बीते चार चुनाव में से तीन चुनाव में जीत हासिल कर माले ने इस इलाके में अपना दबदबा साबित किया है। हालांकि इस बार स्थिति बदली-बदली सी है। मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर इसी बिरादरी के एसडीपीआई, एनसीपी सहित दो अन्य निर्दलीय उम्मीदवार महबूब आलम को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
एसडीपीआई के उम्मीदवार मौलाना मनोवर हुसैन और एनसीपी के उम्मीदवार ख्वाजा बहाउद्दीन विधायक के नमाज न पढ़ने को मुद्दा बनाए हुए हैं। मौलना मनोवर कहते हैं मुसलमानों के लिए यह करो या मरो का सवाल है। दीन की रक्षा करने वाले की जरूरत है।
महबूब की मुश्किल एनसीपी उम्मीदवार ख्वाजा बहाउद्दीन भी हैं। इलाके के पीर ख्वाजा के इलाके में हजारों की संख्या में मुरीद हैं। ख्वाजा मुरीदों के बीच खासे लोकप्रिय हैं।
इसके अलावा निर्दलीय मोहम्मद जिन्नाह का भी इस सीट के एक खास इलाके में बेहद प्रभाव है। मुश्किल यह है कि जब भी इस सीट पर मुस्लिम मतों का बंटवारा हुआ है तब बाजी भाजपा या भाजपा के बागी के हाथ लगी है। साल 1995 और साल 2010 के चुनाव में इस सीट पर दुलालचंद्र गोस्वामी को बतौर भाजपा और बतौर निर्दलीय उम्मीदवार सफलता मिली थी।
माले और वीआईपी में सीधी टक्कर
हालांकि सीधी टक्कर सीपीआई माले के महबूब आलम और वीआईपी के वरुण कुमार झा के बीच है। भाजपा ने समझौते के तहत यह सीट वीआईपी को दी है, मगर झा भाजपा के नेता हैं। बीते चुनाव में झा को महबूब आलम ने शिकस्त दी थी। इस सीट पर करीब 68 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। हिंदू मतों का ध्रुवीकरण हमेशा से भाजपा या भाजपा समर्थित उम्मीदवार के पक्ष में होता रहा है।
मैंने हमेशा दबे-कुचले लोगों की आवाज उठाई है। यह समय सांप्रदायिक शक्तियों को शिकस्त देने का है। विपक्ष एकजुट है। बलरामपुर में एक बार फिर से माले का झंडा लहराएगा। – महबूब आलम, विधायक, माले
दो दशक से विकास कार्य ठप है। बिहार में हुए विकास का लाभ बलरामपुर को नहीं मिल पाया है। हर चुनाव में माले समेत सभी दल धर्म के नाम पर वोट मांगते हैं। मैं विकास के नाम पर वोट मांग रहा हूं। – वरुण कुमार झा, उम्मीदवार,वीआईपी
मैं बलरामपुर की जनता की आवाज हूं। वर्तमान विधायक ने इलाके को गरीबी और भुखमरी के अलावा कुछ नहीं दिया है। हर बार दीन के नाम पर वोट हासिल करने की रणनीति इस बार नहीं चलेगी। – मौलाना मनोवर हुसैन, उम्मीदवार एसडीपीआई
नीतीश सरकार के दो मंत्रियों की छुट्टी
चुनाव नतीजों से पहले नीतीश सरकार के दो मंत्री शुक्रवार से मंत्री नहीं रहे। इनमें जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी और जदयू नेता नीरज कुमार शामिल हैं। ये दोनों मंत्री विधान परिषद सदस्य थे।
छह महीने गुजर जाने के बाद भी दोनों नेता किसी सदन के सदस्य नहीं चुने जा सके हैं। नीरज कुमार स्नातक कोटे से सदस्य थे जबकि अशोक चौधरी विधायक कोटे से चुने गए थे। नीरज कुमार एक बार फिर से पटना क्षेत्र से स्नातक सीट से एनडीए प्रत्याशी के तौर चुनावी मैदान में उतरे थे, जिसका नतीजा 12 नंवबर को आएगा, वहीं अशोक चौधरी के एमएलसी मनोनीत होने की संभावना थी, जो आचार संहित लागू हो जाने के चलते नहीं हो सकी।