न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Sun, 25 Oct 2020 07:13 AM IST
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सीमांचल के मुस्लिम बाहुल्य जिलों में बढ़ता जा रहा है ओवैसी की पार्टी का समर्थन
लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) इस बार तीसरे गठबंधन ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट में शामिल है। इसके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा हैं, लेकिन लोगों की निगाहें उनसे कहीं ज्यादा एआईएमआईएम पर टिकी है। यह पार्टी 243 में से केवल 24 सीटें लड़ रही है, लेकिन सीमांचल इलाके के चार जिलों में पार्टी हर चुनाव में अधिक ताकतवर होकर उभरी है।
किशनगंज सीट पर है कब्जा
2014 के लोकसभा चुनाव से बिहार के चुनावी मैदान में उतरने वाली इस पार्टी में अंततः पहली बार पिछले वर्ष हुए किशनगंज विधानसभा सीट के उपचुनाव में जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया। लेकिन उससे चंद महीने पहले ही एआईएमआईएम ने लोकसभा चुनाव के दौरान किशनगंज सीट पर तीन लाख वोट पाकर अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज की थी।
हालांकि उसके उम्मीदवार और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमाम तीसरे स्थान पर आए लेकिन वे जदयू उम्मीदवार से महज 25000 पीछे थे और कांग्रेस उम्मीदवार से 50,000 मत पीछे।
इसीलिए माना जा रहा है कि इस बार पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमा से लगे किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और अररिया जिलों की अधिकतर सीटों पर यह पार्टी ठीक-ठाक प्रदर्शन कर सकती है। इन जिलों में मुस्लिम मतदाता अधिक हैं। पूर्णिया में 35 फीसदी, कटिहार में 45, अररिया में 51 तो किशनगंज में 70 फीसदी मतदाता मुसलमान हैं।
यूपीए को होगा नुकसान
एआईएमआईएम को जितना ज्यादा वोट पड़ेंगे उतना ही अधिक नुकसान यूपीए, खासतौर पर राष्ट्रीय जनता दल को उठाना पड़ेगा क्योंकि दोनों का वोट बैंक एक है, वही चिराग पासवान की लोजपा को मिलने वाला अधिकतर वोट एनडीए, खास तौर पर जदयू को नुकसान पहुंचाएगा।