प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय
– फोटो : Social media
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सार
- छात्रों और शिक्षकों की चाहत, सरकार जो भी आए शिक्षा पर ध्यान दे
- शिक्षाविदों की राय, सरकारों ने सुधारा नहीं बस आगे चलाते रहे
विस्तार
एनएसओ की एक रिपोर्ट अनुसार बिहार कम साक्षरता दर वाले राज्यों में तीसरे स्थान पर है। राज्य की साक्षरता दर 70.9 फीसदी है जो राष्ट्रीय औसत से 6.8 फीसदी कम है। बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के मुताबिक, राज्य में कक्षा एक में दाखिल छात्रों में 38 फीसदी से ज्यादा ने माध्यमिक शिक्षा (कक्षा 10) पूरी नहीं की।
यहां मेरिट नहीं, सेटिंग
दोस्तों संग नालंदा विश्वविद्यालय के संरक्षित अवशेषों को देखने आए छात्र कुंदन कुमार मेरठ से बीटेक कर रहे हैं। कुंदन कहते हैं, यहां शिक्षकों का चुनाव मेरिट पर नहीं, सेटिंग से होता है। शिक्षा व्यवस्था तब तक नहीं सही हो सकती जब तक सरकार नहीं चाहेगी। जिसे कुछ नहीं आता उसे शिक्षक बना देते हैं। यहां सब ऐसे ही घूमते रहते हैं, कब बीएड की डिग्री मिल जाती है और कब शिक्षक बन जाते हैं, अगल-बगल वाले को पता ही नहीं चलता है।
कुंदन आगे कहते हैं, जो बिहार से एक बार बाहर जाता है, वह वापस आना ही नहीं चाहता। अच्छी नौकरियां करने वाले ज्यादातर बाहर हैं। शिक्षा व्यवस्था खराब होने का कारण बताते हुए छात्र राकेश कुमारकहते हैं, हमारी प्राचीनतम शिक्षा गौरवान्वित करने वाली रही है, राजनेताओं की जुगलबंदी की वजह से शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई।
नेताओं-अधिकारियों के बच्चे भी सरकारी स्कूल में पढ़ें
इन युवाओं के बगल में खड़े एक बुजुर्ग गाइड दो टूक कहते हैं, अगर बिहार की शिक्षा व्यवस्था को ठीक देखना चाहते हैं तो जितने भी विधायक, सरकारी अफसर हैं, उनके भी बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें। फिर देखिए कैसे बदलाव होता है। जब तक ऐसा नहीं होगा शिक्षा में सुधार नहीं होगा। छात्र संदीप कुमार स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं। उनका सत्र 2019-20 का था, लेकिन अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। संदीप बताते हैं, न समय पर परीक्षा, न नतीजे। राज्य मे प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन युवा साथी बेरोजगार हैं। जिस दिन सरकार चाह लेगी उसी दिन बिहार प्रतिभाओं का खान निकलेगा।
स्कूलों का माहौल सुधारना होगा
शिक्षा का माहौल सही करने पर संदीप कुमार कहते हैं, पहले सरकारी स्कूल सही करने पड़ेंगे। मूलभूत सुविधाओं और माहौल में सुधार करना होगा। छात्र को जैसा माहौल मिलता है वैसे ही आगे बढ़ता है। राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर पटना हाइकोर्ट भी कह चुका है कि शिक्षा प्रणाली भविष्य की आबादी को बर्बाद कर रही है।
पलायन प्रतिभाओं की मजबूरी
बिहार के रहने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर सुधीर सिंह कहते हैं, राज्य में प्रतिभा की कद्र नहीं है। इसलिए जो प्रतिभावान हैं, वह पलायन कर जाते हैं। यहां की राजनीति में शिक्षा को अहमियत नहीं दी जाती है। शिक्षा को चौथे पायदान पर रखा जाता है। किसी को कोई लेना-देना नहीं होता है। बस ढांचा चल रहा है, गाड़ी खींच रहे हैं। गुणवत्ता गायब है।
प्रतिभा की कद्र नहीं
बिहार के सरकारी स्कूल से पढ़ के दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनने तक का सफर बताते हुए सुधीर सिंह कहते हैं, पहले सरकारी स्कलों में शिक्षा की गुणवत्ता थी, पर आज गुणवत्ता विहीन प्राइमरी स्कूल हैं। गलती सरकारों की रही। राज्य में प्रतिभाएं हैं, लेकिन सरकार देख नहीं पाती। आज दिल्ली विवि के11 हजार शिक्षकों में 4000 बिहार से हैं, यह प्रतिभा नहीं तो और क्या है। प्रो. सुधीर सिंह आगे बताते हैं, लालू प्रसाद के शासन में शिक्षा की स्थिति बहुत खराब हुई लेकिन नीतीश कुमार ने जो स्थिति थी उसे उठाया नहीं। यूं ही चलने दिया। जैसे घर टूटने पर मरम्मत कर देते हैं, वैसे ही किया।