Why Bihar Election 2020 Battle Is Not Like The Last Three Polls Jdu Nitish Kumar Ljp Chirag Paswan Rjd Tejaswi Yadav – Bihar Election 2020: पिछले तीन चुनावों से अलग है इस बार की बिसात, जानें क्यों?

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बिहार में चुनावी बिसात बिछ चुकी है। राजनीतिक चालें लगातार चली जा रही हैं, लेकिन बिहार के इस बार के चुनाव पिछले तीन बार के इलेक्शन से एकदम अलहदा हैं। दरअसल, बिहार के पिछले तीनों चुनावों की दशा और दिशा केंद्र सरकार ने तय की थी। 2005 और 2010 में सुशासन स्थापित किया गया था और 2015 में भाजपा को हराना मकसद था। लेकिन मौजूदा चुनाव में इस तरह का कोई भी मुद्दा हावी नहीं हो रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि बिहार में इस वक्त एंटी इनकमबैसी, जंगल राज की वापसी, कोरोना काल में आर्थिक तंगी और बढ़ती बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दे हैं, लेकिन संसदीय क्षेत्रों के हिसाब से प्राथमिकताएं अलग हैं। दरअसल, बिहार में सबकुछ मतदाताओं के पिछले झुकाव और अक्सर जातिवाद पर निर्भर होता है।

अरवल और जहानाबाद के रास्ते पटना जाने वाली 4 साल पुरानी सोन-कनाल रोड पर पान की दुकान चलाने वाले प्रेम कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार ने यह सड़क बनवाई थी और इसकी वजह से हमारी कमाई बढ़ गई, लेकिन क्या इसकी वजह से मुझे हमेशा नीतीश कुमार का शुक्रगुजार होना चाहिए? प्रेम का गांव पटना जिले के विक्रम संसदीय क्षेत्र में आता है। ओबीसी समुदाय से ताललुक रखने वाले प्रेम कुमार पूछते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने वाली नीतीश कुमार की मांग का क्या हुआ? हालांकि, केंद्र से मिलने वाली और फंडिंग से ही राज्य की मदद हो सकती है। 

प्रेम कुमार ने बताया कि सरकार ने कुछ समय पहले ही इस सड़क किनारे सरकारी जमीनों पर पेड़ लगवाए हैं। ये जमीनें पहले किसानों को लीज पर दी गई थीं। इसकी वजह से अब किसान नाराज हैं। भगवान ही जाने कि चुनाव से ठीक पहले ऐसा क्यों किया गया? इस दौरान प्रेम कुमार ने कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने की बात भी कही। 

उन्होंने कहा कि वह भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराज है। ऐसे में उनका वोट प्रत्याशी को जाएगा, न कि किसी पार्टी के प्रति उनका झुकाव रहेगा। हालांकि, प्रेम कुमार की इस राय से गांव के भूमिहार किसान कुशल कुमार शर्मा सहमत नहीं दिखे। उन्होंने कहा कि जंगल राज के दौरान इस सड़क पर कोई भी काम-धंधा नहीं कर पाता था। आज की पीढ़ी उन दिनों के संघर्ष को समझ ही नहीं सकती, क्योंकि उन दिनों राज्य में कोई नियम-कानून ही नहीं था। 

कुशल कहते हैं कि इस बार कांग्रेस अकेले चुनाव नहीं लड़ रही, जिससे वह काफी नाराज हैं। इसके बावजूद कुशल का अनुमान है कि इस बार भी कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है। बता दें कि 2015 में इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी। कुशल कहते हैं कि अगर बीजेपी अनिल कुमार को टिकट देती तो उनके सारे वोट ‘कमल’ को ही मिलते। इस बारे में प्रेम कुमार से बात की गई, लेकिन उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया। इस बीच पड़ोसी गांव वैगवान निवासी जलेश्वर पासवान ने कहा कि नीतीश मेरे लिए विकास पुरुष हैं, लेकिन इस बात को 15 साल बीत चुके हैं। मैं बदलाव के लिए मतदान करूंगा। 

वैगवान गांव के ही लाल बाबू यादव ने बताया, ‘‘इस बार पासवान और यादव विक्रम में साथ हैं।’’ ऐसे में सवाल पूछा गया कि क्या पासवान समुदाय के लोग लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान का समर्थन करेंगे? इस पर गांव के ही रविंद्र पासवान ने कहा कि समुदाय में चिराग काफी लोकप्रिय हैं, लेकिन पार्टी ने विक्रम सीट पर कोई भी प्रत्याशी नहीं उतारा। ऐस में पासवान वोट शिफ्ट हो सकता है।

विक्रम सीट पर चिराग पासवान को दिक्कत हो सकती है, लेकिन पालीगंज संसदीय क्षेत्र में लोक जनशक्ति पार्टी की उम्मीदवार ऊषा विद्यार्थी को पासवान और अगड़ी जाति दोनों के वोट मिलने की पूरी संभावना है। हालांकि, यहां उनका मुकाबला महागठबंधन प्रत्याशी संदीप सौरव है, जो जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं और लोगों के पसंदीदा भी लग रहे हैं। आपको बता दें कि 2015 के विधानसभा चुनाव में दोनों सीटें महागठबंधन के खाते में गई थीं। विक्रम सीट कांग्रेस ने जीती थी और पालीगंज सीट आरजेडी ने हासिल की थी। गौरतलब है कि इन सीटों पर सीपीआई (एमएल) की मौजूदगी भी अच्छी-खासी है।

अति पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले लाल मोहन चौहान पालीगंज मार्केट दुकान चलाते हैं। दुर्गा पूजा मेला पर सरकार द्वारा लगाए गए बैन से वो नाराज हैं। लाल मोहन चौहान ने बताया कि मार्केट में मौजूद हर कोई इस मेले से कमाई करता। चुनावी रैलियों के लिए कोरोना नहीं है, जबकि आम आदमी की आजीविका और उसकी कमाई पर प्रतिबंध है।

पालीगंज के रक्षा गांव से ताल्लुक रखने वाले रामशंकर वर्मा (कुशवाहा) ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री नीतीश अब बुजुर्ग हो गए हैं। यही वजह है कि वो बिहार का विकास न होने की वजह बंदरगाह से राज्य की दूरी बता रहे हैं।’’ सीपीआई (एमएल) उम्मीदवार की मौजूदगी को मानते हुए रामशंकर ने कहा कि मैं 2 हजार रुपये का बस टिकट लेकर गुरुग्राम से बिहार आया था और तब से अब तक बेरोजगार हूं।

उन्होंने कहा कि जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, तब मैं 30 साल का था। अब मैं करीब 50 साल का हूं। मेरी जिंदगी तो खत्म हो चुकी, लेकिन राज्य के युवाओं का क्या? नीतीश जी का विकास सड़कों और बिजली के साथ खत्म हो गया। हालात में बदलाव आया है, लेकिन राज्य में बढ़ती बेरोजगारी का क्या होगा?

बिहार में चुनावी बिसात बिछ चुकी है। राजनीतिक चालें लगातार चली जा रही हैं, लेकिन बिहार के इस बार के चुनाव पिछले तीन बार के इलेक्शन से एकदम अलहदा हैं। दरअसल, बिहार के पिछले तीनों चुनावों की दशा और दिशा केंद्र सरकार ने तय की थी। 2005 और 2010 में सुशासन स्थापित किया गया था और 2015 में भाजपा को हराना मकसद था। लेकिन मौजूदा चुनाव में इस तरह का कोई भी मुद्दा हावी नहीं हो रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि बिहार में इस वक्त एंटी इनकमबैसी, जंगल राज की वापसी, कोरोना काल में आर्थिक तंगी और बढ़ती बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दे हैं, लेकिन संसदीय क्षेत्रों के हिसाब से प्राथमिकताएं अलग हैं। दरअसल, बिहार में सबकुछ मतदाताओं के पिछले झुकाव और अक्सर जातिवाद पर निर्भर होता है।

अरवल और जहानाबाद के रास्ते पटना जाने वाली 4 साल पुरानी सोन-कनाल रोड पर पान की दुकान चलाने वाले प्रेम कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार ने यह सड़क बनवाई थी और इसकी वजह से हमारी कमाई बढ़ गई, लेकिन क्या इसकी वजह से मुझे हमेशा नीतीश कुमार का शुक्रगुजार होना चाहिए? प्रेम का गांव पटना जिले के विक्रम संसदीय क्षेत्र में आता है। ओबीसी समुदाय से ताललुक रखने वाले प्रेम कुमार पूछते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने वाली नीतीश कुमार की मांग का क्या हुआ? हालांकि, केंद्र से मिलने वाली और फंडिंग से ही राज्य की मदद हो सकती है। 

प्रेम कुमार ने बताया कि सरकार ने कुछ समय पहले ही इस सड़क किनारे सरकारी जमीनों पर पेड़ लगवाए हैं। ये जमीनें पहले किसानों को लीज पर दी गई थीं। इसकी वजह से अब किसान नाराज हैं। भगवान ही जाने कि चुनाव से ठीक पहले ऐसा क्यों किया गया? इस दौरान प्रेम कुमार ने कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने की बात भी कही। 

उन्होंने कहा कि वह भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराज है। ऐसे में उनका वोट प्रत्याशी को जाएगा, न कि किसी पार्टी के प्रति उनका झुकाव रहेगा। हालांकि, प्रेम कुमार की इस राय से गांव के भूमिहार किसान कुशल कुमार शर्मा सहमत नहीं दिखे। उन्होंने कहा कि जंगल राज के दौरान इस सड़क पर कोई भी काम-धंधा नहीं कर पाता था। आज की पीढ़ी उन दिनों के संघर्ष को समझ ही नहीं सकती, क्योंकि उन दिनों राज्य में कोई नियम-कानून ही नहीं था। 

कुशल कहते हैं कि इस बार कांग्रेस अकेले चुनाव नहीं लड़ रही, जिससे वह काफी नाराज हैं। इसके बावजूद कुशल का अनुमान है कि इस बार भी कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है। बता दें कि 2015 में इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी। कुशल कहते हैं कि अगर बीजेपी अनिल कुमार को टिकट देती तो उनके सारे वोट ‘कमल’ को ही मिलते। इस बारे में प्रेम कुमार से बात की गई, लेकिन उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया। इस बीच पड़ोसी गांव वैगवान निवासी जलेश्वर पासवान ने कहा कि नीतीश मेरे लिए विकास पुरुष हैं, लेकिन इस बात को 15 साल बीत चुके हैं। मैं बदलाव के लिए मतदान करूंगा। 

वैगवान गांव के ही लाल बाबू यादव ने बताया, ‘‘इस बार पासवान और यादव विक्रम में साथ हैं।’’ ऐसे में सवाल पूछा गया कि क्या पासवान समुदाय के लोग लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान का समर्थन करेंगे? इस पर गांव के ही रविंद्र पासवान ने कहा कि समुदाय में चिराग काफी लोकप्रिय हैं, लेकिन पार्टी ने विक्रम सीट पर कोई भी प्रत्याशी नहीं उतारा। ऐस में पासवान वोट शिफ्ट हो सकता है।

विक्रम सीट पर चिराग पासवान को दिक्कत हो सकती है, लेकिन पालीगंज संसदीय क्षेत्र में लोक जनशक्ति पार्टी की उम्मीदवार ऊषा विद्यार्थी को पासवान और अगड़ी जाति दोनों के वोट मिलने की पूरी संभावना है। हालांकि, यहां उनका मुकाबला महागठबंधन प्रत्याशी संदीप सौरव है, जो जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं और लोगों के पसंदीदा भी लग रहे हैं। आपको बता दें कि 2015 के विधानसभा चुनाव में दोनों सीटें महागठबंधन के खाते में गई थीं। विक्रम सीट कांग्रेस ने जीती थी और पालीगंज सीट आरजेडी ने हासिल की थी। गौरतलब है कि इन सीटों पर सीपीआई (एमएल) की मौजूदगी भी अच्छी-खासी है।

अति पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले लाल मोहन चौहान पालीगंज मार्केट दुकान चलाते हैं। दुर्गा पूजा मेला पर सरकार द्वारा लगाए गए बैन से वो नाराज हैं। लाल मोहन चौहान ने बताया कि मार्केट में मौजूद हर कोई इस मेले से कमाई करता। चुनावी रैलियों के लिए कोरोना नहीं है, जबकि आम आदमी की आजीविका और उसकी कमाई पर प्रतिबंध है।

पालीगंज के रक्षा गांव से ताल्लुक रखने वाले रामशंकर वर्मा (कुशवाहा) ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री नीतीश अब बुजुर्ग हो गए हैं। यही वजह है कि वो बिहार का विकास न होने की वजह बंदरगाह से राज्य की दूरी बता रहे हैं।’’ सीपीआई (एमएल) उम्मीदवार की मौजूदगी को मानते हुए रामशंकर ने कहा कि मैं 2 हजार रुपये का बस टिकट लेकर गुरुग्राम से बिहार आया था और तब से अब तक बेरोजगार हूं।

उन्होंने कहा कि जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, तब मैं 30 साल का था। अब मैं करीब 50 साल का हूं। मेरी जिंदगी तो खत्म हो चुकी, लेकिन राज्य के युवाओं का क्या? नीतीश जी का विकास सड़कों और बिजली के साथ खत्म हो गया। हालात में बदलाव आया है, लेकिन राज्य में बढ़ती बेरोजगारी का क्या होगा?

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