- सड़क पर नाले का पानी ही नहीं, जनता का पैसा भी बह रहा है, एक्सपर्ट बोले- टुकड़ों में नाले बनाना गलत
दैनिक भास्कर
Jun 18, 2020, 07:57 AM IST
भागलपुर. शहर में गंदे पानी के निकास को बने नालों पर 4 साल में निगम ने जनता की कमाई पानी में बहा दी। 4 साल में 44 करोड़ 48 लाख 56,854 रुपए नगर विकास विभाग ने दिए। इनमें 18 कराेड़ 14 लाख 82 हजार 526 रुपए नाले बनाने में खर्च तो किए, पर इसकी निगरानी सही तरीके से नहीं की। मोहल्लों में बिना सर्वे और लाइन लेंथ का आकलन किए ही चैंबरों में बैठकर जिम्मेदारों ने योजना बनाई। नाले का लेआऊट बनाया और ठेकेदार ने मनमर्जी काम कर ऐसा नाला बनाया कि पूरा पैसा गंदे पानी में ही बह गया।
नतीजा, हल्की बारिश में ही नाले उफन रहे हैं। गंदे पानी के बीच लोगों का चलना दूभर है। हाल ही में 33 करोड़ के प्रोजेक्ट के टेंडर हुए हैं। इसमें भी लोकल एजेंसियाें को काम दिया गया। सोशल ऑडिट के लिए निकली एक्सपर्ट की टीम ने नालियों का मुआयना किया। उन्होंने बताया, सही नाला न बनने से दूसरे नाले खुद बन जाते हैं। इस बारिश भी लोगों को इससे परेशानी होगी।
1. ऐसे बनता है एस्टीमेट : जूनियर व असिस्टेंट इंजीनियर पार्षदों की मांग व उनकी रिपाेर्ट के आधार पर दफ्तर में ही एस्टीमेट बनाए जाते हैं। सही आकलन नहीं होता। जब काम शुरू होता है तो यह टुकड़ाें में ही राशि के आधार पर हाे जाता है।
2. लोग निगरानी नहीं कर पाते :ठेकेदार निर्माणस्थल पर कोई बोर्ड नहीं लगाता। इससे आम लोगों काम की मॉनिटरिंग नहीं कर पाते। निगम अफसरों की मिलीभगत से ठेकेदार मनमर्जी करते हैं और इंजीनियर काम पूरा होते ही एनओसी दे देते हैं।
3. ठेकेदार पर सवाल उठाया तो अधिकार किए कम : ठेकेदार के काम पर एक उपनगर अायुक्त ने सवाल उठाया था तो अफसर के खिलाफ गोलबंदी की। फिर नगर आयुक्त ने अफसर का अधिकार कम किया। तब से किसी ने आवाज नहीं उठाई।
एक बार में एक इलाके में ही हो पूरा काम
इंजीनियर पुष्पराज ने बताया, नाला बनाने से पहले मोहल्लों का सर्वे, उसकी लाइन-लेंथ नापकर एस्टीमेट बने और फिर एक वार्ड में एक साथ काम कर नाले बने। इससे टुकड़ाें में जैसे-तैसे काम नहीं होगा। टुकड़ाें में काम हाेने से नाला रुकता है, कई बार नाले की जमीन सही तरीके से नहीं बनती। पानी जमीन में एक नाले से दूसरे नाले के फ्लो से मिल जाता है। यही सड़क पर आता है। पूरी ड्रेनेज विंग अलग हो। अनुभवी इंजीनियराें से नक्शा बनाएं। इसकी निगरानी हो। राजमिस्त्री, मजदूराें व ठेकेदार के भराेसे जैसे-तैसे काम हाेता है।
ठेकेदार और इंजीनियरों की रिपोर्ट पर नगर आयुक्त को पेमेंट करना चाहिए। गड़बड़ी हो तो इंजीनियर का वेतन रोकें। मैं तो निर्देश दे सकती हूं। देती भी हूं। कार्रवाई तो नगर आयुक्त को करना है।
– सीमा साहा, मेयर