किन मामलों में वापस लिए जा सकते हैं केस? – Important knowledge about taking back cases

किन मामलों में वापस लिए जा सकते हैं केस?किन मामलों में वापस लिए जा सकते हैं केस?

राजेश चौधरी, नई दिल्ली

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि रेप और रेप की कोशिश जैसे मामले में समझौते के आधार पर केस खत्म नहीं हो सकता। कानूनी जानकार बताते हैं कि एक बार केस दर्ज किए जाने के बाद किन मामले में केस वापस लिया जा सकता है और किन मामलों में नहीं, इसके लिए कानून में प्रावधान किया गया है। जो समझौतावादी अपराध हैं, उनमें शिकायती केस वापस ले सकते हैं जबकि जो गैर-समझौतावादी अपराध हैं, उनमें अपनी मर्जी से केस वापस नहीं लिया जा सकता।


समझौतावादी केस

ऐडवोकेट मुरारी तिवारी बताते हैं कि सीआरपीसी की धारा-320 के तहत एक चार्ट दिया गया है, जिसमें समझौतावादी अपराध के बारे में विस्तार से उल्लेख है कि किन मामलों में शिकायती चाहे तो केस वापस ले सकता है। आमतौर पर कुछ अपवादों को छोड़कर 3 साल तक की सजा के मामले समझौतावादी हैं और ऐसे मामले में पीड़ित पक्ष चाहे तो केस वापस ले सकता है। जैसे, मारपीट (आईपीसी की धारा-323), जबरन रास्ता रोकने (341), धमकी देने (506), मानहानि (500) जैसे मामले में शिकायती चाहे तो आरोपी से समझौता कर सकता है। इनमें कई ऐसे मामले हैं, जिनमें कोर्ट के बाहर समझौता हो सकता है और कोर्ट को सीआरपीसी की धारा-320 के तहत अर्जी दाखिल कर सूचित किया जाता है कि शिकायती और आरोपी के बीच समझौता हो चुका है, ऐसे में कार्रवाई रद्द की जाए। तब कोर्ट कार्रवाई रद्द कर देता है।


कोर्ट की इजाजत से

कई ऐसे भी मामले हैं, जिनमें कोर्ट की इजाजत से केस रद्द होता है। ऐसे मामले में आपसी समझौते के बाद आरोपी और शिकायती कोर्ट में अर्जी दाखिल करते हैं और शिकायती कोर्ट से गुहार लगाता है कि उनका आपस में समझौता हो चुका है, लिहाजा केस ड्रॉप किया जाए। कोर्ट अगर उनकी याचिका से संतुष्ट हो जाता है तो केस रद्द करने का आदेश देता है। दिल्ली सरकार के पूर्व डायरेक्टर ऑफ प्रॉसिक्युशन बी. एस. जून बताते हैं कि जख्मी करना (325), चोरी (379), धोखाधड़ी (420), अमानत में खयानत (406) जैसे मामलों में शिकायती का जब आरोपी से समझौता हो जाता है तो वह संबंधित कोर्ट के सामने अर्जी दाखिल कर केस रद्द करने की गुहार लगाता है और केस कोर्ट की इजाजत से रद्द होता है।

हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की इजाजत से

कुछ ऐसे भी मामले हैं, जो गैर-समझौतावादी हैं, फिर भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर केस रद्द करने की गुहार लगाई जा सकती है। सीआरपीसी की धारा-482 के तहत हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर शिकायती कोर्ट को बताता है कि उसका आरोपी के साथ समझौता हो चुका है, लिहाजा कार्रवाई खारिज की जानी चाहिए। तब अदालत व्यापक नजरिये से यह देखती है कि मामले को खारिज किया जाए या नहीं। कोर्ट याचिका से संतुष्ट होने पर प्रोसिडिंग खारिज करने का आदेश दे सकता है।

गैर-समझौतावादी मामले जैसे दहेज प्रताड़ना, गैर-इरादतन हत्या का प्रयास और जालसाजी जैसे मामले में अगर पीड़ित और आरोपी के बीच समझौता हो जाता है तो हाई कोर्ट से केस रद्द करने की गुहार लगाई जा सकती है और हाई कोर्ट याचिका पर सुनवाई के बाद कार्रवाई रद्द करने का आदेश जारी कर सकता है या अर्जी खारिज कर सकता है।

गैर-समझौतावादी मामले

जहां तक बेहद गंभीर किस्म के अपराध का सवाल है, मसलन फिरौती के लिए अपहरण, रेप, मर्डर, देशद्रोह या महिलाओं के खिलाफ किए जाने वाले गंभीर किस्म के अपराध आदि मामले में समझौते के आधार पर केस खारिज नहीं होता। हाई कोर्ट में सरकारी वकील नवीन शर्मा बताते हैं कि 2012 में ज्ञान सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब के केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि रेप, डकैती और मर्डर के केस में समझौते के आधार पर केस रद्द नहीं हो सकता।

उक्त जजमेंट के पहले ऐसे तमाम रेप से संबंधित मामले सामने आए थे, जिसमें लड़का और लड़की के बीच समझौते के आधार पर केस खारिज किया गया। मसलन शादी का झांसा देकर संबंध मामले में रेप का केस दर्ज हुआ और बाद में लड़का और लड़की में समझौता हो गया। तब लड़के ने शादी की रजामंदी दिखाई और इस आधार पर केस रद्द करने की गुहार लगाई गई। कई मामलों में हाई कोर्ट से याचिकाकर्ताओं को रिलीफ मिली। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद रेप जैसे मामले में समझौते के आधार पर केस खारिज नहीं हो सकता।

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