पटना3 घंटे पहलेलेखक: मनीष मिश्रा
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स्थान- रेडियो स्टेशन गोलंबर के पास एसपी वर्मा रोड पर स्थित सुजीत की लिट्टी दुकान
समय – दोपहर दो बजे
रेडियो स्टेशन गोलंबर के पास एसपी वर्मा रोड पर मुड़ते ही सुजीत के चूल्हे की राख और उससे छनकर उठती लिट्टी की खुशबू किसी के भी कदम रोक देती है। लिट्टी और चना का कॉम्बिनेशन आस-पास के निजी और सरकारी कार्यालय में काम करने वालों को खींच ही लाता है। लंच का समय हाथ में लिट्टी और चुनावी चर्चा में कटता है। बुधवार दोपहर भी माहौल कुछ ऐसा ही रहा।
निजी बैंक में काम करने वाले राहुल को देखते ही सुजीत लिट्टी की प्लेट में काला नमक छिड़कने लगा। यह उसकी लिट्टी की भी खासियत है, लेकिन राहुल की नजर पान की गुमटी पर लगे पोस्टर पर अटक गई है, जिसमें ‘विकास का पुलिंदा’ दिखाई दे रहा था। राहुल नजर मिलते ही बोल पड़ा, ई केकरा प्रचार करत रहिले तू सुजीत। उसने पोस्टर की तरफ देखकर जवाब दिया… चुनाव है भइया। नेताजी पुल और सड़क से प्रचार कर रहे हैं।
संदीप की बात सुन लिट्टी खा रहा युवक (गले में लटक रही बैंक की आईडी में नाम मुकेश) बोला- ‘सड़क और पुल से विकास का पैमाना जब तक नापा जाएगा, तब तक बिहार तरक्की नहीं करेगा। विकास तो तब होता है, जब जनता खुशहाल होती है। पटना में केवल पुल चमकता है, जो विकास का मानक बताया जाता है, जबकि पुल के नीचे सड़क पर गंदगी विकास की पोल खोलती है। अगर विकास होता तो सड़क पर बेरोजगार चप्पल नहीं घिस रहे होते।’
पास में ही खड़ा व्यक्ति (शायद उसका सहकर्मी) बोल पड़ा- ‘बैंक में जब नौकरी के लिए डीडी बनवाने वाले शिक्षित बेरोजगारों की लम्बी फौज देखता हूं, तरस आता है। सत्ता में आने वाले लोग कभी रोजगार के बारे में नहीं सोचते हैं। गरीब मजदूरी करने बाहर जाता है और शिक्षित पहले नौकरी के लिए दौड़ता है बाद में किसी तरह निजी कंपनियों के सहारे जीवन-यापन करता है। सरकार के पास कोई ऐसा रास्ता नहीं होता है, जिससे युवाओं को नई दिशा दिखाई जा सके।’

ये सुजीत की दुकान है। यहां लोग लिट्टी खाते-खाते चुनावी बतकही करते रहते हैं।
लिट्टी खाने के बाद सुजीत की तरफ प्लेट बढ़ाकर रसगुल्ला मांग रहा युवक बोला, ‘अरे विकास की का बात कर रहे हैं। आसपास त कौनो सुलभ शौचालय ही नहीं है। ई काम से विकास देखा। ई राजधानी है और राजधानी प्रदेश का आईना होत है, अब ईहां बाहर से आवे वाला आदमी गंदगी कहां फैलाएगा, आप ही बतावें। जरा उनकी समस्या के बारे में भी सोचें, जो महिलाएं इहां आसपास काम के खातिर आती हैं और फिर केतना मुश्किल का सामना करेलिन।’
इस बात के समर्थन में एक अधेड़ बोल पड़ा, शायद वह भी इसी पीड़ा से जूझ चुका है। बोला, ‘पटना में मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। सुलभ शौचालय की बात तो छोड़ दीजिए, कहीं ऐसी जगह नहीं है जहां से बैठकर इंसान साधन का इंतजार कर सके। बस स्टाप या ऑटो स्टॉप तो ऐसा बनाया गया है जहां बैठा ही नहीं जा सकता है। गंदगी के कारण वहां खड़ा रहना भी मुश्किल होता है।’
लिट्टी खाकर हाथ धुलने के बाद जेब से रुमाल निकालते हुए किसी निजी कंपनी में काम करने वाला युवक शंकर झा बोल पड़ा, ‘आप लोग ई सब का बहस करते हैं। अगर ई सब से छुटकारा पाना है तो कुछ मत करिए। बस ऐसा प्रत्याशी चुनिए जो इतिहास बदल दे। नेताओं के सोचने का तरीका बदलने को मजबूर कर दे। और कोई रास्ता नहीं है, जब तक हम सरकार सही नहीं चुनेंगे, तब तक ऐसे रोते रहेंगे। नेता अगर सड़क और पुल दिखाकर विकास दिखाती है तो उसे जवाब देना होगा। हमारी आंखों से भी नेता का दिखाने वाला काम ही दिखता है। आंखों को फर्जी विकास दिखाने वाला चश्मा निकालकर बस ऐसा प्रत्याशी चुनना है, जो इतिहास बदलने वाला हो।’