत सिंह को जदयू से बाहर कर दिया।
इस बार राजद ने उसी अनंत सिंह को मोकामा से अपना उम्मीदवार बनाया है। अनंत सिंह फिलहाल जेल में बंद हैं। तेजस्वी यादव ने भी 2018 में अनंत सिंह को बैड एलिमेंट कहा था। वहीं जदयू ने अमरपुर से दागी जनार्दन के बेटे जयंत राज को अपना उम्मीदवार बनाया है। जनार्दन पर कई आपराधिक मामले लंबित हैं।
टिकट बंटवारे में परिवारवाद से कोई भी दल बचता नहीं दिख रहा है। राजद और जदयू में टिकट बंटवारे में नेताओं के बेटों-बहुओं और पत्नियों का पूरा ख्याल रखा गया है। दोनों दलों ने अपने-अपने दलों के दागियों और पुराने नेताओं के परिजनों को उम्मीदवार बनाया है।
राजद ने जिन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिया है, उनमें प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को रामगढ़, शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी को शाहपुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांति सिंह के बेटे ऋषि सिंह को ओबरा से और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश यादव की बेटी दिव्या प्रकाश को तारापुर व भाई विजय प्रकाश को चकाई से उम्मीदवार बनाया गया है।
जाहिर ने बड़े नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देने के साथ-साथ जातीय समीकरण भी साधा है। मुस्लिम-यादव गठजोड़ के अलावा बिहार की राजनीति में अरसे से कद्दावर रहे अगड़ी जाति के अपनी ही पार्टी के कद्दावर नेताओं के रिश्तेदारों को मैदान में उतारा है। इससे अगड़े मतदाताओं में छाप छोड़ने की भी कोशिश की गई है।
इसी तरह जदयू और राजद के उम्मीदवारों में अति पिछड़ा वर्ग का दबदबा साफ दिख रहा है। दोनों दलों ने अल्पसंख्यक तबके को टिकट के मामले में भी अल्पसंख्यक ही बनाए रखा है। दलित उम्मीदवारों को सिर्फ आरक्षित सीट पर ही मौका दिया गया है।
भाजपा की सीटों पर जदयू ने उतारे उम्मीदवार
जदयू ने पहले चरण में ही भाजपा की चार सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। इसके साथ ही पार्टी ने भाजपा की दावे वाली सासाराम, दिनारा, झाझा और सूर्यगढ़ा सीटें अपने कोटे में रख ली हैं। सासाराम तो भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती है।
विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों ने ‘नया बिहार’ बनाने का वादा किया था और अपराधियों को टिकट नहीं देने का संकल्प लिया था। अब नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के बाद अपराधियों को तो नहीं, लेकिन उनके रिश्तेदारों को जमकर टिकट बांट रहे हैं।
ये दल अपराधियों को इसलिए भी टिकट देने से परहेज कर रहे हैं, क्योंकि चुनाव आयोग के निर्देश के तहत दागी उम्मीवारों को समाचार माध्यमों में तीन-तीन बार अपने आपराधिक मुकदमे की जानकारी देनी होगी।
विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 71 सीटों के लिए राजद ने अपने उम्मीदवार तय कर दिए हैं। पार्टी ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव की पत्नी को नवादा से टिकट दिया है। राजबल्लभ फिलहाल जेल में बंद है।
वहीं पार्टी ने एक और दुष्कर्म आरोपी अरुण यादव की पत्नी को संदेश विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया है। अरुण यादव फरार है। राजद की यह सूची यहीं खत्म नहीं होती। कई हत्याएं और अपहरण के आरोपी रमा सिंह की पत्नी को भी वैशाली से टिकट दिया है।
दिवंगत नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी रमा सिंह को पार्टी में शामिल करने का विरोध करते हुए राजद से त्यागपत्र दे दिया था। वहीं, राजद ने हत्या के आरोपी आनंद मोहन की पत्नी और बेटे को पार्टी में शामिल किया है और उन्हें टिकट भी दिया जाएगा। कई दलों ने अब तक पहले चरण के लिए अधिकांश उम्मीदवारों के नाम की घोषणा नहीं की है।
दागियों से दूरी, परिजनों से नहीं गुरेज
जदयू-भाजपा ने अब तक किसी दागी को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है। वाम दलों ने भी यही रुख अपनाया है। हालांकि दागियों से दूरी जरूर बनाकर चल रहे हैं, लेकिन उनके परिजनों से दलों को कोई गुरेज नहीं है। उधर, जदयू की तरफ से मुख्यमंत्री आवास में टिकट देने से पहले बाकायदा वकील आवेदन की पूरी जांच कर रहे हैं।
90 के दशक में रहा दागियों का दबदबा
सन 1990 के दशक में बिहार की राजनीति में दागियों का जबर्दस्त प्रभाव रहा। बाद में राजनीतिक दलों ने दागियों से किनारा करने की कोशिशें तो कीं, लेकिन वो दिखावे भर की रहीं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की रोशनी में चुनाव आयोग की सख्ती के बाद इस बार सियासी दल दागियों से बचने की कोशिश करते दिख रहे हैं।
जिस अनंत को लालू ने जदयू से निकलवाया, तेजस्वी ने अपनाया
लगता है 2015 में बाढ़ के पुटूस यादव की हत्या का गुस्सा राजद भूल गया है और बाहुबली अनंत सिंह को अपना लिया है। पुटूस की हत्या का आरोप अनंत सिंह पर लगा था और तब वह जदयू में थे। इस घटना से लालू प्रसाद इतने नाराज हुए कि सरकार बचाने के लिए नीतीश कुमार ने अनंत सिंह को जदयू से बाहर कर दिया।
इस बार राजद ने उसी अनंत सिंह को मोकामा से अपना उम्मीदवार बनाया है। अनंत सिंह फिलहाल जेल में बंद हैं। तेजस्वी यादव ने भी 2018 में अनंत सिंह को बैड एलिमेंट कहा था। वहीं जदयू ने अमरपुर से दागी जनार्दन के बेटे जयंत राज को अपना उम्मीदवार बनाया है। जनार्दन पर कई आपराधिक मामले लंबित हैं।
टिकट झटकने में फिर परिवारों का दबदबा
टिकट बंटवारे में परिवारवाद से कोई भी दल बचता नहीं दिख रहा है। राजद और जदयू में टिकट बंटवारे में नेताओं के बेटों-बहुओं और पत्नियों का पूरा ख्याल रखा गया है। दोनों दलों ने अपने-अपने दलों के दागियों और पुराने नेताओं के परिजनों को उम्मीदवार बनाया है।
राजद ने जिन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिया है, उनमें प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को रामगढ़, शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी को शाहपुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांति सिंह के बेटे ऋषि सिंह को ओबरा से और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश यादव की बेटी दिव्या प्रकाश को तारापुर व भाई विजय प्रकाश को चकाई से उम्मीदवार बनाया गया है।
जाहिर ने बड़े नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देने के साथ-साथ जातीय समीकरण भी साधा है। मुस्लिम-यादव गठजोड़ के अलावा बिहार की राजनीति में अरसे से कद्दावर रहे अगड़ी जाति के अपनी ही पार्टी के कद्दावर नेताओं के रिश्तेदारों को मैदान में उतारा है। इससे अगड़े मतदाताओं में छाप छोड़ने की भी कोशिश की गई है।
इसी तरह जदयू और राजद के उम्मीदवारों में अति पिछड़ा वर्ग का दबदबा साफ दिख रहा है। दोनों दलों ने अल्पसंख्यक तबके को टिकट के मामले में भी अल्पसंख्यक ही बनाए रखा है। दलित उम्मीदवारों को सिर्फ आरक्षित सीट पर ही मौका दिया गया है।
भाजपा की सीटों पर जदयू ने उतारे उम्मीदवार
जदयू ने पहले चरण में ही भाजपा की चार सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। इसके साथ ही पार्टी ने भाजपा की दावे वाली सासाराम, दिनारा, झाझा और सूर्यगढ़ा सीटें अपने कोटे में रख ली हैं। सासाराम तो भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती है।
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Wed Oct 7 , 2020
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