कोईलवर4 घंटे पहले
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- हाईवे के लिए पेड़ काटे जाने से एक हजार चूजों की हुई मौत, पक्षी प्रेमियों ने धरना-प्रदर्शन किया
जिला प्रशासन के निर्देश पर पटना-बक्सर फोरलेन सड़क निर्माण को लेकर कायमनगर में सड़क किनारे लगे पेड़ पौधों को काटने का कार्य हो रहा है। जिन पेड़ो पर मेहमान पक्षियों का आशियाना बना हुआ है। सड़क निर्माण कंपनी द्वारा पेड़ो के काटे जाने से जहां हजारों साइबेरियन पक्षियों के आशियाने उजड़ गये हैं।
वही लगभग दो हजार चूजे भी जमीन पर गिर मर गये। लेकिन इससे निर्माण कंपनी को कोई फर्क नहीं पड़ा। पेड़ काटे जाने और मेहमान पक्षी के दो हजार चूजे मरने की सूचना मिलते ही विश्व पर्यावरण बचाओ संगठन के कार्यकर्ता कायमनगर पहुँच धरना पर बैठ गये और जमकर सरकार विरोधी नारे लगाये।
पीपुल फ़ॉर एनिमल के जिलाध्यक्ष दीपक कुमार अकेला ने बताया कि सरकार एक ओर जन जीवन हरियाली के तहत पौधारोपण कर रही है। वहीं दूसरी ओर सड़क निर्माण के लिए धड़ल्ले से हरे भरे वृक्ष को काट रही है। वहीं वैसे पेडों को काटवा रही है। जिस पर मेहमान साइबेरियन पक्षियों का आशियाना है। पेड़ के कटाई के कारण सैकड़ो चूजे मर गये।
जिसके लिए निर्माण कम्पनी व इससे जुड़े लोगों पर पशु क्रूरता अधिनियम के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। वहीं पशु क्रूरता निवारण के सदस्य गोपाल जी साधु ने बताया कि वे लोग इस सम्बंध में डीएम से मिल अक्टूबर महीने बाद पेड़ो की कटाई की मांग किये थे। लेकिन डीएम भी उनकी नहीं सुनी। जिससे दो हजार से ज्यादा मेहमान पक्षी के चूजे एक साथ दम तोड़ दिये।
धरना पर बैठे समाजसेवी अशोक तिवारी ने कहा कि कायमनगर में सड़क किनारे पेड़ो पर रहने वाले पक्षियों को जानबूझ कर सोची समझी राजनीति के तहत मार दिया गया। क्योंकि मेहमान पक्षी नये बच्चों के साथ अक्टूबर महीने बाद वापस साइबेरिया चले जाते हैं। अगर दो महीने बाद सड़क निर्माण के लिए पेड़ो की कटाई होती तो उस पर रहने वाले चूजे बड़े हो जाते और उनकी जान बच सकती थी।
साथ ही कहा के अब भी लगभग आधा दर्जन पेड़ो पर दो हजार से ज्यादा पक्षी अपने घोंसले में चूजे के साथ है। जिसे काटने से रोकने के लिए प्रशासन से गुहार लगा उन्हें आवेदन दिये है। मालूम हो कि आरा-पटना एनएच-30 पर कायमनगर बाजार के समीप लगभग दो दर्जन से ज्यादा पेड़ो पर साइबेरियन पक्षियों का आशियाना है।
जो पक्षी अप्रैल के महीने में कायमनगर पहुँच पेड़ो पर अपना घोंसला निर्माण कर प्रजनन के बाद अंडे देते हैं। जिसमें चूजे के बड़े होने के बाद अक्टूबर व नवम्बर के महीने में वापस साइबेरिया चले जाते हैं। इन सात महीनों में मेहमान पक्षियों के कलवर से पूरा क्षेत्र चहकता रहता है। अगर कोई चूजा गिर जाता था तो स्थानीय दुकानदार उसे पेड़ो पर रख देते थे। साथ ही इन मेहमान पक्षियों को शिकारियों से बचाते थे।
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