Bihar Election 2020: Migration And Unemployment Issue Still Not On Political Parties Agenda, Ground Report – ग्राउंड रिपोर्ट : बिहार की बाजी- पलायन युवा की मजबूरी, मगर नहीं बनता चुनावी मुद्दा

पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर


कहीं भी, कभी भी।

*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!

ख़बर सुनें

अमथुआ गांव के करीब 450-500 लोग रोजी रोटी के लिए विदेशों में या दूसरे प्रदेशों में इस समय भी बाहर हैं। यहां के हर युवा के दिमाग में है कि उसे गुजारे के लिए पलायन करना ही पड़ेगा।

एक समय बदहाली के बुरे दौर से गुजरने वाला बक्सर जिले के अमथुआ गांव के दिन तब बहुरे जब यहां  के रहने वाले श्याम लाल कुशवाहा ने युवाओं को काम के लिए खाड़ी देशों में भेजने के लिए एक प्लेसमेंट एजेंसी शुरू की।

श्याम लाल को इस काम के लिए युवाओं को खोजने के लिए कोई दिक्कत नहीं आई। लोगों को विदेशों में भेजने के लिए श्यामलाल ट्रेनिंग दिलाते हैं,  पिछले 30-35 वर्षों में करीब 55 हजार लोगों को खाड़ी देशों में भेज चुके हैं।

बक्सर जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूरर अमथुआ गांव में अपने बड़े घर में बैठे श्याम लाला बताते हैं, जब वो मुंबई में नौकरी कर रहे थे तो मन में आया कि मुझे सबसे पहले अपने गांव की गरीबी दूर करनी है।

और फिर लोगों को विदेशों में भेजने का काम शुरू कर दिया। वह कहते हैं, कोई सरकार आए इतनी सरकारी नौकरियां नहीं पैदा कर पाएगी कि सभी को रोजगार दिया जा सके।

50 फीसदी से अधिक घरों से पलायन 80 फीसदी के पास जमीन कम

एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 50 फीसदी से अधिक घरों से लोगों को रोजी रोटी के लिए देश विदेश में पलायन करना पड़ता है। जीविका के लिए ज्यादातर घर बाहर से भेजे गए पैसों पर ही निर्भर रहते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार पलायन करने वाले लोगों की औसत आयु 32 साल की होती है। 80 फीसदी पलायन करने वाले लोगों के पास जमीन नहीं होती या एक एकड़ से कम।

बाहर के पैसे से गांव में समृद्धि

अमथुआ गांव मं घुसने पर समृद्धि दिखती है क्योंकि जो लोग विदेश गए हैं, वे अपने परिवार के लिए पैसे भेजते हैं, जिससे उनका गुजारा चलता है। युवा चाहते हैं कि उन्हें अपने देश में ही नौकरी मिले।

युवा प्रदीप कुमार ने बहरीन जाना इसलिए बेहतर समझा कि उन्हें पटना में बहुत कम पैसे मिल रहे थे। लॉकडाउन में बहरीन से लौटे प्रदीप बताते हैं, बिहार में कोई बड़ी कंपनी आना नहीं चाहती, इसलिए बाहर जाना मजबूरी है। जाति धर्म पर नेता वोट डलवाते हैं।

 

लॉकडाउन में लौटे अब कर्ज से गुजारा

अमथुआ की ही तरह बिहार के गांवों में कई प्रवासी मजदूर मिल जाएंगे, जो लॉकडाउन समय लौटे थे और कामकाज न होने से कर्ज लेकर गुजारा कर रहे हैं। कतर में रहने वाले रामू सिंह कहते हैं, अब बाहर जाने का मौका मिले तो आगे का देखें। सरकार ने बोला राशन देंगे पर कुछ नहीं मिला।

अमथुआ की ही तरह बिहार के गांवों में कई प्रवासी मजदूर मिल जाएंगे, जो लॉकडाउन के समय लौटे थे और कामकाज न होने से कर्ज लेकर गुजारा कर रहे हैं। लॉकडाउन के समय लाखों मजदूर बिहार लौटे। कतर में रहने वाले रामू सिंह घर तो आ गए, लेकिन कर्ज लेकर खाना पड़ रहा है। रामू बताते हैं, “अब बाहर जाने का मौका मिले तो आगे का देखें। सरकार ने बोला कि विदेश से जो आए हैं उन्हें राशन देंगे पर कुछ भी नहीं मिला। बोलते सब लोग हैं पर मिलता कुछ नहीं है।”

बाहर नहीं जाना चाहते, स्थानीय स्तर पर रोजगार की चाहत ग्रेजुएशन के बाद आईटीआई करके रोजगार रोजगार की तलाश में भटक रहे शिवराज कुमार दिल्ली में दो साल गुजारे लेकिन वहां भी पैसा फंस गया। शिवराज अब बाहर नहीं जाना चाहते वो अपने चाहते हैं कि राज्य में ही काम मिल जाए। शिवराज कहते हैँ, “पिछले 45 सालों में बिहार का बहुत नुकसान हुआ है। नई सरकार आएगी तो हम चाहते हैं कि सभी को रोजगार मिले, फैक्ट्री बेठे, पढ़ाई अच्छे से हो। हम अब नया विकल्प चाहते हैं।”

 

महिलाएं भी चाहती, बाहर न जाना पड़े

जिस तरह यहां की महिलाएं शराबबंदी के लिए एकजुट हुईं थीं, उसी तरह से फिर यहां की महिलाएं लॉकडाउन में सड़कों पर नंगे पांव दूसरे प्रदेशों से भाग कर आए अपने बच्चों और पतियों के लिए राज्य में ही रोजगार के लिए मुखर हो रही हैं। अपनों के दर्द को करीब से देख चुकी ये महिलाएं चाहती हैं कि उनके परिवार के सदस्य घरों में ही काम करें। महिलाएं नेताओं से यही मांग कर रही हैं। 

राजधानी पटना से करीब 50 किमी दूर आरा में रहने वाली देवमुनि देवी के दिमाग से लॉकडाउन में पैदल वापस आए उनके बच्चों का दर्द अभी भी बैठा है। देवमुनि देवी कहती हैं, “जिसकी भी सरकार बने मजदूर का भला करे। जो नेता जीते वो गरीबों और मजदूरों की बात रखे। अभी जो भी मजदूरों के लिए आता है बड़े-बड़े लोग ऊपर ही खा जाते हैं। जब मजदूर सड़क पर थे तो नीतीश कुमार पता नहीं कहां थे, बाढ़ में लोग डूब रहे थे तो नीतीश गायब।” 

देवमुनि देवी आगे कहती हैं, “अगर मोदी सरकार ट्रेन से पहले दस दिन में इन मजदूरों को भेज देती तो सड़कों पर मरते नहीं। सड़क पर कोई मजदूरों से पूछता भी नहीं था, जब भूखे-प्यासे आ रहे थे तो खेदा जा रहा था। जब अमीर आदमी लॉकडाउन में घरों में था तो गरीब आदमी सड़कों पर भटक रहा था। गरीब को डर था कि ऐसे भी मरेंगे और कोरोना से भी मरेंगे।” 

करीब 32 लाख बाहर से लौटे

बिहार में करीब 32 लाख मजदूर दूसरे राज्यों में करोना के दौरान वापस आए। रोजगार के लिए पहले से ही जूझ रहे बिहार में ये संख्या और बढ़ गई। चुनावी मौसम में ही यहां के मजदूरों से भरी बसें दूसरे राज्यों के लिए जाती हुई देखी जा सकती हैं।  आरा में ही रहने वाली कलावती देवी कहती हैं, “हम चोर और घूसखोर को वोट नहीं देंगे। हमारे लड़के बीए-एमए पास करके सड़कों पर घूम रहे हैं। सब अपना-अपना राज बनाते हैं, गरीब दुखी रोड पर मरता है। हमारे लड़के सड़क पर न घूमें हम यही चाहते हैं। हमारे लड़के परीक्षा देते रहते हैं पर रिजल्ट ही नहीं आता है। हमारा नाती रो रहा था कि बीए करने के बाद एडमिशन भी नहीं हुआ।” नौकरियों के रिजल्ट की लेटलतीफी से परेशान अमथुआ गाँव में रहने वाले इंद्रजीत कहते हैं, “ग्रेजुएशन के बाद कंपटीशन की तैयारी कर रहा हूं, लेकिन समझ नहीं आ रहा आगे क्या होगा? अभी बिहार पुलिस का रिजल्ट आया तो फिजिकल रद्द कर दिया गया। एक तो वैकेन्सी आती नहीं, अगर आती है तो आधी बिक जाती है।”

 

अमथुआ गांव के करीब 450-500 लोग रोजी रोटी के लिए विदेशों में या दूसरे प्रदेशों में इस समय भी बाहर हैं। यहां के हर युवा के दिमाग में है कि उसे गुजारे के लिए पलायन करना ही पड़ेगा।

एक समय बदहाली के बुरे दौर से गुजरने वाला बक्सर जिले के अमथुआ गांव के दिन तब बहुरे जब यहां  के रहने वाले श्याम लाल कुशवाहा ने युवाओं को काम के लिए खाड़ी देशों में भेजने के लिए एक प्लेसमेंट एजेंसी शुरू की।

श्याम लाल को इस काम के लिए युवाओं को खोजने के लिए कोई दिक्कत नहीं आई। लोगों को विदेशों में भेजने के लिए श्यामलाल ट्रेनिंग दिलाते हैं,  पिछले 30-35 वर्षों में करीब 55 हजार लोगों को खाड़ी देशों में भेज चुके हैं।

बक्सर जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूरर अमथुआ गांव में अपने बड़े घर में बैठे श्याम लाला बताते हैं, जब वो मुंबई में नौकरी कर रहे थे तो मन में आया कि मुझे सबसे पहले अपने गांव की गरीबी दूर करनी है।

और फिर लोगों को विदेशों में भेजने का काम शुरू कर दिया। वह कहते हैं, कोई सरकार आए इतनी सरकारी नौकरियां नहीं पैदा कर पाएगी कि सभी को रोजगार दिया जा सके।

50 फीसदी से अधिक घरों से पलायन 80 फीसदी के पास जमीन कम

एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 50 फीसदी से अधिक घरों से लोगों को रोजी रोटी के लिए देश विदेश में पलायन करना पड़ता है। जीविका के लिए ज्यादातर घर बाहर से भेजे गए पैसों पर ही निर्भर रहते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार पलायन करने वाले लोगों की औसत आयु 32 साल की होती है। 80 फीसदी पलायन करने वाले लोगों के पास जमीन नहीं होती या एक एकड़ से कम।

बाहर के पैसे से गांव में समृद्धि

अमथुआ गांव मं घुसने पर समृद्धि दिखती है क्योंकि जो लोग विदेश गए हैं, वे अपने परिवार के लिए पैसे भेजते हैं, जिससे उनका गुजारा चलता है। युवा चाहते हैं कि उन्हें अपने देश में ही नौकरी मिले।

युवा प्रदीप कुमार ने बहरीन जाना इसलिए बेहतर समझा कि उन्हें पटना में बहुत कम पैसे मिल रहे थे। लॉकडाउन में बहरीन से लौटे प्रदीप बताते हैं, बिहार में कोई बड़ी कंपनी आना नहीं चाहती, इसलिए बाहर जाना मजबूरी है। जाति धर्म पर नेता वोट डलवाते हैं।

 

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

Why Chris Evans' Knives Out Co-Star Jamie Lee Curtis Would Not Be Shocked If His Nude Leak Was Planned

Mon Oct 19 , 2020
During a recent appearance on The Kelly Clarkson Show, the daytime TV host spoke with Jamie Lee Curtis on a variety of subjects, including Chris Evans’ genitalia. In fact, Jamie Lee Curtis now says she thinks the nude leak may have actually gone exactly as predicted, noting on the series […]

You May Like