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Bihar Election Date 2020 : बिहार विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ राजग और विपक्षी महागठबंधन में शामिल दलों बागी बड़ा सिरदर्द बन रहे हैं। विकल्पों की भरमार के कारण बागियों की पौ बारह है। समझौते में कम सीट मिलने और दावेदारों की भारी संख्या ने खासतौर से भाजपा, जदयू, राजद और कांग्रेस के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है।
बागियों के लिए ढेर सारे विकल्प होने के कारण इस बार इन्हें रोकना इन दलों के लिए आसान नहीं है। गौरतलब है कि इस बार इन दलों के बागियों के समक्ष लोजपा और एआईएमआईएम-बसपा-आरएलएसपी-एसजेडी गठबंधन अहम विकल्प हैं।
भाजपा-जदयू के बागी जहां लोजपा से संपर्क साध रहे हैं, वहीं महागठबंधन के बागी लोजपा समेत आरएलएसपी गठबंधन से संपर्क साध रहे हैं। सर्वाधिक संपर्क लोजपा से साधा जा रहा है। बागियों के सामने जाप और भीम आर्मी गठंबधन भी एक विकल्प है।
लोजपा बना डंपिंग ग्राउंड
फिलहाल बागियों के लिए अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरी लोजपा पहली पसंद है। भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र सिंह, ऊषा विद्यार्थी जैसे कई नेता लोजपा का दामन थाम चुके हैं, जबकि रामेश्वर चौरसिया, जवाहर प्रसाद, देवेश शर्मा, रामअवतार सिंह जैसे दर्जन भर बड़े नेता लोजपा कें संपर्क में हैं। जदयू के भी आधा दर्जन नाराज नेता लोजपा के संपर्क में हैं।
लोजपा में जाने वालों में जदयू के भी कई नेता हैं। भगवान सिंह कुशवाहा ने अपने तरकश से तीर को निकाल फेंका है। कुशवाहा अब लोजपा नेता बन गए हैं। लोजपा ने भाजपा को हासिल होने वाली सीटों के इतर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है और उसके पास पर्याप्त उम्मीदवार नहीं हैं। ऐसे में बागी नेताओं की लॉटरी लग गई है।
ये तीनों राज्य के मुख्य दल हैं। इसमें भाजपा-जदयू में गठबंधन होने और भाजपा को वीआईपी तो जदयू को हम को अपने हिस्से की सीटें देने से इनके लिए सीटों की संख्या कम बची है। इसके अलावा चूंकि दोनों दलों ने पिछला चुनाव अलग-अलग लड़ा था।
इसलिए इन दोनों दलों के करीब-करीब हर सीट पर दावेदार हैं, जबकि इनके अपने हिस्से में महज 115 और 110 सीटें ही मिली हैं। जाहिर तौर पर करीब सौ सीटें ऐसी हैं जहां कई दावेदार टिकट का इंतजार कर रहे थे। इसी प्रकार राजद को वाम दलों और कांग्रेस से समझौते के कारण महज 144 सीटें मिली हैं और जो सीटें सहयोगियों के कोटे में गई हैं उन सीटों पर पार्टी के दावेदार खफा हैं।
इसलिए देरी से जारी कर रहे सूची बागियों के सामने विकल्प की भरमार ही वह कारण है जिसके चलते ये दल उम्मीदवारों की सूची बहुत देरी से जारी कर रहे हैं। जदयू-भाजपा और राजद ने पहले चुपचाप उम्मीदवारों को सिंबल बांटा। अंतिम समय में सूची जारी की। वह भी मुख्यत: पहले चरण की। कांग्रेस अब तक पहले चरण की सारी सीटें भी नहीं बांट पाई है।
इस बीच राज्य में दो गठबंधनों के मेल ने भी बागियों का ध्यान खींचा है। पहले एआईएमआईएम और एसजेडी ने तो रालोसपा-बसपा ने अलग-अलग गठबंधन की घोषणा की थी। अब ये दोनों गठबंधन एक हो गए हैं। जाहिर तौर इसमें शामिल दल विचारधारा के हिसाब से महागठबंधन के करीब रहे हैं। ऐसे में भविष्य में राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन के बागी नेता इस गठबंधन की ओर रुख कर सकते हैं।
लोजपा का लक्ष्य, जदयू को नुकसान
अब लोजपा की राजनीति साफ होती जा रही है। लोजपा अपने उम्मीदवार वहीं उतार रही है जहां राजग की तरफ से जदयू मैदान में है। साफ है जहां भाजपा नहीं है वहां भाजपा का नेता लोजपा की तरफ से चुनावी मैदान में है। जाहिर है इससे भाजपा का आधार वोट बंटेगा और जदयू को मिलने वाले वोट का नुकसान होगा। मतलब ये है कि एक किस्म से भाजपा की तो मदद हो जाएगी लेकिन जदयू को टक्कर मिलेगी।
गठबंधन की स्थिति बुधवार तक साफ हुई है, इसलिए बगावत में तेजी नहीं देखी जा रही। चूंकि मुख्य दलों और गठबंधनों ने टिकट वितरण के मामले में खुद को प्रथम चरण के चुनाव तक ही सीमित रखा है, इसलिए बागियों की निगाहें दूसरे और तीसरे चरणों की सूची पर है। दलों की उम्मीदवारों की दूसरी-तीसरी सूची जारी होने के साथ-साथ बगावत में तेजी आना तय है।
लोजपा में भी बगावत, सुनील पांडे ने पार्टी छोड़ी
लोक जनशक्ति पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने शुरू कर दिए हैं। सीटों पर उम्मीदवार घोषित करने की आधिकारिक घोषणा की बजाए अब तक कई सीटों पर पार्टी चुनाव निशान बांट चुकी है। लोजपा में जहां भाजपा के ज्यादातर बागी शामिल हुए हैं, वहीं दूसरों की बगावत का फायदा उठाने वाली लोजपा को भी अपनी पार्टी में बगावत झेलनी पड़ रही है। लोजपा नेता सुनील पांडे ने मंगलवार की रात पार्टी से इस्तीफा दे दिया। अब वह तरारी से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे।
सार
- राजग-महागठबंधन के लिए सिरदर्द बन रही लोजपा
- एआईएमआईएम-बसपा-आरएलएसपी गठबंधन से संपर्क साध रहे
- दूसरे-तीसरे चरण की सूची जारी होने पर और तेज होगा बगावत का सिलसिला
विस्तार
Bihar Election Date 2020 : बिहार विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ राजग और विपक्षी महागठबंधन में शामिल दलों बागी बड़ा सिरदर्द बन रहे हैं। विकल्पों की भरमार के कारण बागियों की पौ बारह है। समझौते में कम सीट मिलने और दावेदारों की भारी संख्या ने खासतौर से भाजपा, जदयू, राजद और कांग्रेस के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है।
बागियों के लिए ढेर सारे विकल्प होने के कारण इस बार इन्हें रोकना इन दलों के लिए आसान नहीं है। गौरतलब है कि इस बार इन दलों के बागियों के समक्ष लोजपा और एआईएमआईएम-बसपा-आरएलएसपी-एसजेडी गठबंधन अहम विकल्प हैं।
भाजपा-जदयू के बागी जहां लोजपा से संपर्क साध रहे हैं, वहीं महागठबंधन के बागी लोजपा समेत आरएलएसपी गठबंधन से संपर्क साध रहे हैं। सर्वाधिक संपर्क लोजपा से साधा जा रहा है। बागियों के सामने जाप और भीम आर्मी गठंबधन भी एक विकल्प है।
लोजपा बना डंपिंग ग्राउंड
फिलहाल बागियों के लिए अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरी लोजपा पहली पसंद है। भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र सिंह, ऊषा विद्यार्थी जैसे कई नेता लोजपा का दामन थाम चुके हैं, जबकि रामेश्वर चौरसिया, जवाहर प्रसाद, देवेश शर्मा, रामअवतार सिंह जैसे दर्जन भर बड़े नेता लोजपा कें संपर्क में हैं। जदयू के भी आधा दर्जन नाराज नेता लोजपा के संपर्क में हैं।
लोजपा में जाने वालों में जदयू के भी कई नेता हैं। भगवान सिंह कुशवाहा ने अपने तरकश से तीर को निकाल फेंका है। कुशवाहा अब लोजपा नेता बन गए हैं। लोजपा ने भाजपा को हासिल होने वाली सीटों के इतर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है और उसके पास पर्याप्त उम्मीदवार नहीं हैं। ऐसे में बागी नेताओं की लॉटरी लग गई है।
राजद,जदयू,भाजपा की मजबूरी
ये तीनों राज्य के मुख्य दल हैं। इसमें भाजपा-जदयू में गठबंधन होने और भाजपा को वीआईपी तो जदयू को हम को अपने हिस्से की सीटें देने से इनके लिए सीटों की संख्या कम बची है। इसके अलावा चूंकि दोनों दलों ने पिछला चुनाव अलग-अलग लड़ा था।
इसलिए इन दोनों दलों के करीब-करीब हर सीट पर दावेदार हैं, जबकि इनके अपने हिस्से में महज 115 और 110 सीटें ही मिली हैं। जाहिर तौर पर करीब सौ सीटें ऐसी हैं जहां कई दावेदार टिकट का इंतजार कर रहे थे। इसी प्रकार राजद को वाम दलों और कांग्रेस से समझौते के कारण महज 144 सीटें मिली हैं और जो सीटें सहयोगियों के कोटे में गई हैं उन सीटों पर पार्टी के दावेदार खफा हैं।
इसलिए देरी से जारी कर रहे सूची बागियों के सामने विकल्प की भरमार ही वह कारण है जिसके चलते ये दल उम्मीदवारों की सूची बहुत देरी से जारी कर रहे हैं। जदयू-भाजपा और राजद ने पहले चुपचाप उम्मीदवारों को सिंबल बांटा। अंतिम समय में सूची जारी की। वह भी मुख्यत: पहले चरण की। कांग्रेस अब तक पहले चरण की सारी सीटें भी नहीं बांट पाई है।
दो गठबंधनों के मेल ने खींचा ध्यान
इस बीच राज्य में दो गठबंधनों के मेल ने भी बागियों का ध्यान खींचा है। पहले एआईएमआईएम और एसजेडी ने तो रालोसपा-बसपा ने अलग-अलग गठबंधन की घोषणा की थी। अब ये दोनों गठबंधन एक हो गए हैं। जाहिर तौर इसमें शामिल दल विचारधारा के हिसाब से महागठबंधन के करीब रहे हैं। ऐसे में भविष्य में राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन के बागी नेता इस गठबंधन की ओर रुख कर सकते हैं।
लोजपा का लक्ष्य, जदयू को नुकसान
अब लोजपा की राजनीति साफ होती जा रही है। लोजपा अपने उम्मीदवार वहीं उतार रही है जहां राजग की तरफ से जदयू मैदान में है। साफ है जहां भाजपा नहीं है वहां भाजपा का नेता लोजपा की तरफ से चुनावी मैदान में है। जाहिर है इससे भाजपा का आधार वोट बंटेगा और जदयू को मिलने वाले वोट का नुकसान होगा। मतलब ये है कि एक किस्म से भाजपा की तो मदद हो जाएगी लेकिन जदयू को टक्कर मिलेगी।
पूरा खेल अभी बाकी
गठबंधन की स्थिति बुधवार तक साफ हुई है, इसलिए बगावत में तेजी नहीं देखी जा रही। चूंकि मुख्य दलों और गठबंधनों ने टिकट वितरण के मामले में खुद को प्रथम चरण के चुनाव तक ही सीमित रखा है, इसलिए बागियों की निगाहें दूसरे और तीसरे चरणों की सूची पर है। दलों की उम्मीदवारों की दूसरी-तीसरी सूची जारी होने के साथ-साथ बगावत में तेजी आना तय है।
लोजपा में भी बगावत, सुनील पांडे ने पार्टी छोड़ी
लोक जनशक्ति पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने शुरू कर दिए हैं। सीटों पर उम्मीदवार घोषित करने की आधिकारिक घोषणा की बजाए अब तक कई सीटों पर पार्टी चुनाव निशान बांट चुकी है। लोजपा में जहां भाजपा के ज्यादातर बागी शामिल हुए हैं, वहीं दूसरों की बगावत का फायदा उठाने वाली लोजपा को भी अपनी पार्टी में बगावत झेलनी पड़ रही है। लोजपा नेता सुनील पांडे ने मंगलवार की रात पार्टी से इस्तीफा दे दिया। अब वह तरारी से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे।
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Thu Oct 8 , 2020
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