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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के पहले चरण के मतदान में 12 दिन रह गए हैं। सभी दलों का चुनाव प्रचार अभियान जोर पकड़ चुका है। अगले सप्ताह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिल में बिहार की मौजूदा सरकार के लिए विश्वास का चिराग जलाकर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के उद्देश्य से वोट मांगने जाएंगे। यह होने के पहले भाजपा के नेताओं का लोजपा में जाना और जद(यू) के खिलाफ चुनाव में उतरना जारी है। इतना ही नहीं जाले विधानसभा से कांग्रेस के अहमद उस्मानी को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद राजनीति में पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद मोहम्मद अली जिन्ना की एंट्री हो चुकी है।
कमरे में मोहम्मद अली जिन्ना का फोटो
मोहम्मद अली जिन्ना की एंट्री अहमद उस्मानी को टिकट देने के कारण हुई। जाले से टिकट ललित नारायण मिश्रा के पोते ऋषि मिश्रा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने अहमद उस्मानी पर भरोसा जताया। उस्मानी पर आरोप है कि एएमयू में उन्होंने अपने कमरे में मोहम्मद अली जिन्ना का फोटो लगा रखा था। वह जिन्ना समर्थक हैं। यही आरोप लगाकार ऋषि मिश्रा ने जहां इस्तीफा दे दिया है, वहीं भाजपा ने केंद्रीय मत्स्य पालन मंत्री गिरिराज सिंह को इस मुद्दे को हवा देने के मोर्चे पर लगा दिया है। बिहार की राजनीति को समझने वाले राजेश रंजन का कहना है कि यह तो होना ही था। गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय पहले ही अनुच्छेद-370 पर फारुक अब्दुल्ला के बयान के बहाने भाजपा के राष्ट्रवाद की एंट्री करवा चुके हैं। इस मुद्दे को भाजपा लगातार हवा देने में लगी है।
भाजपा छोड़कर लोजपा में नेता
भाजपा छोड़कर लोजपा में जाने, चुनाव लड़ने वाले नेताओं का दौर जारी है। भाजपा उपाध्यक्ष बेबीरानी ने मुजफ्फरपुर में चुनाव लड़ने के लिए लोजपा का दामन थाम लिया है। बेबी रानी ने भाजपा के नेताओं पर तीन करोड़ रुपये घूस लेकर टिकट देने का आरोप लगाया है। अकेले बेबी रानी नहीं बल्कि भाजपा के तमाम नेताओं ने पार्टी को छोड़कर लोजपा का दामन थाम लिया है। राजेन्द्र सिंह, रामेश्वर चौरसिया, मृणाल शेखर, श्वेता सिंह तमेत तमाम नेताओं को भाजपा छह साल के लिए पार्टी से निलंबित भी कर चुकी है। हालांकि भाजपा के कई नेता दबी जुबान से मान रहे हैं कि पहले चरण में इसका तमाम सीटों पर भाजपा को फायदा हो सकता है। लोजपा के वोट भाजपा के प्रत्याशियों को मिल सकते हैं, क्योंकि लोजपा ने पूरे बिहार में पांच-छह सीटों को छोड़कर भाजपा के खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है।
प्रधानमंत्री की 20 रैलियां
अगले सप्ताह से बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उतरेंगे। प्रधानमंत्री तीन नवंबर से पहले कोई 20 जनसभा कर सकते हैं। इसमें से एक दर्जन वर्चुअल जनसभाओं में प्रधानमंत्री के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी रहेंगे। इस संयुक्त प्रचार अभियान को लेकर बिहार के राजनीतिक पंडितों की निगाह प्रधानमंत्री से मिलने वाले संकेत पर टिकी है। पंकज झा जैसे चुनाव प्रचार अभियान पर काम करने वाले प्रोफेशनल का मानना है कि अपनी जनसभा में प्रधानमंत्री नीतीश कुमार सरकार की पीठ थपथपाएंगे, लालू प्रसाद यादव के दौर को याद कर सकते हैं, लेकिन वह लोजपा नेता चिराग पासवान के खिलाफ कुछ नहीं कहेंगे। पंकज झा के साथ संकेत कुमार भी इस समय पटना में हैं। बिहार के चुनाव पर काम कर रहे हैं। संकेत का भी कहना है कि नीतीश की परेशानी चिराग हैं। नीतीश नाम लिए बिना चिराग पर हमला बोल रहे हैं। जद(यू) के चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी भी इससे परेशान हैं। क्योंकि चिराग भाजपा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से सहानुभूति रखते हैं, लेकिन नीतीश कुमार की जद(यू) को कोसते हैं।
प्रधानमंत्री ने सहलाई थी चिराग की पीठ
पंकज और संकेत का कहना है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देने पहुंचे प्रधानमंत्री ने चिराग की पीठ सहलाकर उन्हें ढांढस बंधाया था। पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस अवसर से चूक गए थे। उन्होंने चिराग की तरफ देखा तक नहीं। संकेत कहते हैं कि चिराग अब भावुक होकर इसमें चुनावी तड़का लगा रहे हैं। वहीं भाजपा कोई कड़ा संदेश देकर अपना किसी तरह का राजनीतिक नुकसान नहीं करना चाहती। हालांकि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह चिराग की इस राजनीति पर हमला बोला है, लेकिन पंकज झा, संकेत कुमार की तरह ही बिहार में चुनाव को लेकर सर्वे की प्रक्रिया में लगे आरिफ का कहना है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
तेजस्वी के साथ भी दोस्ताना फर्झ निभा रहे हैं चिराग
चिराग के इस राजनीतिक दांव से सबसे ज्यादा नुकसान की संभावना जद (यू) को हो सकती है। जबकि इसका फायदा लोजपा, भाजपा और राजद को मिल सकता है। लोजपा के टिकट पर भाजपा के ही बागी चुनाव लड़ रहे हैं। प्रयागराज से काशी प्रांत के भाजपा कार्यकर्ता बिहार चुनाव प्रचार में हैं। उनका भी मानना है कि भाजपा छोड़कर लोजपा में गए नेताओं को भाजपा का वोट मिल सकता है। लोजपा 143 सीट पर चुनाव लड़ रही है। इसका दूसरा फायदा भाजपा के प्रत्याशियों को होगा। उन्हें लोजपा के वोट मिल सकते हैं। आरिफ, संकेत और पंकज तीनों को लग रहा है कुछ हद तक ही सही इसका सीधा और परोक्ष लाभ तेजस्वी यादव की पार्टी राजद को भी मिलेगा।
तेजस्वी के गले में अटक रहा है लालू राज
बिहार विधानसभा चुनाव में तीन चीजें इस बार अहम हुई हैं। पहला, अगड़ों की राजनीति, उम्मीदवारी रंग लाई है। भाजपा ने इसे भुनाने के लिए 110 उम्मीदवारों में से 50 अगड़ी जाति के उतारे हैं। दूसरा, 15 साल बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास अपनी सरकार के कामकाज गिनाने के लिए कम और लालू-राबड़ी सरकार के दिनों की याद ताजा करने का मुद्दा सबसे बड़ा है। तीसरा, बिहार विधानसभा-2020 का चुनाव एनडीए राष्ट्रवाद, विकास के मुद्दे पर लड़ रहा है तो लोजपा और महागठबंधन के प्रमुख घटक राजद के लिए बिहार, ठेठ बिहारी, बिहार की अस्मिता ही मुख्य मुद्दा है। बताते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहां 15 साल के लालू-राबड़ी सरकार की याद ताजा कर दे रहे हैं, वहीं महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव इस मुद्दे से जान छुड़ाकर आगे बढ़ने में भलाई समझ रहे हैं।
सार
- बिहार की राजनीति में कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना की एंट्री
- भाजपा के नेताओं का लोजपा में जाना जारी
- राष्ट्रवाद, विकास बनाम ठेठ बिहारी का होगा मुकाबला
विस्तार
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के पहले चरण के मतदान में 12 दिन रह गए हैं। सभी दलों का चुनाव प्रचार अभियान जोर पकड़ चुका है। अगले सप्ताह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिल में बिहार की मौजूदा सरकार के लिए विश्वास का चिराग जलाकर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के उद्देश्य से वोट मांगने जाएंगे। यह होने के पहले भाजपा के नेताओं का लोजपा में जाना और जद(यू) के खिलाफ चुनाव में उतरना जारी है। इतना ही नहीं जाले विधानसभा से कांग्रेस के अहमद उस्मानी को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद राजनीति में पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद मोहम्मद अली जिन्ना की एंट्री हो चुकी है।
कमरे में मोहम्मद अली जिन्ना का फोटो
मोहम्मद अली जिन्ना की एंट्री अहमद उस्मानी को टिकट देने के कारण हुई। जाले से टिकट ललित नारायण मिश्रा के पोते ऋषि मिश्रा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने अहमद उस्मानी पर भरोसा जताया। उस्मानी पर आरोप है कि एएमयू में उन्होंने अपने कमरे में मोहम्मद अली जिन्ना का फोटो लगा रखा था। वह जिन्ना समर्थक हैं। यही आरोप लगाकार ऋषि मिश्रा ने जहां इस्तीफा दे दिया है, वहीं भाजपा ने केंद्रीय मत्स्य पालन मंत्री गिरिराज सिंह को इस मुद्दे को हवा देने के मोर्चे पर लगा दिया है। बिहार की राजनीति को समझने वाले राजेश रंजन का कहना है कि यह तो होना ही था। गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय पहले ही अनुच्छेद-370 पर फारुक अब्दुल्ला के बयान के बहाने भाजपा के राष्ट्रवाद की एंट्री करवा चुके हैं। इस मुद्दे को भाजपा लगातार हवा देने में लगी है।
भाजपा छोड़कर लोजपा में नेता
भाजपा छोड़कर लोजपा में जाने, चुनाव लड़ने वाले नेताओं का दौर जारी है। भाजपा उपाध्यक्ष बेबीरानी ने मुजफ्फरपुर में चुनाव लड़ने के लिए लोजपा का दामन थाम लिया है। बेबी रानी ने भाजपा के नेताओं पर तीन करोड़ रुपये घूस लेकर टिकट देने का आरोप लगाया है। अकेले बेबी रानी नहीं बल्कि भाजपा के तमाम नेताओं ने पार्टी को छोड़कर लोजपा का दामन थाम लिया है। राजेन्द्र सिंह, रामेश्वर चौरसिया, मृणाल शेखर, श्वेता सिंह तमेत तमाम नेताओं को भाजपा छह साल के लिए पार्टी से निलंबित भी कर चुकी है। हालांकि भाजपा के कई नेता दबी जुबान से मान रहे हैं कि पहले चरण में इसका तमाम सीटों पर भाजपा को फायदा हो सकता है। लोजपा के वोट भाजपा के प्रत्याशियों को मिल सकते हैं, क्योंकि लोजपा ने पूरे बिहार में पांच-छह सीटों को छोड़कर भाजपा के खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है।
प्रधानमंत्री की 20 रैलियां
अगले सप्ताह से बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उतरेंगे। प्रधानमंत्री तीन नवंबर से पहले कोई 20 जनसभा कर सकते हैं। इसमें से एक दर्जन वर्चुअल जनसभाओं में प्रधानमंत्री के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी रहेंगे। इस संयुक्त प्रचार अभियान को लेकर बिहार के राजनीतिक पंडितों की निगाह प्रधानमंत्री से मिलने वाले संकेत पर टिकी है। पंकज झा जैसे चुनाव प्रचार अभियान पर काम करने वाले प्रोफेशनल का मानना है कि अपनी जनसभा में प्रधानमंत्री नीतीश कुमार सरकार की पीठ थपथपाएंगे, लालू प्रसाद यादव के दौर को याद कर सकते हैं, लेकिन वह लोजपा नेता चिराग पासवान के खिलाफ कुछ नहीं कहेंगे। पंकज झा के साथ संकेत कुमार भी इस समय पटना में हैं। बिहार के चुनाव पर काम कर रहे हैं। संकेत का भी कहना है कि नीतीश की परेशानी चिराग हैं। नीतीश नाम लिए बिना चिराग पर हमला बोल रहे हैं। जद(यू) के चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी भी इससे परेशान हैं। क्योंकि चिराग भाजपा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से सहानुभूति रखते हैं, लेकिन नीतीश कुमार की जद(यू) को कोसते हैं।
प्रधानमंत्री ने सहलाई थी चिराग की पीठ
पंकज और संकेत का कहना है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देने पहुंचे प्रधानमंत्री ने चिराग की पीठ सहलाकर उन्हें ढांढस बंधाया था। पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस अवसर से चूक गए थे। उन्होंने चिराग की तरफ देखा तक नहीं। संकेत कहते हैं कि चिराग अब भावुक होकर इसमें चुनावी तड़का लगा रहे हैं। वहीं भाजपा कोई कड़ा संदेश देकर अपना किसी तरह का राजनीतिक नुकसान नहीं करना चाहती। हालांकि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह चिराग की इस राजनीति पर हमला बोला है, लेकिन पंकज झा, संकेत कुमार की तरह ही बिहार में चुनाव को लेकर सर्वे की प्रक्रिया में लगे आरिफ का कहना है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
तेजस्वी के साथ भी दोस्ताना फर्झ निभा रहे हैं चिराग
चिराग के इस राजनीतिक दांव से सबसे ज्यादा नुकसान की संभावना जद (यू) को हो सकती है। जबकि इसका फायदा लोजपा, भाजपा और राजद को मिल सकता है। लोजपा के टिकट पर भाजपा के ही बागी चुनाव लड़ रहे हैं। प्रयागराज से काशी प्रांत के भाजपा कार्यकर्ता बिहार चुनाव प्रचार में हैं। उनका भी मानना है कि भाजपा छोड़कर लोजपा में गए नेताओं को भाजपा का वोट मिल सकता है। लोजपा 143 सीट पर चुनाव लड़ रही है। इसका दूसरा फायदा भाजपा के प्रत्याशियों को होगा। उन्हें लोजपा के वोट मिल सकते हैं। आरिफ, संकेत और पंकज तीनों को लग रहा है कुछ हद तक ही सही इसका सीधा और परोक्ष लाभ तेजस्वी यादव की पार्टी राजद को भी मिलेगा।
तेजस्वी के गले में अटक रहा है लालू राज
बिहार विधानसभा चुनाव में तीन चीजें इस बार अहम हुई हैं। पहला, अगड़ों की राजनीति, उम्मीदवारी रंग लाई है। भाजपा ने इसे भुनाने के लिए 110 उम्मीदवारों में से 50 अगड़ी जाति के उतारे हैं। दूसरा, 15 साल बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास अपनी सरकार के कामकाज गिनाने के लिए कम और लालू-राबड़ी सरकार के दिनों की याद ताजा करने का मुद्दा सबसे बड़ा है। तीसरा, बिहार विधानसभा-2020 का चुनाव एनडीए राष्ट्रवाद, विकास के मुद्दे पर लड़ रहा है तो लोजपा और महागठबंधन के प्रमुख घटक राजद के लिए बिहार, ठेठ बिहारी, बिहार की अस्मिता ही मुख्य मुद्दा है। बताते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहां 15 साल के लालू-राबड़ी सरकार की याद ताजा कर दे रहे हैं, वहीं महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव इस मुद्दे से जान छुड़ाकर आगे बढ़ने में भलाई समझ रहे हैं।